यूपी के इस गांव में 500 साल से बंद है मांस-मछली और अंडा की बिक्री, जानिए क्या है इसकी वजह

यूपी के इस गांव में 500 साल से बंद है मांस-मछली और अंडा की बिक्री, जानिए क्या है इसकी वजह

बलिया जिले की चितबड़ागांव नगर पंचायत के अमरजीत सिंह ने बताया कि यहां एक भी मांस मछली या अंडा की दुकान नहीं है. 500 बरसों से यहां के लोग मांसाहार से दूर हैं. स्थानीय लो महान संतों के अनुयाई बनकर उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया है. मांसाहार त्याग परंपरा का पालन नगर पंचायत के 52 गांव के लोग आज भी कर रहे हैं.

इस परंपरा का पालन हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोग करते आ रहे है. (फोटो- किसान तक)इस परंपरा का पालन हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोग करते आ रहे है. (फोटो- किसान तक)
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Nov 26, 2023,
  • Updated Nov 26, 2023, 11:20 AM IST

Ballia News: वैदिक काल से ही सनातन धर्म में कई धार्मिक मान्यता चली आ रही हैं. हमारे समाज में आज भी लाखों लोग ऐसे हैं जो सालों से चली आ रहे नियमों का पालन कर रहे हैं. इसी कड़ी में आज हम आपको यूपी के बलिया जिले की कहानी बताने जा रहे हैं, जहां हजारों की संख्या में ग्रामीण मांस-मछली और अंडा का सेवन आज भी नहीं करते हैं. दरअसल, आज के जमाने में अंडा, मांस, मछली का सेवन आम बात है. जिन घरों में प्रचलन नहीं, वहां के बच्चे या युवा पीढ़ी बाजार या रेस्टोरेंट में जाकर इसका सेवन करते हैं. लेकिन बलिया में एक ऐसा अनोखा गांव है, जहां के लोग मांस, मछली तो दूर अंडा भी नहीं खाते. इसकी वजह से मांस, मछली की दुकानें नजर नहीं आती हैं. यहां के लोग चितबड़ा गांव में स्थित प्राचीन मंदिर रामशाला की मान्यता को मानते चले आ रहे हैं.

बलिया जिले में स्थित चितबड़ागांव नगर पंचायत है. यहां के नगर पंचायत अध्यक्ष अमरजीत सिंह हैं. किसान तक से खास बातचीत में अमरजीत सिंह ने बताया कि 400-500 साल पुरानी प्राचीन काल की बात है. भीखा साहब और गुलाल साहब संत का यह क्षेत्र तपोस्थली रही है. इन महान संतों को ग्रामवासी भगवान के रूप में मानते थे. इन लोगों का आदेश था कि यहां अंडा, मांस और मछली नहीं बिकेगी, नहीं तो विनाश हो जाएगा. उनके आदेश का असर आज भी बरकरार है. सिंह ने बताया कि लोगों ने महान संतों का अनुयाई बनकर न सिर्फ चलने का संकल्प लिया. बल्कि उनकी शुरू हुई परंपरा का पालन 52 गांव के लोग आज भी कर रहे है. उन्होंने बताया कि रामशाला बहुत पुराना प्राचिन मंदिर है, इस इलाके में 40 हजार से अधिक भक्त मंदिर की अस्था से जुड़े हुए हैं. ऐसे आसपास के कुल 52 गांव के लोग इस मंदिर के नियम का पालन कई वर्षों से करते आ रहे है.

बलिया जिले के चितबड़ा गांव में स्थित प्राचीन मंदिर रामशाला

चितबड़ा गांव के पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष बृज कुमार सिंह कहते हैं कि संतों ने एक दिन चरवाहों से कहा कि अपने गांव के किसी सम्मानित व्यक्ति को बुलाओ. चरवाहे जा कर दुनिया राय को बुला कर लाए. उनसे दोनों संतों ने कहा कि आप लोग हमारी बात मानो आज से इस गांव में मांस, मछली और अंडा बाजार में बेचने से मना कर दो, नहीं तो आप लोगों का विनाश हो जाएगा.

बृज कुमार सिंह ने आगे बताया कि फिर मुस्लिम परिवारों ने प्रश्न उठाया कि हमारे यहां मेहमान आते हैं तो हम इसी से उनकी सेवा करते हैं. तब संतों ने बताया कि आप बाहर से खरीद कर अपने घर में बना सकते हो, लेकिन इस क्षेत्र में मत बेचो. उनकी बात को गांववालों ने मान लिया. तब से लेकर आज तक इस गांव में कोई भी व्यक्ति बाजार में मांस, मछली और अंडा नहीं बेचता है. सिंह ने बताया कि भीखा साहेब और गुलाब साहेब के वचन को लोग भगवान का वाक्या मानते थे. उनके नाम पर रामशाला मंदिर का निर्माण हुआ. उन्होंने बताया कि इस परंपरा का पालन हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोग करते आ रहे है.

 

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