अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पिछले कुछ दिनों से पामोलिन के मुकाबले सूरजमुखी तेल कम दाम पर उपलब्ध हो रहा है, इसलिए आयातकों ने ज्यादा माल मंगवाना उचित नहीं समझा. जिससे देश में खाद्य तेलों की पाइप लाइन में काफी कम तेल है. वो भी ऐसे वक्त में नवरात्र और शादी विवाह के दौरान की मांग बढ़ने वाली है. अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने इस बात की जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि आगे भी जब तक पाम, पामोलीन के भाव सूरजमुखी से पर्याप्त कम नहीं होंगे, जब तक खाद्य तेलों की आपूर्ति की स्थिति नहीं सुधरने जा रही है. इनकी कमी की पूर्ति देश के सरसों, मूंगफली, देसी सूरजमुखी, बिनौला और सोयाबीन से करना मुश्किल है. क्योंकि लागत और एमएसपी अधिक होने की वजह से इन देसी तेलों के दाम काफी अधिक हैं.
ठक्कर ने बताया कि विदेशी बाजारों में मजबूती के रुख तथा खाद्य तेलों की कम आपूर्ति (शॉर्ट सप्लाई) के कारण देश के तेल-तिलहन बाजारों में सरसों, सोयाबीन तेल, कच्चा पाम तेल (सीपीओ), पामोलीन तथा बिनौला तेल की कीमतें मजबूत देखने मिल रही हैं. जबकि सुस्त कारोबार के बीच मूंगफली तेल के भाव पहले के स्तर पर ही टिके हुए हैं. उन्होंने कहा कि विदेशों में बाजार तेज रहने तथा स्थानीय आपूर्ति कम रहने की वजह से खाद्य तेल की कीमतों में सुधार दिख रहा है.
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(03/04/2024)
महासंघ के महामंत्री तरुण जैन ने कहा कि इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि लगभग 35 वर्ष पहले खाद्य तेलों का क्या भाव था और मौजूदा भाव में क्या कोई खास वृद्धि हुई है. अगर खाद्य तेलों के दाम बाकी खाने की वस्तुओं के मुकाबले नहीं बढ़ते हैं तो तिलहन उत्पादन सीधा प्रभावित होगा. मूंगफली और सोयाबीन उत्पाद का जो हाल हुआ है उससे इनकी खेती आगे जाकर प्रभावित होने की आशंका है. ये दोनों ही तिलहन, सस्ते आयातित तेलों के थोक भाव कम होने के कारण एमएसपी से नीचे दाम पर बिक रहे हैं. पेराई के बाद मिलवालों के तेल खप नहीं रहे, जिससे उन्हें नुकसान हो रहा है.
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