CIRG की रिसर्च- एक स्ट्रा वीर्य में अब एक नहीं 5 बकरी के बच्चे लेंगे जन्म

CIRG की रिसर्च- एक स्ट्रा वीर्य में अब एक नहीं 5 बकरी के बच्चे लेंगे जन्म

सीआईआरजी के डायरेक्‍टर डॉ. मनीष कुमार चेटली का कहना है कि जितने सीमेन में अभी तक सिर्फ एक बकरी का कृत्रिम गर्भाधान कराया जा रहा था उतने इस नई तकनीक से 5 बकरियों का कृत्रिम गर्भाधान कराकर 5 स्‍वस्‍थ्‍य मेमने हासिल किए जा सकेंगे.

मेमने और बकरी के साथ सीआईआरजी के वैज्ञानिकों की टीम. मेमने और बकरी के साथ सीआईआरजी के वैज्ञानिकों की टीम.
नासि‍र हुसैन
  • Noida ,
  • Dec 06, 2022,
  • Updated Dec 06, 2022, 7:26 PM IST

एक बार फिर केन्‍द्रीय बकरी अनुसंधान संस्‍थान (सीआईआरजी), मथुरा ने कामयाबी की नई इबारत लिखी है. संस्‍थान ने देश में पहली बार लैप्रोस्‍कोपिक तकनीक का इस्‍तेमाल कर बकरी में आर्टिफिशल इंसेमीनेशन कराया है. जिसके 5 महीने बाद एक नर मेमने जन्‍म लिया है. मेमना चार दिन का हो चुका है. मेमना और मेमने की मां बुंदेलखंडी बकरी दोनों स्‍वस्‍थ्‍य हैं. संस्‍थान की इस कामयाबी के चलते कम सीमेन में ज्‍यादा से ज्‍यादा बकरियों को कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकेगा. इससे बकरियों की उस ब्रीड को बचाया जा सकेगा जिसकी संख्‍या न के बराबर रह गई है.

सीआईआरजी के डायरेक्‍टर डॉ. मनीष कुमार चेटली का कहना है कि जितने सीमेन में अभी तक सिर्फ एक बकरी का कृत्रिम गर्भाधान कराया जा रहा था उतने इस नई तकनीक से 5 बकरियों का कृत्रिम गर्भाधान कराकर 5 स्‍वस्‍थ्‍य मेमने हासिल किए जा सकेंगे. डॉ. चेटली ने नए जन्‍मे मेमने का नाम अजायश रखा है. उनका कहना है कि संस्‍कृत में बकरी को अजा कहते हैं.   

100 मिलियन सीमेन से जन्‍मेंगे 5 मेमने

बकरी में लैप्रोस्‍कोपिक आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक का इस्‍तेमाल कर मेमने का जन्‍म कराने वाले वैज्ञानिक योगेश कुमार सोनी ने किसान तक को बताया कि अभी तक दूसरी तकनीक का इस्‍तेमाल कर किसी एक नर बकरे के 100 मिलियन (एक स्ट्रा) सीमेन से एक ही मेमने का जन्‍म कराया जा रहा था. लेकिन हमारी तकनीक की मदद से एक स्ट्रा सीमेन में 5 मेमने जन्‍म ले सकेंगे. यानि की एक बकरी के लिए सिर्फ 20 मिलियन (20 फीसद) सीमेन काफी रहेगा. इस तकनीक से हम अच्‍छी नस्‍ल के बकरों के सीमेन का बेहतर और ज्‍यादा से ज्‍यादा इस्‍तेमाल कर सकेंगे.

अब बढ़ेगा अच्‍छी नस्‍ल के बकरे और बकरियों का कुनबा

योगेश कुमार सोनी ने बताया कि अब भविष्‍य में हम इस तकनीक का इस्‍तेमाल ज्‍यादा से ज्‍यादा और कई तरह की नस्‍ल की बकरियों में करेंगे. इससे इस तकनीक की सफलता का प्रतिशत भी सामने आएगा. साथ ही कम सीमेन में हमे ज्‍यादा से ज्‍यादा बच्‍चे मिल सकेंगे. अभी एक्‍सपर्ट की थोड़ी सी कमी आ रही है. लैप्रोस्‍कोपिक तकनीक भी थोड़ी महंगी है तो इसकी सफलता का प्रतिशत भी मायने रखता है.

यह बोले संस्‍थान के डायरेक्‍टर मनीष कुमार चेटली

सीआईआरजी के डायरेक्‍टर डॉ. मनीश कुमार चेटली का कहना है कि यह हमारे संस्‍थान के लिए बड़ी कामयाबी है. अभी तक विदेशों में इस तकनीक का इस्‍तेमाल सिर्फ भेड़ों पर हो रहा है. हमारे देश में भी पहली बार इस तकनीक का इस्‍तेमाल बकरियों पर किया गया है. हमारे वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं. इस टीम में शामिल वैज्ञानिकों में डॉ. एसडी खर्चे, डॉ. एसपी सिंह, डॉ. रवि रंजन, डॉ. आर पुरूषोत्मन आदि थे.

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