पशुपालक को हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके पशुओं को गर्भाधान यानी कि गाभिन कराने का सही समय क्या होता है. अगर सही समय पता न रहे तो पशु के गाभिन होने की संभावना कम रहती है. सही समय का पता चल जाए तो पशुपालक तुरंत गर्भाधान कराने के उपायों पर गौर करेगा और समय पर यह काम हो जाएगा. पशुपालक को एक बार अपने पशु का मद काल पता चल जाए तो उसे तुरंत गर्भाधान कराना चाहिए. इसके कई फायदे होते हैं.
पशुओं में मद काल की शुरुआत होने के 12 से 18 घंटे बाद अर्थात मद काल के दूसरे अर्ध भाग में उसमें गर्भाधान कराना सबसे अच्छा रहता है. मोटे तौर पर जो पशु सुबह में गर्मी में दिखाई दे, उसमें दोपहर के बाद और जो शाम को मद में दिखाई दे उसमें अगले दिन सुबह गर्भाधान कराना चाहिए. टीका लगाने का उपयुक्त समय वह है जब पशु दूसरे पशु के अपने ऊपर चढ़ने पर चुपचाप खड़ा रहे. इसे स्टेंडिंग हीट कहते हैं. बहुत से पशु मद काल में रंभाते नहीं हैं लेकिन गर्मी के अन्य लक्षणों के आधार पर उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है.
वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आते रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव भी देखने को मिलता है. हिमाचल प्रदेश में किए गए कृत्रिम गर्भाधान पर एक विश्लेषण से पता चलता है कि जून महीने में सबसे अधिक गायें गर्मी में देखी गईं जबकि सबसे कम गायें अक्टूबर महीने में मद में पाई गईं. प्रजनन के लिहाज से गायों के लिए सबसे अच्छा महीना मई-जून-जुलाई रहा जिसमें 30 परसेंट गायें हीट में देखी गईं जबकि सबसे कम हीट सितंबर-अक्टूबर-नवंबर में देखी गई.
विश्लेषण से पता चला कि भैंसों में ऋतुओं का प्रभाव बहुत अधिक देखा गया. गायों के विपरीत भैंसों में मई-जून-जुलाई प्रजनन के हिसाब से सबसे खराब रहा जिसमें केवल 11 परसेंट भैंसें गर्मी में देखी गई जबकि अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर भैंसों के हीट के लिए सबसे अच्छा रहा जिसमें 44 परसेंट से अधिक भैंसों को मद में रिकॉर्ड किया गया. अगर पशुपालक इन महीनों का ध्यान रखें तो उन्हें अपने पशुओं का गर्भाधान कराने में आसानी रहेगी और यह काम बिना किसी बाधा के पूरा होगा.
पशुपालक को हीट की अवस्था की जानकारी भी रखनी चाहिए. जब पशु हीट की शुरुआती अवस्था में रहता है तो उसमें भूख में कमी आने लगती है. दूध उत्पादन में कमी हो जाती है. पशु का रंभाना व बेचैन रहना आम बात हो जाती है. योनि से पतले श्लैष्मिक पदार्थ निकलने लगते हैं. ऐसे पशु दूसरे पशुओं से अलग रहने लगते हैं. वे बार-बार पूंछ उठाते हैं. ऐसे पशु बार-बार पेशाब करते हैं और शरीर के तापमान में मामूली वृद्धि हो जाती है.