बिहार में मॉनसून सीजन की हल्की से मध्यम बारिश का दौर जारी है. हालांकि, यह वर्षा इतनी अधिक नहीं है कि खरीफ फसल की खेती रफ्तार पकड़ सके. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई मध्य तक धान की रोपनी अभी भी निर्धारित सरकारी लक्ष्य की तुलना में लगभग 9 प्रतिशत ही हो पाई है. वहीं, खरीफ मक्का की खेती मात्र 30 प्रतिशत लक्ष्य को छू सकी. किसानों का कहना है कि मौसम की बेरुखी के कारण धान की रोपनी नाममात्र की ही हो पाई है, जबकि सामान्यतः इस समय तक करीब 60 प्रतिशत रोपनी पूरी हो जाती थी. हालत ये हैं कि जल स्तर नीचे चला गया है, जिससे पेयजल संकट का खतरा मंडराने लगा है.
दरअसल, खरीफ सीजन में सबसे अधिक खेती धान की होती है. लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी ने धान की खेती को बुरी तरह प्रभावित किया है. धान की नर्सरी तो तैयार है पर खेतों में रोपनी नहीं हो पा रही है. कृषि विभाग के अनुसार, इस खरीफ सीजन में धान की खेती का लक्ष्य करीब 37 लाख हेक्टेयर तय किया गया है, जबकि अब तक केवल 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही रोपनी हो सकी है, जो लक्ष्य का महज 9 प्रतिशत है. वहीं, जुलाई महीने की समाप्ति के साथ ही सही आंकड़ा आने की उम्मीद है. इसी तरह मक्के की खेती का लक्ष्य भी 2 लाख 85 हजार हेक्टेयर है, लेकिन अब तक केवल 86 हजार हेक्टेयर में ही मक्का की बुआई हो सकी है, जो लक्ष्य का लगभग 30 प्रतिशत है.
किसान तक से बातचीत में कैमूर जिले के किसान पिंकू सिंह और चंद्र प्रकाश बताते हैं कि उनके क्षेत्र में वही किसान धान की रोपाई कर पा रहे हैं, जिनके पास खुद का पंप और पानी का साधन है. बाकी किसान अब भी बारिश के इंतजार में आसमान की ओर नजरें टिकाए बैठे हैं. पिंकू सिंह कहते हैं कि कर्मनाशा नदी में पानी नहीं होने के कारण दुर्गावती प्रखंड अंतर्गत लरमा और विश्वकर्मा पंप कैनाल बंद हैं, जिससे खेती प्रभावित हो रही है. हालात इतने बिगड़ गए हैं कि पानी का जलस्तर 60 फीट से गिरकर अब 80 फीट तक पहुंच गया है, जिससे पेयजल संकट गहराता जा रहा है. वहीं, जहां, नहर का पानी आ रहा है, उन इलाकों में खेती शुरू है. इसके साथ ही रोहतास जिले के किसान विजय बहादुर सिंह और दिनेश कुमार का कहना है कि उनके इलाके में स्थिति थोड़ी बेहतर है, खासकर नहरों वाले क्षेत्रों में धान की खेती जारी है.
बक्सर के किसान आशुतोष पांडेय, सहरसा के सुदीप्त प्रताप सिंह और दरभंगा के धीरेन्द्र कुमार बताते हैं कि आमतौर पर जुलाई मध्य तक 40 प्रतिशत से अधिक धान की रोपनी हो जाती थी, लेकिन इस बार अभी केवल 10 प्रतिशत से थोड़ा अधिक ही हो पाई है. वह भी सिर्फ उन्हीं किसानों की जिनके पास निजी सिंचाई की व्यवस्था है या जिनके खेत नहरों के पास हैं. हालांकि, आशुतोष पांडेय कहते हैं कि जिनकी रोपनी हो भी गई है, उनके लिए भी धान की फसल को बचाना चुनौती बना हुआ है. बढ़ते तापमान के कारण सिंचाई की जरूरत अन्य दिनों की तुलना में अधिक बढ़ गई है और फसल में रोगों का खतरा भी मंडरा रहा है.
इसको लेकर मौसम विज्ञान केंद्र, पटना के वरिष्ठ वैज्ञानिक आशीष कुमार का कहना है कि अब तक मानसून सीजन की बारिश सामान्य से करीब 54 प्रतिशत कम हुई है. जून में सामान्य से 36 प्रतिशत तक कम बारिश दर्ज की गई थी. उन्होंने बताया कि अगले 24 घंटों के दौरान दक्षिण बिहार के बांका, नवादा, गया, रोहतास, भागलपुर, औरंगाबाद और कटिहार जिलों में भारी वर्षा की संभावना है, जबकि अन्य जिलों में हल्की बारिश होने की उम्मीद है.
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