बकरी को पहले गरीबों की गाय बोला जाता था. लेकिन, बकरी अब सिर्फ दो जून की रोटी के लिए ही नहीं पाली जाती है. बकरी पालन अब बड़ा आर्थिक लाभ और दूसरों को नौकरियां देने वाला कारोबार बन चुका है. बकरी का दूध एक्सपोर्ट करने के मामले में भारत आज भी दुनियां में पहले स्थान पर है. मीट भी खूब एक्सपोर्ट हो रहा है. देश में भी बकरे-बकरियों की खूब डिमांड है. खासतौर पर दुर्गा पूजा और बकरीद के मौके पर बकरों के मुंह मांगे दाम मिलते हैं.
गाय-भैंस और पोल्ट्री के मुकाबले बकरी पालन बड़े फायदे का सौदा है. अगर बकरी पालन के पुराने तौर-तरीकों को छोड़कर साइंटिफिक पैटर्न पर और वैज्ञानिकों की सलाह से बकरी पालन किया जाए तो इसमे जोखिम न के बराबर रह जाता है. केन्द्र सरकार की मदद से देशभर में बकरी पालन की ट्रेनिंग देने वाले आधुनिक सेंटर चल रहे हैं.
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा के मुताबकि गाय-भैंस और पोलट्री-सूकर के मुकाबले बकरी पालन आसान और सस्ता तरीका है. जरूरत बस वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने की है. साथ ही बकरी पालक को अपनी बकरियों की तंदरुस्ती के लिए अलर्ट पर रहते हुए हर वक्त उनकी निगरानी करनी होगी. बकरी पालन की इकलौती और बड़ी कमी बस यही है कि गाय-भैंस के दूध के मुकाबले लोग स्मेल के चलते जल्दी इसके दूध को नहीं पीते हैं.
देश में बकरियों की करीब 37 नस्ल पाई जाती हैं. इसमे से कुछ सिर्फ दूध के लिए पाली जाती हैं तो कुछ दूध और मीट दोनों के लिए पाले जाते हैं. यूपी की खास नस्ल बरबरी है. इसी नस्ल के बकरे को बरबरा बकरा कहा जाता है. इसकी देश के अलावा अरब देशों में भी खासी डिमांड रहती है. इसके अलावा बंगाल का ब्लैक बंगाल, पंजाब का बीटल बकरा भी डिमांड में रहता है. इसके अलावा और भी नस्ल हैं जो मीट के लिए पाली जाती हैं.