एक्सपर्ट के मुताबिक इंसानों को सुबह से शाम तक कर्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स की जरूरत होती है. ठीक इसी तरह से पशुओं को भी इसी तरह की बैलेंस्ड डाइट चाहिए होती है. इस तरह की डाइट मिलने के बाद ही पशु दूध भी ज्यादा और क्वालिटी का देता है, और साथ में मीट का उत्पादन भी बढ़ता है. पशुओं को लगातार एक ही तरह का हरा चारा देना बहुत ज्यादा फायदेमंद नहीं रहता है. सुबह से शाम तक पशुओं को दिए जाने वाले हरे चारे में कर्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स कैसे शामिल किए जाएं.
किस हरे चारे के साथ कौनसा हरा चारा मिलाकर खिलाया जाए जिससे पशुओं को जरूरत की सभी चीजें मिल जाएं, इस बारे में और डिटेल से जानने के लिए किसान तक ने बात की केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ खान से.
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डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसान तक को बताया कि नेपियर घास बहुवर्षिय चारे में शामिल है. बहुवर्षिय चारा वो होता है जो एक बार लगाने के बाद लम्बे वक्त तक होता है. जैसे नेपियर घास. एक बार नेपियर घास लगाने के बाद करीब पांच साल तक लगातार आप इससे चारा ले सकते हैं. लेकिन सवाल ये है कि पशुओं को सिर्फ एक ही तरह के हरे चारे पर नहीं रखना चाहिए. जैसे अगर नेपियर घास दे रहे हैं तो उसके साथ दलहनी चारा भी उगा लें. जैसे सितम्बर में नेपियर घास के साथ लोबिया लगाया जा सकता है. मतलब नेपियर के साथ सीजन के हिसाब से दूसरा हरा चारा लगा सकते हैं.
अब जब भी आप अपने पशु को नेपियर घास खाने के लिए दें तो उसके साथ उसे दलहनी चारा जरूर दें. नेपियर घास में अगर कर्बोहाइड्रेड है तो लोबिया में प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स शामिल हैं. और इसी तरह की खुराक भेड़-बकरी हो या फिर गाय-भैंस उन्हें इसकी जरूरत होती है. इसे खाने के बाद पशु से दूध ज्यादा मिलता है तो उनके वजन में भी बढ़ोतरी होती है और मीट का स्वाद बढ़ता है.
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साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ ने बताया कि सर्दियों के मौसम में हरे चारे की थोड़ी कमी हो जाती है. नेपियर घास भी उतनी नहीं मिल पाती है. दूसरी बात ये कि जमीन पर पड़े चारे के मुकाबले बकरी डाल से तोड़कर खाना पसंद करती है. इसमे बकरी को एक खास खुशी भी महसूस होती है. अगर मैदान में हरा चारा नहीं है तो हम ट्री फोडर यानि नीम, गूलर, अरडू आदि पेड़ की पत्तियां खिला सकते हैं. अगर स्वाद और पसंद की बात करें तो बकरियां इन्हें खाना खूब पसंद करते हैं. सर्दियों में तो खासतौर पर नीम की पत्तियां खाना बहुत पसंद करती हैं.
और एक खास बात ये कि पेड़ों की पत्तियां बकरियों के लिए चारा तो होती ही हैं, साथ में दवाई का काम भी करती हैं. जैसे नीम खाने से पेट में कीड़े नहीं होते हैं. दूसरा ये कि बरसात में होने वाले हरे चारे में पानी की मात्रा बहुत होती है. इससे डायरिया होने का डर बना रहता है. जबकि पेड़ों में पानी कम होता है तो डायरिया की संभावना ना के बराबर रहती है.