गधे के नाम पर पता नहीं क्या-क्या बोला जाता है. डांट-डपट में सबसे अधिक इस्तेमाल गधे के नाम का होता है. कुछ नहीं करने वाले को गधा कहा जाता है. लेकिन तेलंगाना के एक युवक ने इस परिपाटी को बदल दिया है और गधा पालन को अपना करियर बनाया है. इस युवक का नाम है अखिल जिन्होंने तेलंगाना में डॉन्की फार्मिंग यानी कि गधा पालन (donkey farming) का काम शुरू किया है. अखिल का कहना है कि उनका डॉन्की फार्म तेलंगाना में पहला और पूरे देश में तीसरा है.
देश में गधा-गधी पालन का काम तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि इसके दूध की मांग बहुत अधिक है. दूध के दाम 6 हजार से 7 हजार रुपये लीटर तक चले जाते हैं. भारत में हलारी नस्ल के गधों की मांग सबसे ज्यादा है. इसका दूध बहुत महंगा बिकता है. गधी का दूध विदेशों में सप्लाई होता है, खासकर मध्य पूर्व के देशों में. इन देशों में गधी के दूध से साबुन और कॉस्मेटिक्स के सामान बनते हैं जो कि बहुत महंगे बिकते हैं. कहा जाता है कि जिन लोगों को गाय या भैंस के दूध से एलर्जी हो, वे गधी के दूध से कमा चला सकते हैं क्योंकि इसमें बहुत विटामिन और पोषक तत्व पाए जाते हैं.
अब आइए तेलंगाना के गधा फार्म के बारे में जानते हैं. इस फार्म को शुरू करने वाले युवक का नाम अखिल है जो आज अन्य किसानों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं. अखिल का गधा फार्म 18 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है. अखिल ने गधा फार्म शुरू करने और दूध के व्यवसाय का काम शुरू किया है. अखिल बताते हैं कि इस काम में उन्होंने 1 करोड़ रुपये की पूंजी लगाई है. अखिल कहते हैं कि गधी के दूध की बहुत अधिक मांग है, लेकिन गधी की तादाद इतनी नहीं है जिससे सप्लाई की कमी बनी रहती है. इस कमी को पूरा करने के लिए ही उन्होंने गधा फार्म शुरू किया है.
तेलंगाना के अलावा आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में गधा पालन का काम तेजी पकड़ रहा है. आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में लोग इस काम में दिलचस्पी ले रहे हैं. खास वजह ये है कि गधी का दूध ऊंची कीमतों पर बिकता है. अगर फार्म शुरू करें तो इस दूध का निर्यात बड़े पैमाने पर किया जा सकता है. गधी के दूध में प्रोटीन और वसा की मात्रा कम होती है जबकि लैक्टोज अधिक होता है. इसलिए जो लोग प्रोटीन और फैट से बचना चाहते हैं, या उन्हें कोई बीमारी है, तो वे गधी का दूध लेना पसंद करते हैं. इसके दूध का इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स और फार्मा में होता है. साबुन में इसका दूध डाला जाता है जबकि दवाओं में इसका प्रयोग खूब होता है. गधी का दूध शरीर की कोशिकाओं को ठीक करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
गधों में सबसे अधिक मांग हराली नस्ल की है क्योंकि ये आम गधों से थोड़े बड़े और सफेद रंग के होते हैं. हालांकि गधी का दूध बहुत अधिक नहीं होता और उनके चारे और खानपान पर दूध का उत्पादन बढ़ या घट सकता है. एक गधी दिन में आधा लीटर तक दूध देती है, लेकिन इसकी कीमत और क्वालिटी गाय-भैंस के दूध के कई गुना अधिक तक होती है.(अगली खबर में पढ़ें गधा फार्म के मालिक अखिल की पूरी कहानी)