बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने विकसित की सफेद मड़ुआ की किस्म, तीन गुणा अधिक होगी पैदावार

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने विकसित की सफेद मड़ुआ की किस्म, तीन गुणा अधिक होगी पैदावार

झारखंड में मड़ुआ की औसतन पैदावार सात से साढ़े सात क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि जो सफेद मड़ुआ की प्रजाति जिसका नाम झारखंड व्हाइट मड़ुआ है, उसकी खेती अगर किसान वैज्ञानिक विधि को अपनाते हुए करते हैं तो उन्हें प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त होगा.

सफेद मड़ुआ की नई किस्म           फाइल फोटोः किसानसफेद मड़ुआ की नई किस्म फाइल फोटोः किसान
पवन कुमार
  • Ranchi,
  • Jul 12, 2023,
  • Updated Jul 12, 2023, 10:33 AM IST

झारखंड में इस साल भी मॉनसून की स्थिति अच्छी नहीं दिखाई दे रही है, ऐसे में किसान खरीफ फसल में धान की खेती बजाय मोटे अनाज की खेती को अपना सकते है.  पर फिलहाल इसके लिए भी राज्य में पर्याप्त बीज का अभाव है. झारखंड एक ऐसा राज्य है जो पिछले दो दशकों से जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. यहां पर बारिश के पैटर्न में बदलाव आया है. जिसका सीधा असर यहां की खेती पर पड़ रहा है. इस बार भी बारिश नहीं हो रही है इसके कारण उपरी जमीन की नमी तेजी से कम हो रही है. ऐसे में किसान इनमें मोटे अनाज खास तौर पर रागी की खेती कर सकते हैं. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार बताते हैं कि झारखंड की जमीन मोटे अनाज की खेती के लिए उपयुक्त है. 

उन्होंने बताया कि वो मोटे अनाज पर ही काम करते हैं. इसके तहत उन्होंने झारखंड के लिए उपयुक्त सफेद मड़ुआ की नई किस्म विकसित की है. फिलहाल आम लोगों के लिए इसे रीलिज नहीं किया गया है. उन्होंने बताया की अगले साल तक यह बीज किसानों के इस्तेमाल के लिए जारी कर दिया जाएगा. इसे झारखंड सरकार को दिया गया है. अभी इसका ब्रीडर सीड तैयार किया गया है. फिर फाउंडेशन सीड तैयार किया जाएगा इसके बाद सर्टिफाइड सीड किसानों को खेती में लगाने के लिए दी जाएगी. 

तीन गुणा अधिक होगा उत्पादन

डॉ अरुण कुमार बताते ने बताया कि झारखंड में मड़ुआ की औसतन पैदावार सात से साढ़े सात क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि जो सफेद मड़ुआ की प्रजाति जिसका नाम झारखंड व्हाइट मड़ुआ है, उसकी खेती अगर किसान वैज्ञानिक विधि को अपनाते हुए करते हैं तो उन्हें प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त होगा. इस तरह से सफेद मड़ुआ से तीन गुणा अधिक उत्पादन हासिल किया जा सकता है. सफेद मड़ुआ की खेती के लिए तीन किलो प्रति एकड़ बीज की जरूरत पड़ती है. साथ ही यह 105 से 110 दिनों के भीतर तैयार हो जाता है. 

झारखंड की भौगोलिक स्थिति

झारखंड की भौगोलिक स्थित मड़ुआ की खेती के लिए सबसे उपयुक्त इसलिए मानी जाती है क्योंकि यहां पर कुल 28 लाख हेक्टेयर कृषि योग्यभूमि है, इसमें से 18-19 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है. जबकि छह लाख हेक्टेयर उपरी जमीन है. जो मोटे अनाज की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त है. वहीं बाकी बचे छह लाख हेक्टेयर में डीएसआर तकनीक से धान की बुवाई की जाती है. झारखंड में पिछले साल मात्र 20-21 हजार हेक्टेयर में मोटे अनाज की खेती की गई थी, जिसमें सबसे अधिक मड़ुआ की खेती की जाती है. इस बार राज्य सरकार ने 50 हजार हेक्टेयर में मोटे अनाज की खेती करने का लक्ष्य रखा है.

 

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