CCEA यानी आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी में किसानों के लिए बड़ा फैसला लिया जा सकता है. आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CEA) की बैठक में गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) तय करने पर फैसला लिया जा सकता है. यह दर 2025-26 सीजन (अक्टूबर से सितंबर) के लिए तय की जाएगी. एफआरपी वह न्यूनतम सरकारी मूल्य है जो गन्ना किसानों को चीनी मिलों से मिलने की गारंटी होती है, चाहे मिलों को चीनी से कितनी भी कमाई क्यों न मिले. फिलहाल 10.25 परसेंट रिकवरी पर गन्ने का एफआरपी ₹340 प्रति क्विंटल तय है. माना जा रहा है कि इस बैठक में गन्ना किसानों को राहत देने के लिए एफआरपी में बढ़ोतरी की जा सकती है.
इससे पहले पिछले साल फरवरी में केंद्रीय कैबिनेट ने चीनी सीजन 2024-25 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए चीनी मिलों की ओर से दिए जाने वाले एफआरपी को मंजूरी दी थी. 10.25 परसेंट की मूल रिकवरी दर के लिए गन्ने का एफआरपी 340 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था. रिकवरी में 10.25 परसेंट से ऊपर प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिए 3.32 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम दिया गया था. 9.5 परसेंट या उससे कम रिकवरी वाली चीनी मिलों के लिए एफआरपी 315.10 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था.
किसान लंबे दिनों से गन्ने का एफआरपी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि उन्हें मौजूदा रेट से फायदा नहीं हो रहा है क्योंकि खेती की लागत बढ़ रही है और फसल नुकसान का असर भी ज्यादा है. दूसरी ओर चीनी कंपनियां देर से पैसे का भुगतान करती हैं. इस वजह से किसानों पर दोहरी मार पड़ती है. इसे देखते हुए किसान जितनी जल्दी हो सके एफआरपी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. किसानों की इस मांग को सरकार मान सकती है और जल्द इसे बढ़ाने का फैसला ले सकती है.
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एफआरपी को तय करने के लिए कई बातों पर विचार किया जाता है:
• गन्ने के उत्पादन की लागत
• वैकल्पिक फसलों से उत्पादकों को मिलने वाला लाभ और कृषि वस्तुओं की कीमत प्रवृत्ति
• उचित मूल्य पर चीनी तक उपभोक्ता की पहुंच
• गन्ने से उत्पादित चीनी का विक्रय मूल्य
• गन्ने से चीनी की प्राप्ति
• गुड़, खोई और प्रेस मड जैसे उप-उत्पादों की बिक्री से हुई कमाई या उनके समतुल्य मूल्य
• गन्ना उत्पादकों को जोखिम और लाभ के लिए उचित मार्जिन देना
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एफआरपी प्रणाली के तहत, किसानों को अब सीजन खत्म होने या चीनी मिलों या सरकार की ओर से मुनाफे की घोषणा का इंतजार नहीं करना पड़ता. यह नई प्रणाली किसानों के लिए एक निश्चित उचित मूल्य सुनिश्चित करती है, भले ही चीनी मिलें लाभदायक हों या नहीं. (ऐश्वर्या पालीवाल का इनपुट)