Goat Farming: बकरी पालन की 7 बड़ी विशेषताएं जानिए, भेड़ और गाय पालन से भी है फायदेमंद

Goat Farming: बकरी पालन की 7 बड़ी विशेषताएं जानिए, भेड़ और गाय पालन से भी है फायदेमंद

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा के मुताबकि गाय-भैंस और पोलट्री-सूकर के मुकाबले बकरी पालन आसान और सस्ता तरीका है. जरूरत बस वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने की है.कारोबार के लिहाज बकरी पालन एक अच्छा क्षेत्र है. इसमे दूसरों को नौकरी देने के साथ ही खुद भी मोटी इनकम कर सकते हैं.

जानिए बकरी पालन की विशेषताएं जानिए बकरी पालन की विशेषताएं
सर‍िता शर्मा
  • Noida,
  • Feb 07, 2024,
  • Updated Feb 07, 2024, 11:41 AM IST

कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाने के लिए बकरी पालन तेजी से उभरता एक काम है. इसके लिए आपको सरकारी ग्रांट भी मिल सकती है. दूध, मांस व चमड़ा जैसी बहुमूल्य सामग्री बकरियों द्वारा प्राप्त होती हैं. साथ ही ग्रामीण अंचलों में बकरी पालन के क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं. यही कारण है कि प्रतिवर्ष 39.70 प्रतिशत बकरियों का उपयोग मांस के लिए करने के बाद भी इनकी संख्या 3.50 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. परन्तु अच्छी नस्ल, उचित आहारीय व्यवस्था एवं सही रख-रखाव के अभाव में इनका उत्पादन संतोषजनक नहीं है. उचित नस्ल का चुनाव देश में बकरियों की लगभग 20 नस्लें हैं परन्तु उत्तर प्रदेश में दुग्ध उत्पादन हेतु जमुनापारी तथा मांस हेतु बरबरी, मूल प्रजातियाँ सर्वश्रेष्ठ है. आइए जानते हैं क्क्त बकरी पालन की कौन-कौन सी विशेषता है. 

बकरी पालन के फायदे

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा के मुताबकि गाय-भैंस और पोलट्री-सूकर के मुकाबले बकरी पालन आसान और सस्ता तरीका है. जरूरत बस वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने की है. साथ ही बकरी पालक को अपनी बकरियों की तंदरुस्ती के लिए अलर्ट पर रहते हुए हर वक्त उनकी निगरानी करनी होगी. बकरी पालन पोल्ट्री और सूअर पालन के मुकाबले कम पैसों में शुरू किया जा सकता है. गाय-भैंस के 100 रुपये के मुकाबले बकरे-बकरी का चारा 20 रुपये का पड़ता है. कारोबार के लिहाज बकरी पालन एक अच्छा क्षेत्र है. इसमे दूसरों को नौकरी देने के साथ ही खुद भी मोटी इनकम कर सकते हैं.

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बकरी पालन की विशेषताएं

  • बकरी पालन कम पूँजी (अर्थात कम संख्या, कम स्थान, सस्ता आवास, घर के बेकार खाद्य पदार्थों अथवा मात्र चराई आदि) से शुरू किया जा सकता है.
  • बकरियाँ 10-12 माह में बच्चे देने योग्य हो जाती हैं तथा प्रायः एक से अधिक बच्चे देती हैं.
  • बकरियाँ प्रत्येक जलवायु में अपने को आसानी से ढाल लेती हैं.
  • बकरी का मांस सबसे अधिक लोकप्रिय है तथा इस पर कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं है बल्कि कुछ खास अवसर जैसे- होली, दुर्गापूजा एवं बकरीद आदि पर इसका महत्व बढ़ जाता है.
  • बकरी पालन, भेड़ तथा गाय पालन की तुलना में 120 तथा 135 प्रतिशत क्रमशः अधिक लाभकारी है.
  • एक बकरी प्रतिवर्ष लगभग 1000 रु० शुद्ध लाभ देती है.
  • एक बकरी प्रतिवर्ष लगभग 2 क्विंटल खाद उत्पन्न करती है.

बकरी की जमुनापारी नस्ल

है जो यमुना व चम्बल नदियों के कछार में स्थित है. जहाँ चराई की अच्छी सुविधा उपलब्ध होती है, वहाँ जमुनापारी अच्छी प्रकार पनपती है. यह बड़े आकार की बकरी होती है. इसका रंग सफेद होता है. प्रथम बार गर्भ धारण करने में लगभग 1.50 वर्ष लग जाते हैं. यह प्रतिवर्ष एक बार में 1-2 बच्चे देती है. इस प्रजाति की बकरियाँ 190-200 दिनों के दुग्धकाल में लगभग 200 कि.ग्रा. दूध देती है अर्थात 1.0 कि.ग्रा. प्रतिदिन. वर्ष भर में इन बकरियों का शारीरिक भार 22-26 कि.ग्रा. तक हो जाता है.

बरबरी नस्ल 

बकरी की यह सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है जो आगरा, एटा, मथुरा एवं अलीगढ़ जिलों में पाई जाती है. यह एक साल के अन्दर प्रजनन योग्य हो जाती है. बरबरी एक बार में 2-3 बच्चे तथा दो साल में तीन बार बच्चे देती है. इस तरह एक मादा प्रतिवर्ष लगभग 3.5 गुना की दर से वंश वृद्धि करती है. यह गुण देश के किसी अन्य प्रजाति में नहीं है. नर बच्चा एक साल में लगभग 15-18 कि.ग्रा. तक हो जाता है. मादा एक साल में लगभग 140 ली. दूध देती है. बरबरी प्रजाति को बाँधकर भी पाला जा सकता है.

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