गाय-भैंस, भेड़-बकरी के कान में लगे रंग-बिरंगे टैग पर अक्सर आपकी नजर जरूर पड़ती होगी. साथ ही दिमाग में ये सवाल भी उठता होगा कि आखिर इसका फायदा क्या है. क्या ये पशुओं की पहचान और उनकी गिनती भर के लिए ही है. लेकिन इसका जवाब है नहीं. असल में पशुओं के कान में लगे ये टैग इंसानों की तरह से ही पशुओं का आधार कार्ड है. इस टैग में 12 नंबर होते हैं. इस नंबर से पशु के बारे में हर तरह की जानकारी दी गई होगी है. टैग पर लिखे नंबर को बेवसाइट में डालते ही गाय-भैंस का पूरा चिठ्ठा खुल जाता है.
इसी के आधार पर पशु पालक को कई तरह की योजनाओं का फायदा मिलता है. हाल ही में केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने बताया है कि अब तक करीब 29 करोड़ से ज्यादा छोटे-बड़े पशुओं को इस तरह के खास टैग नंबर जारी किए जा चुके हैं. इस टैग के एक नहीं कई सारे फायदे हैं.
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एनिमल एक्सपर्ट मनोहर राय ने किसान तक को बताया कि जब पशु का रजिस्ट्रेशन होता है और उसके कान में टैग लगा होता है तो सरकारी केन्द्रों पर मुफ्त इलाज कराने में आसानी रहती है. कई बार अगर पशु गंभीर रूप से बीमार होता है तो डॉक्टरों की टीम घर तक भी आ जाती है. टैग लगा होने से पशु के टीकाकरण का पूरा रिकॉर्ड सरकार के पास रहता है. जब टीका लगने की जरूरत होती है तो सरकारी टीम खुद ही संपर्क कर लेती है.
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अगर पशु का पंजीकरण है तो फिर पशु का बीमा कराने में आसानी रहती है. कई बार तो सरकारी योजनाओं के तहत खुद ही बीमा हो जाता है. और जब पशु के साथ कोई अनहोनी होती है तो वक्त से पूरा पैसा मिल जाता है. इतना ही नहीं केन्द्र और राज्य सरकारें समय-समय पर पशु पालकों के लिए कई तरह की योजनाएं लाती हैं. अगर पशु का पंजीकरण पहले से हो रखा है तो योजनाओं का पूरा फायदा मिलने की संभावना रहती है और जल्दी मिलता है. साथ ही पशुओं की संख्या मालूम होने पर सरकार को योजना बनाने में भी मदद मिलती है. टैगिंग होने के बाद से पशुओं के बीमाकरण में भी धोखाधड़ी की घटनाएं भी कम हो गई हैं.