भेड़ और बकरी दो ऐसे पशु हैं जिनके मीट की मांग उनके ऊन और दूध के मुकाबले कहीं बहुत ज्यादा है. आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. मीट पर जोर देने की वजह से दो राज्यों में ऊन का उत्पादन जीरो हो गया है. एनिमल मार्केट एक्सपर्ट के मुताबिक न सिर्फ घरेलू बाजार बल्कि इंटरनेशनल मार्केट में भी कुछ खास नस्ल के भारतीय भेड़-बकरी बहुत पसंद किए जाते हैं. भेड़-बकरी की इसी खूबी के चलते ही इन्हें अब एटीएम भी कहा जाने लगा है. बकरीद का बाजार तो ऐसा है जहां पशुपालक पूरे साल पाले गए बकरों को बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं. बेशक दुनियाभर के देशों में सबसे ज्यादा भैंस का मीट एक्सपोर्ट होता है, लेकिन डिमांड और स्वाद के मामले में बकरे और भेड़ का मीट भी पीछे नहीं है.
बेशक इसके महंगा होने के चलते एक्सपोर्ट का आंकड़ा थोड़ा छोटा है, फिर भी दुनिया के 10 बड़े खरीदारों में खाड़ी के छह देश शामिल हैं. कतर में फीफा वर्ल्डा कप के दौरान तो भारत से बड़ी मात्रा में बकरे का मीट एक्सपोर्ट हुआ था. खास बात ये है कि खाड़ी देशों को लाइव बकरे भी बड़ी संख्या में एक्सपोर्ट होते हैं.
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एपीडा के आंकड़े बताते हैं कि भारत से एक्सपोर्ट होने वाले भेड़-बकरे के मीट के सबसे बड़े खरीदारों में खाड़ी के देश हैं. साल 2022-23 में टॉप-5 आयातक देशों में संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, मालदीव और ओमान शामिल हैं. मीट खरीदने वालों की लिस्ट में बहरीन भी शामिल है. भारत विश्व का भेड़-बकरी के मांस का सबसे बड़ा निर्यातक है. साल 2022-23 के दौरान भारत से 537 करोड़ रुपए के भेड़-बकरे के मीट का एक्सपोर्ट किया था. इस दौरान एक्सपोर्ट किए गए मीट की मात्रा 10 हजार मीट्रिक टन थी. साल 2022-23 में बकरे के मीट का 14.13 लाख टन और भेड़ का 10.26 लाख टन उत्पादन हुआ था.
केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के गोट एक्सपर्ट की मानें तो देश में बकरे और बकरियों की 39 नस्ल हैं. इसमे सात ऐसी नस्ल हैं जो खासतौर पर दूध के लिए पाली जाती हैं. वहीं पांच खास नस्ल के बकरों को देश ही नहीं विदेशों में, खासतौर पर खाड़ी देशों में बहुत पसंद किया जाता है. इसमे से ब्लैक बंगाल (पश्चिम बंगाल), बीटल (पंजाब) और बरबरा (यूपी) नस्ल का बकरा मीट के लिए बेहद पसंद किया जाता है.
एक्सपर्ट बताते हैं कि ये तीनों ही वो नस्ल हैं जिसके बकरे छरहरे और ठोस होते हैं. इनके अंदर चर्बी (वसा) की मात्रा कम होती है. इसके अलावा जमनापरी (यूपी) और जखराना (अलवर) नस्ल के बकरों को भी मीट के लिए बहुत पसंद किया जाता है. हमारे देश में ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे 3.75 करोड़, जखराना के 6.5 लाख, बीटल के 12 लाख और बरबरी के 47 लाख हैं. इसी तरह जमनापरी नस्ल के बकरे-बकरियों की संख्या 25.50 लाख है.
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देश में भेड़ के मीट का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. मीट उत्पादन के चलते ही दो राज्यों में ऊन का उत्पादन जीरो हो गया है. मीट के लिए काटी जा रहीं भेड़ों की संख्या साल 2021-22 के मुकाबले 2022-23 में 42 लाख ज्यादा थी. भेड़ के मीट की मांग एक्सपोर्ट से ज्यादा घरेलू बाजार में बढ़ रही है. यही वजह है कि ऊन का ज्यादा उत्पादन करने वाली नस्ल की भेड़ की संख्या कम होती जा रही है. मीट के लिए ज्यादा वजन वाली नस्ल की भेड़ें पाली जा रही हैं.
भारत के अलग-अलग राज्यों में भेड़ों की नेल्लोर, बेल्लोरी, मारवाड़ी, दक्कनी, कंगूरी, मरछेरी, पत्तनवाड़ी, हसन, जैसलमेरी, गद्दी, रामनद व्हाइट, चोकाला, छोटा नागपुरी, मद्रास रेड, नाली, मंडया, मालापुरा, बक्करवाल, पुगल और मागरा भेड़ों की खास नस्ल हैं. देश में भेड़ की 42 नस्लें पाली जाती हैं. देश में मौजूद सात करोड़ भेड़ों में से 35 फीसदी भेड़ तो सिर्फ पांच नस्ल की ही हैं.