पश्चिमी देशों में कॉटन की मांग में कमी के कारण कपास की कीमतें दो साल के निचले स्तर पर आ गई हैं. बाजार की ऐसी स्थिति तब बन रही है जब इस साल कम फसल हुई है. क्योंकि व्यावहारिक रूप से कपास की कोई मांग नहीं है. हालांकि कुछ किसान अच्छे दाम की उम्मीद में कपास को स्टॉक भी कर रहे हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन में आर्थिक संकट के कारण भारत के कपास किसानों पर कम दाम का संकट पैदा हो गया है. ट्रेडर्स का दावा है कि पश्चिमी देशों में कॉटन की मांग में कमी के कारण कपास की कीमतें दो साल के निचले स्तर पर आ गई हैं. बाजार की ऐसी स्थिति तब बन रही है जब इस साल कम फसल हुई है. क्योंकि व्यावहारिक रूप से कपास की कोई मांग नहीं है. पिछले साल के बचे कपास सहित इसका स्टॉक सहित 300 लाख गांठ ही है. एक गांठ में 170 किलोग्राम कॉटन आता है.
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी देशों में कपड़ों की मांग आर्थिक परेशानियों के कारण सुस्त है. इसलिए, मिलें कॉटन खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं. उधर, किसान बिना प्रोसेस किया हुआ कपास) 7,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचने को तैयार हैं. कुछ किसान अच्छे दाम की उम्मीद में कपास को स्टॉक भी कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि जब उत्पादन कम हुआ है तो फिर दाम बढ़ सकता है.
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कच्चे कपास की कीमतें अब गिरकर 7,200-7,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गई हैं. कुछ मामलों में लंबे स्टेपल वाले कपास का दाम सिर्फ 7000 रुपये क्विंटल या उससे भी कम है. जबकि दो साल पहले कपास का दाम 10000 से 14000 रुपये तक पहुंच गया था. पंजाब की मंडियों में 6000 से 6800 रुपये तक का ही रेट मिल रहा है. इसलिए वहां के किसान इसकी खेती छोड़ रहे हैं.
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनावों के कारण अब तक मंडियों में कपास की आवक कम रही है. अब जब वे खत्म हो गए हैं, तो आवक बढ़ेगी, जिससे कीमतों पर और दबाव पड़ सकता है. पिछले सप्ताह देश के विभिन्न एपीएमसी में लगभग 9 लाख गांठें पहुंचीं. दैनिक आवक 1.1 लाख गांठ से 1.3 लाख गांठ थी.
अब वास्तविक मांग के रुझान के अनुरूप कपास की कीमतें धीरे-धीरे निचले स्तर पर आ रही हैं. कम कीमतें निर्यातकों द्वारा खरीदारी को प्रोत्साहित कर सकती हैं. अभी, कपास की केवल बांग्लादेश ही खरीदारी कर रहा है.
जानकारों ने बताया कि मांग की कमी के कारण शीर्ष उपयोग स्तर की तुलना में नवंबर के दौरान यार्न का उत्पादन लगभग 3.5 से 4 करोड़ किलोग्राम तक कम था. इसके अलावा, दक्षिणी क्षेत्र में 200 मिलें मिश्रित यार्न का उत्पादन करने के लिए 10-20 प्रतिशत विस्कोस का उपयोग कर रही हैं. मौजूदा तिमाही में तमिलनाडु जैसे प्रमुख उपभोक्ता राज्यों में कताई क्षेत्र द्वारा उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की कमी और सिंथेटिक और सेल्युलोसिक फाइबर मिश्रित यार्न बनाने वाले स्पिनरों की बढ़ती प्रवृत्ति से अगले कुछ महीनों तक कीमतों पर लगाम लगेगी.
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