ग्रामीण क्षेत्रों में बकरी पालन आय का मुख्य स्रोत माना जाता है. छोटे और सीमांत किसान बकरी पालन पर निर्भर हैं. जिसके कारण समय के साथ इसमें बढ़ोतरी हो रही है. बकरी पालन भारत से जुड़ा एक लाभदायक व्यवसाय है. बकरी पालकों द्वारा कई विधियों को अपनाने का मुख्य आधार चारे की उपलब्धता, बकरी पालकों की आर्थिक स्थिति, चारागाह और जंगल की उपलब्धता और पाली जाने वाली बकरियों की संख्या पर निर्भर करता है. ऐसे में बकरी पालकों को कई बातों का खास ध्यान रखना होता है. इसी कड़ी में आइए जानते हैं बकरी पालन में क्या है खीस और इसका महत्व और यह मेमनों के लिए क्यों हैं जरूरी.
बढ़ते बकरी के मेमनों के समुचित विकास और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए उचित पोषण बहुत जरूरी है. जन्म के तुरंत बाद खीस खिलाने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है. जन्म के बाद मेमनों को खीस पिलाना बहुत जरूरी है. खीस में प्रोटीन की मात्रा साधारण दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन की तुलना में 4 गुना होती है, जो ऊर्जा का मुख्य स्रोत है. इतना ही नहीं, खीस में पाए जाने वाले प्रोटीन में मौजूद इम्युनोग्लोबुलिन के बच्चे के रक्त में अवशोषण की दर धीरे-धीरे कम होती जाती है, जो 24 घंटे बाद लगभग शून्य हो जाती है. इसलिए, जन्म के समय बच्चों की अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने और उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए खीस खिलाना बहुत जरूरी है.
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खीस की मात्रा मेमनों के शरीर के वजन के अनुसार दी जानी चाहिए. यह मात्रा शरीर के वजन के 1/10वें भाग के बराबर होनी चाहिए जिसे 24 घंटे में 2 या 3 बार दिया जाना चाहिए. पहला खीस बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसके शरीर को पोंछकर और साफ करके दिया जाना चाहिए. कोशिश यह होनी चाहिए कि पहला खीस जन्म के आधे घंटे के भीतर ही पिला दिया जाए. जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, खीस का महत्व कम होता जाएगा.
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पांच बकरियों की एक छोटी सी यूनिट लगाने में 20-25 हजार रुपये तक का खर्च आता है. लेकिन एक साल में इनकी संख्या बढ़कर 10-12 हो जाती है. एक साल की बकरी बाजार में कम से कम 5 हजार रुपये में बिकती है. इसके अलावा बकरी का दूध अपनी उच्च पाचन क्षमता के साथ-साथ डेंगू जैसी बीमारियों के दौरान प्लेटलेट्स बढ़ाने में कारगर होने के कारण बाजार में अच्छी कीमत पर बिकता है. इन वजहों से बकरी पालन किसानों के लिए मुनाफे का धंधा है.