आज बदलते समय के साथ लोग खेती में नये-नये प्रयोग के जरिये एक बेहतर कमाई कर रहे हैं. जिसमें औषधीय पौधों की खेती भी किसानों के लिए बेहतर कमाई का रास्ता बन रही है. अगर कोई किसान की रुचि औषधीय पौधों की खेती की ओर बन रहा है और वह परंपरागत खेती के साथ बेहतर कमाई करना चाहते हैं. तो वे मार्च महीने में मेंथा की खेती कर सकते हैं. पिछले 25 वर्षो से औषधीय पौधों की खेती करने वाले पटना के कृष्णा प्रसाद कहते हैं कि मेंथा की खेती का सबसे बड़ा फायदा है ये है कि इसकी खेती में लागत का दो गुना कमाई है. वहीं इसकी खेती के लिए अभी का समय बिल्कुल उपयुक्त है.
अगर कोई किसान के पास पानी का उचित प्रबंधन है तो वह सरसों या आलू की फसल की कटाई के बाद खाली खेत में खेती की जा सकती है. इसका उपयोग कई तरह के सौंदर्य,दवा, सहित अन्य कार्यों में उपयोग में लाया जाता है.
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कृष्ण प्रसाद मेंथा की खेती के बारे में बताते हुए कहते हैं कि गरमा के सीजन में मेंथा की खेती करने के लिए सबसे पहले किसान को जनवरी से फरवरी महीने में नर्सरी तैयार करना होती है. सकर्स (मेंथा के जड़) को टुकड़ा-टुकड़ा करके लगाना चाहिए. उसके बाद मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक खेत में पौधों की रोपाई कर देना चाहिए. अगर जिस किसान के पास खेत खाली हो वे मेन्था की फसल फरवरी मे भी लगा सकते है. अगर 20 कट्ठा यानी एक बीघा में लगाना है. तो किसान इसकी नर्सरी 20 फीट लंबा व 20 फीट चौड़ा जमीन में तैयार कर सकता है. अगर किसान के पास इसका पौधा नहीं है. तो वह नर्सरी या अन्य किसानों से मेन्था का पौधा लेकर खेती कर सकते है, जो इसकी खेती कर रहे है. एक बीघा में करीब 20 से 25 किलो सकर्स की जरूरत होती है.
कृष्ण प्रसाद कहते हैं कि मेंथा की उन्नत किस्में सिम क्रांति, सिम उन्नत्ती ,कोसी हैं. वहीं मेंथा का पौधा लगाने से पहले खेत को 2 से 3 बार जुताई कर देना चाहिए. अगर रासायनिक खाद का उपयोग किसान करना चाहता है. तो वह यूरिया, डीएपी का उपयोग कर सकता है. अगर वे जैविक विधि से करना चाहते हैं तो वह जैविक खाद का उपयोग करके खेत की सिंचाई कर दें. वहीं पौधे लगने के दौरान खेत में नमी या पानी होना चाहिए और धान के पौधों की तरह लगाना चाहिए. लाईन से लाईन की दूरी डेढ़ फीट और पौधे से पौधे की दूरी एक फिट होना चाहिए. वहीं खेत में नमी बनाए रखने के लिए हर 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. साथ ही मेंथा की फसल 120 दिन में तैयार हो जाती है. आगे कहते हैं कि जैसे ही पौधे में बैंगनी कलर का फूल लगने लगता है तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए. मेंथा को एक दिन धूप में मुरझाने के बाद आसवन संयंत्र की मदद से तेल निकाला जाता है। मेन्था की खेती मे फसल प्रबंधन इस प्रकार होनी चाहिये ताकी फसल की कटाई मोन्सुन से पहले हर हाल मे हो जाना चाहिए.
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कोई किसान मेंथा की खेती करता है. वह एक बीघा से 50 से 60 हजार रुपए की कमाई कर सकता है. जहां एक बीघा में खेती करने के दौरान 15 हजार रुपए खर्च आता है. वहीं 50 से 60 किलो तेल निकल जाता है और बाजार में 1000 रुपए लीटर भाव है. वहीं सबसे बड़ी बात ये है कि इसे आवरा पशु भी नहीं खाते हैं.