पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है. मशरूम की खेती किसानों के लिए बेहतर आमदनी का जरिया बन रही है. बस कुछ बातों का ध्यान रखना होता है और बाजार में मशरूम का अच्छा दाम मिल जाता है. अलग-अलग राज्यों में किसान मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. इसी में करनाल के कुछ पढ़े लिखे युवा भी हैं जो मशरूम की खेती कर रहे हैं. झोपड़ी जैसे शेड में मशरूम की खेती कर ये युवा बेहतर कमाई कर रहे हैं.
कम जगह और कम समय के साथ ही इसकी खेती में लागत भी बहुत कम लगती है, जबकि मुनाफा लागत से कई गुना ज्यादा मिल जाता है. मशरूम की खेती के लिए किसान किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं. करनाल के काछवा गांव के किसान कृष्ण गोपाल ने सबसे पहले मशरूम के बारे में जाना और मुरथल में स्थित मशरूम केंद्र से इसकी ट्रेनिंग ली. उसके बाद उन्होंने दो मशरूम के झोपड़ीनुमा शेड से मशरूम फार्मिंग की शुरुआत की.
आज किसान गोपाल कृष्ण के पास तकरीबन छह के करीब झोपड़ीनुमा शेड है जिनसे वे काफी अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं. अगर एक शेड की बात की जाए तो उससे भी तकरीबन दो लाख तक के मशरूम मिल रहे हैं. किसान कृष्ण गोपाल ने बताया कि उन्होंने बीटेक भी किया है. उसके साथ गवर्नमेंट जॉब के लिए भी अप्लाई किया था जहां उनका नंबर भी आ गया था. मगर किसी कारण से वे जॉब को जॉइन नहीं कर पाए. वहीं से उन्हें खेती में कुछ नया करने का जुनून पैदा हुआ.
किसान कृष्ण गोपाल ने बताया कि उनको बिजनेस लाइन में जाने का शौक था. इसी को लेकर अब वे काफी अच्छे किसान बन चुके हैं और काफी युवा उनके पास काम भी कर रहे हैं. उनको इस लाइन में तकरीबन सात से आठ साल के करीब हो चुके हैं और मशरूम का काम काफी अच्छा चल रहा है. कृष्ण गोपाल मशरूम की मार्केटिंग करनाल में ही करते हैं जहां पर उनको मशरूम का रेट 100 रुपये से लेकर 120 रुपये तक मिल जाता है. एक मशरूम का पैकेट 200 ग्राम के करीब का होता है जिसको वे मार्केट में सेल करते हैं.
देश में बेहतरीन पौष्टिक खाद्य के रूप में मशरूम का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा मशरूम के पापड़, जिम का सप्लीमेंट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, टोस्ट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि बनाए जाते हैं. विश्व में खाने योग्य मशरूम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां ही खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं. भारत में मुख्य रूप से पांच प्रकार के खाद्य मशरूमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है जिनमें सफेद बटन मशरूम, ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम, दूधिया मशरूम, पैडीस्ट्रा मशरूम और शिटाके मशरूम शामिल हैं.
उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरूम की मौसमी खेती करने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय उपयुक्त माना जाता है. इस दौरान मशरूम की दो फसलें ली जा सकती हैं. बटन मशरूम की खेती के लिए अनुकूल तापमान 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट और सापेक्षित नमी 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए. सफेद बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए कंपोस्ट तैयार करने की दो विधियां प्रचलित हैं. इन दोनों ही विधियों में कंपोस्ट मिश्रण को बाहर फर्श पर सड़ाया जाता है. फिर हवा से सुखाने के बाद मशरूम में डाली जाती है.
सफेद बटन मशरूम की खेती के लिए स्थाई और अस्थाई दोनों ही प्रकार के शेड का प्रयोग किया जा सकता है. जिन किसानों के पास पैसे की कमी है, वे बांस और धान के पुआल से बने अस्थाई शेड/झोपड़ी का प्रयोग कर सकते हैं. बांस और धान की पराली से 30 बाई 22 बाई 12 (लंबाई-चौड़ाई-ऊंचाई) फीट आकार के शेड/झोपड़ी बनाने का खर्च लगभग 30 हजार रुपये आता है. इसमें मशरूम उगाने के लिए 4 बाई 25 फीट आकार के 12 से 16 स्लैब तैयार की जा सकती हैं. इस स्लैब में मशरूम के बीज डालकर उसकी खेती की जा सकती है.(रिपोर्ट/कमलदीप)