अरहर की खेती हमेशा से किसानों के लिए फायदे का सौदा रही है. हालांकि बाजार के उतार-चढ़ाव में अरहर यानी तुअर के दाम बढ़ते-घटते रहते हैं, लेकिन अरहर की खेती करने वाले किसान बेहतर रणनीति से बाजार के उतार-चढ़ाव को भी मात दे सकते हैं. असल में किसान अरहर की कम अवधि वाली किस्मों की खेती कर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसे में अगर आप भी इस खरीफ सीजन में अरहर की खेती करना चाहते हैं तो इन पांच कम अवधि वाली बेस्ट किस्मों को उगा सकते हैं. आइए जानते हैं कौन सी हैं वो किस्में और क्या हैं इनकी खासियत.
JKM 189 किस्म: ये अरहर की एक खास किस्म है. इस किस्म की फलियां हरी और काली धारियों वाली होती हैं. साथ ही इस किस्म के दाने लाल और भूरे रंग के बड़े होते हैं. यह किस्म भी देर से बोने के लिए उपयुक्त है. इसलिए इसे पछेती किस्म भी कहा गया है. इसकी औसत उपज 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. वहीं, ये किस्म जल्दी तैयार होने के लिए जानी जाती है.
पूसा अगेती किस्म: ये अरहर की एक अगेती किस्म है. अरहर की इस किस्म में फसल की लंबाई कम और दाना मोटा होता है. यह किस्म 120 से 130 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 1 टन प्रति हेक्टेयर है. कम समय में पकने की वजह से किसान इस किस्म को ज्यादा पसंद करते हैं.
आईसीपीएल 87 किस्म: इस किस्म में फसल की लंबाई कम होती है. वहीं, इस फसल के पकने की अवधि 130 से 150 दिन की होती है. अरहर की इस किस्म में फलियां मोटी और लंबी होती हैं और यह गुच्छों में आती हैं और एक साथ पकती हैं. इस किस्म की औसत उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पूसा 992: ये अरहर की जल्द तैयार होने वाली किस्म है. भूरे रंग का मोटा, गोल और चमकदार दाने वाली इस किस्म को वर्ष 2005 में विकसित किया गया था. ये किस्म लगभग 120 से 140 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. साथ ही प्रति एकड़ भूमि से 6 क्विंटल तक की उपज है. इसकी खेती सबसे ज्यादा पंजाब , हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में की जाती है.
आईपीए 203: इस किस्म की खास बात ये है कि इस किस्म में बीमारियां नहीं लगती और इस किस्म की बुवाई करके फसल को कई रोगों से बचाया जा सकता है. साथ में अधिक पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं. इसकी औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है. इस किस्म की अरहर की बुवाई जून महीने में कर देनी चाहिए.
अरहर की बुवाई के खेत की गहरी जुताई कर लें. इसके बाद कल्टीवेटर से 2 या 3 जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें और इस बात का ध्यान रखें कि जिस खेत में बुवाई करने जा रहे हैं, वहां पानी लगने की संभावना ना हो. अगर पानी लगने की संभावनाएं हैं तो अरहर की बुवाई मेड़ों पर करें. अरहर की फसल में पानी लगने से फसल मुरझा जाती है. इसलिए अरहर की पानी की जरूरत कम होती है. कम अवधि वाली अरहर किस्मों की बुवाई 15 जून 30 जून तक जरूर कर लेनी चाहिए, जिससे कि रबी फसलों की समय से बुवाई हो सके.