बकरी को अधिक न खिलाएं रसीला चारा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

बकरी को अधिक न खिलाएं रसीला चारा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

अफरा रोग पशुओं में होने वाली एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है. इस बीमारी के होने पर यदि पशुओं का समय पर उपचार न किया जाए तो पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है. इस रोग में जब पशु अधिक गीला हरा चारा खाते हैं तो उनके पेट में दूषित गैसें- कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन-सल्फाइड, नाइट्रोजन और अमोनिया आदि जमा हो जाती हैं.

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बकरी को अधिक न खिलाएं रसीला चारा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारीबकरियों को भूल कर भी ना खिलाएं ये चारा

कृषि के साथ-साथ सहायक व्यवसाय के रूप में गाय, भैंस, बैल, बकरी, भेड़, मछली, मुर्गी, मधुमक्खी आदि पशुपालन का काम किया जा सकता है. बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे बहुत कम पूंजी और कम जगह में भी आसानी से किया जा सकता है. बकरी एक छोटे आकार का जानवर है, जिसे बहुत आसानी से पाला जा सकता है. इसे सीमांत और भूमिहीन किसानों द्वारा दूध और मांस के लिए पाला जाता है. इसके अलावा बकरी की खाल, बाल और रेशे का भी व्यावसायिक महत्व है. वर्तमान में बकरी पालन में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 25 से 33.3 फीसदी तक सब्सिडी देने का प्रावधान है. उचित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन से बकरी पालन को एक लाभदायक व्यवसाय बनाया जा सकता है. लेकिन बकरी पालन शुरू करने से पहले यह जरूरी है कि किसान को बकरी पालन से जुड़ी सारी जानकारी हो. खासकर खाने-पीने को लेकर. आपको बता दें कि अगर बकरी रसीला चारा खाती है तो वह कई बीमारियों की चपेट में आ सकती है. आइये जानते हैं क्या है ये पूरा मामला.

बकरियों को खिलाएं हरा चारा

न केवल बकरियों बल्कि गाय-भैंसों के आहार में हरा चारा बहुत खास माना जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार हरे चारे में प्रोटीन, खनिज, लवण और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. बकरियों द्वारा खाया जाने वाला हरा चारा कई रूपों में उपलब्ध है. जैसे कई प्रकार की घास, पेड़-पौधों की पत्तियां, फलियां, पत्तेदार सब्जियां, बरसीम और चरी आदि. यदि अच्छा चारागाह, झाड़ियां और पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध हो तो दाना मिश्रण देना आवश्यक नहीं है. अन्य परिस्थितियों में जैसे बढ़ते बच्चे को 100 ग्राम देना चाहिए.

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अनाज का रखें खास खयाल

अनाज मिश्रण, प्रजनन काल के दौरान नर को 200 ग्राम, गर्भवती बकरियों को 200 ग्राम (अंतिम 60 दिन) और एक ली. प्रतिदिन दूध देने वाली बकरियों को 250 ग्राम अनाज का मिश्रण देना चाहिए. अनाज मिश्रण बनाने के लिए स्थानीय उपलब्धता के आधार पर कोई भी सस्ता अनाज 50-60 प्रतिशत, दालें 20 प्रतिशत, खली 25 प्रतिशत, गेहूं की भूसी या चावल की भूसी 10 प्रतिशत, खनिज मिश्रण 2 प्रतिशत और साधारण नमक 1 प्रतिशत तैयार करें. बकरियों का आहार धीरे-धीरे बदलें. बरसीम, लूसर्न, लोबिया जैसे रसीले चारे अधिक मात्रा में न खिलाएं, इससे बकरियों को अफरा रोग हो सकता है. सुबह-सुबह जब घास पर ओस हो और जल जमाव हो उस क्षेत्रों में बकरियों को चरने के लिए न भेजें, इससे एंडोपरैसाइट्स का प्रकोप हो सकता है.

क्या है अफरा रोग?

अफरा रोग पशुओं में होने वाली एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है. इस बीमारी के होने पर यदि पशुओं का समय पर उपचार न किया जाए तो पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है. इस रोग में जब पशु अधिक गीला हरा चारा खाते हैं तो उनके पेट में दूषित गैसें- कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन-सल्फाइड, नाइट्रोजन और अमोनिया आदि जमा हो जाती हैं और उनका पेट फूल जाता है, जिसके कारण पशु अधिक बेचैन हो जाता है. इस रोग को अफ़रा या अफारा कहा जाता है.

क्या है अफरा रोग का उपचार

  • इस बीमारी का निदान पशु के खाने के इतिहास और मुख्य लक्षणों को देखकर ही किया जाता है.
  • तीव्र अवस्था में पशु आधे से तीन घंटे के अंदर मर जाता है और उपचार का समय नहीं मिल पाता है. कुछ उप-तीव्र स्थितियों में पशु को तेल पिलाना बहुत फायदेमंद होता है. पेट के बायीं पेडू पर दबाव डालकर अच्छी तरह मालिश करनी चाहिए. 
  • टिंचर हींग - 15 मि.ली
  • स्पिरिट अमोनिया एरोमैटिक्स - 15 मिली
  • तेल तारपीन - 40 मिलीलीटर
  • अलसी का तेल - 500 मि.ली
  • इन सबको मिलाकर एक खुराक बनाकर वयस्क पशु को देनी चाहिए.
  • पशु के रूमेन से हवा निकालने के लिए या तो उसकी जीभ को बार-बार मुंह से बाहर निकालना चाहिए या मुंह में लकड़ी की बेड़ी या मुंह पर पट्टी डालनी चाहिए. ऐसा करने से पशु को सांस लेने में कुछ राहत मिलती है. फेफड़ों पर दबाव दूर करने के लिए पशु को ऐसे स्थान पर बांधना चाहिए जहां उसका अगला धड़ ऊंचाई पर हो.
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