Boycott Turkey News: 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत में तुर्की के सेबों को बायकॉट शुरू हो गया है. इस बायकॉट से कश्मीर में सेब के किसान और निर्यातक काफी खुश हैं. उन्हें उम्मीद जगी है कि अब उनके बगीचों में पैदा हुए फल को वह कीमत मिल सकेगी, जिसकी चाह उन्हें हमेशा से रही है. कश्मीर भारत का एक प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र है और देश में सेब उत्पादन में एक महत्वपूर्ण जगह रखता है. इसके अलावा सेब की खेती कश्मीर की अर्थव्यवस्था और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में सेब के कई बगीचे हैं और यहां के किसान नए घटनाक्रम को एक सकारात्मक नजरिये से देख रहे हैं. यहां के एक बागवान बशीर अहमद डार से कई सालों की अनिश्चितता के बाद मई के मौसम को लेकर उत्साहित हैं. उनका मानना है कि इस साल उनके जैसे सेब के कई किसानों के लिए शायद कुछ अलग हो. यही उम्मीद कश्मीर के बागों और बाजारों में भी दिख रही है. ऑपरेशन सिंदूर में जिस तरह से तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन उसके बाद पूरे भारत में उसके खिलाफ गुस्सा है. यह गुस्सा देश की फल मंडियों में बड़े पैमाने पर नजर आ रहा है जहां पर कई बदलाव हो रहे हैं और इन सबके केंद्र में है तुर्की से आने वाला सेब.
कभी तुर्की का सेब भारत के फल बाजार में दबदबा रखता था लेकिन अब प्रयागराज से लेकर पुणे तक इसका बायकॉट किया जा रहा है. दिल्ली से मुंबई तक की प्रमुख मंडियों में, खुदरा विक्रेताओं ने पहले ही तुर्की सेब को अलमारियों से हटाना शुरू कर दिया है. आयातकों ने मांग में भारी गिरावट की सूचना दी है. इस बीच, ऑफ-सीजन में भी कश्मीरी सेब के ऑर्डर बढ़ गए हैं.
कश्मीर, जो भारत के कुल सेब उत्पादन में लगभग तीन-चौथाई का योगदान देता है, लंबे समय से अपने उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा के कारण दबा हुआ देख रहा है. कम मजदूरी और बेहतर लॉजिस्टिक्स के चलते तुर्की के सेब अक्सर भारत में फसल की कटाई के चरम महीनों के दौरान आते हैं. इससे कीमतें कम हो जाती हैं और अक्सर स्थानीय उपज स्टोरेज में ही सूख जाती है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में, तुर्की ने भारत में सभी सेब आयातों में से 23 फीसदी का योगदान दिया. अकेले उस साल 129,000 मीट्रिक टन से ज्यादा की शिपिंग हुई थी.
कश्मीर के उत्पादकों ने हमेशा इसके प्रभाव को महसूस किया है. सेब के किसानों की मानें तो वो बस मजबूर होकर देखते रहे कि खरीदार उनकी उपज को छोड़कर चले गए. कश्मीर के सेब की जगह खरीदारों ने हमेशा सस्ते सेबों को ही प्रमुखता दी. अब जबकि तुर्की के सेब संभावित रूप से तस्वीर से बाहर हो गए हैं तो कश्मीर के किसान अपने बाजार को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. जम्मू और कश्मीर बागवानी विभाग के अधिकारियों के अनुसार, हल्के वसंत के मौसम और कम कीट दबाव ने हाल के दिनों में सबसे अच्छे फूलों के मौसमों में से एक को जन्म दिया है.
सोपोर जो एशिया का दूसरा सबसे बड़ा फल बाजार है, वहां पर तुर्की के बायकॉट की आहट को महसूस किया जा सकता है. सोपोर फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष फैयाज मलिक बुनियादी ढांचे में सुधार को एक और महत्वपूर्ण वजह बताते हैं. उनका कहना है कि सड़क से संपर्क और बेहतर ट्रांसपोर्टेशन ने खेल को बदल दिया है. पहली बार, हमारे सेब समय पर और बेहतर कीमतों पर बाजारों में पहुंच रहे हैं. सोपोर के बागवान शफी कहते हैं कि भले ही बायकॉट का यह दौर सिर्फ एक मौसम तक ही रहे फिर भी यह एक बड़ा मौका है. हम यह साबित कर सकते हैं कि इस मिट्टी में, इस जलवायु में सावधानी से उगाए गए हमारे सेब राष्ट्रीय स्तर पर जगह पाने के हकदार हैं.
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