Budget 2024: बजट की प्राथमिकता में नेचुरल फार्मिंग, क्या खेती की समस्याओं का मिलेगा समाधान?

Budget 2024: बजट की प्राथमिकता में नेचुरल फार्मिंग, क्या खेती की समस्याओं का मिलेगा समाधान?

केंद्र सरकार ने इस वर्ष के बजट में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि क्षेत्र के लिए बजट पेश करते हुए घोषणा की है कि अगले दो वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती में सहायता दी जाएगी और 1,000 बायो रिसर्च सेंटर स्थापित किए जाएंगे. देश के अधिकांश कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि प्राकृतिक खेती में इनपुट लागत कम होती है, लेकिन फसल की उपज की गारंटी नहीं होती. अगर बायो रिसर्च सेंटर के माध्यम से प्राकृतिक खेती में उत्पादन को लेकर संदेहों का समाधान होता है और केमिकल खेती की तरह उत्पादन मिलता है, तो यह सरकार, किसानों और उपभोक्ताओं सभी के लिए फायदेमंद साबित होगा.

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जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Jul 24, 2024,
  • Updated Jul 24, 2024, 7:40 PM IST

केंद्र सरकार ने प्राकृतिक खेती, जिसे नेचुरल फार्मिंग भी कहा जाता है, को बढ़ावा देने के लिए एक अहम कदम उठाया है. देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि क्षेत्र के लिए बजट पेश करते हुए कई घोषणाएं की हैं. अगले 2 साल में 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती में मदद की जाएगी और और 1,000 बायोरिसर्च सेंटर स्थापित करने की योजना है. गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत प्राकृतिक खेती के फायदे कृषि के हर मंच पर बताते हैं. प्राकृतिक खेती से सहमत होते हुए, सरकार अब प्राकृतिक खेती पर केवल बात नहीं कर रही है, बल्कि इसके लिए बजट में एक ठोस योजना भी तैयार की गई है. यह संकेत देता है कि देश को अब इस दिशा में आगे बढ़ना होगा. प्राकृतिक खेती में लागत कम लगती है, लेकिन उत्पादन को लेकर अभी भी संदेह बना हुआ है. अगर बायो रिसर्च सेंटर के माध्यम से प्राकृतिक खेती में फसल के उत्पादन को लेकर संदेहों का समाधान होता है और केमिकल खेती की तरह उत्पादन मिलता है, तो यह सरकार, किसान और उपभोक्ताओं सभी के लिए फायदेमंद होगा. 

संदेह के समाधान के लिए बायो रिसर्च सेंटर

बायो रिसर्च सेंटर के तहत प्राकृतिक खेती पर लैब टू लैंड नीति पर सरकार काम करेगी. वैज्ञानिक शोध और नवाचारों को सीधे किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए और किसानों को प्राकृतिक खेती में आने वाली समस्याओं शोध किया जाए जिससे प्राकृतिक खेती केवल मंच का बिषय ना रहे बल्कि इसका शोध देश के सभी एग्रो क्लाइमेट जोन के हिसाब से हो सके. इससे ये पता चलेगा कि देश के लिए प्राकृतिक खेती क्या स्थाई समाधान हो सकती है क्योकि अधिकतर कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राकृतिक खेती में इनपुट लागत कम होती है. लेकिन फसल की उपज की गारंटी नहीं होती. इसलिए, प्राकृतिक खेती पर अधिक रिसर्च करने की जरूरत है.

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इन संदेहों को दूर करने के लिए सरकार ने एक हजार बायो रिसर्च सेंटर खोलने की योजना बनाई है ताकि देश में खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट न हो. अभी हाल में लखनऊ में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हर किसान को अपने पूरे खेत में प्राकृतिक खेती करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने सुझाव दिया कि किसान अपने खाने के लिए छोटे हिस्से में प्राकृतिक तरीके से अन्न और फल-सब्जी उगाएं. धीरे-धीरे उपज दो से तीन साल में बेहतर होगी अपने प्राकृतिक खेती का एरिया बढ़ाते जाएगा.  

प्राकृतिक खेती को लेकर सजग सरकार 

प्राकृतिक खेती के समर्थकों का कहना है कि रासायनिक  इनपुट, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक किसानों, उपभोक्ताओं और धरती तीनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और जल संसाधनों पर भारी दबाव बनाते हैं. इसलिए, अब समय की मांग है कि ऐसी खेती अपनाई जाए जो उपज की सेहत को नुकसान न पहुंचाए, किसानों को उचित दाम दे और उपज की गुणवत्ता बनाए रखे. नेचुरल फार्मिंग की इस मुहिम को मजबूती देने की जरूरत है. हालांकि, सरकार इस दिशा में फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है. इसलिए प्राकृतिक खेती के साथ-साथ बायो रिसर्च सेंटर की स्थापना की जा रही है ताकि यह पता चल सके कि प्राकृतिक खेती एक स्थायी समाधान हो सकती है. अगर सरकार किसानों को रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर शिफ्ट करने में सफल होती है और इससे लाभ दिखाई देता है, तो किसान भी इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे और सरकार भी आश्वस्त हो जाएगी कि प्राकृतिक खेती देश की 1 अरब 40 करोड़ जनता की खाद्य सुरक्षा और किसानों के हितों का ध्यान रख सकती है.

सरकार का प्राकृतिक खेती से प्रेम क्यों?

सवाल यह है कि जब अधिकतर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि रासायनिक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती में फसल की उपज कम होती है, फिर केंद्र सरकार का प्रेम प्राकृतिक खेती के क्यो है. दरअसल, सरकार को प्राकृतिक खेती के जरिए खाद सब्सिडी, घटती मृदा की उर्वरता, जल संकट जैसी चुनौतियों से निपटने की उम्मीद है. सरकार का मानना है कि देश के वैज्ञानिक हरित क्रांति और केमिकल आधारित कृषि पर रिसर्च करते रहे हैं और इसी के आधार पर किसान खेती करते आए हैं. उसमें अब बदलाव लाने की जरूरत है क्योंकि केमिकल खाद की खेती से किसान और देश दोनों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. हमारे देश में 5 करोड़ टन केमिकल फर्टिलाइजर आयात होता है, जिसकी सब्सिडी 1 लाख करोड़ रुपये है. इससे दोगुना से ज्यादा पैसा अपने देश से बाहर के देशों को रासायनिक उर्वरकों की खरीदारी के लिए जा रहा है.

प्राकृतिक खेती के आंकड़े क्या कहते हैं?

नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा किए गए एक स्टडी के अनुसार, धान की खेती करने वाले किसानों ने रासायनिक आदानों (Chemical Inputs) के लिए औसतन 5,961 रुपये प्रति एकड़ खर्च किया, जबकि प्राकृतिक खेती की तकनीक का उपयोग करने वाले किसानों को केवल 846 रुपये प्रति एकड़ ही खर्च करना पड़ा. इसी प्रकार, प्राकृतिक खेती के माध्यम से मक्का की खेती करने वाले किसानों का उर्वरक खर्च रासायनिक खेती की तुलना में 93 फीसदी कम था. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस समय 11 राज्यों के 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती हो रही है. आंध्र प्रदेश इसका लीडर है. इसके अलावा छत्तीसगढ़, केरल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु भी ऐसी खेती करने वाले राज्यों में शामिल हैं.

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सफल प्राकृतिक खेती से सबका भला

प्राकृतिक खेती में लागत कम लगती है, लेकिन उत्पादन को लेकर अभी भी किसान और कृषि वैज्ञानिकों को संदेह है. अगर बायो रिसर्च सेंटर के माध्यम से प्राकृतिक खेती में फसल के उत्पादन को लेकर संदेहों का समाधान होता है और केमिकल खेती की तरह उत्पादन मिलता है, तो यह सरकार, किसान और उपभोक्ताओं सभी के लिए फायदेमंद होगा. सरकार का यह कदम न केवल किसानों के लिए बल्कि पर्यावरण और उपभोक्ताओं के लिए भी लाभकारी साबित हो सकता है.

 

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