Explained: इस मॉनसून बाढ़ और अत्यधिक बारिश से भारत के समग्र कृषि उत्पादन को नहीं होगा नुकसान, जानिए क्यों

Explained: इस मॉनसून बाढ़ और अत्यधिक बारिश से भारत के समग्र कृषि उत्पादन को नहीं होगा नुकसान, जानिए क्यों

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि भारी बारिश, अचानक आई बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं ने हाल के हफ्तों में उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों को तबाह कर दिया है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं और दस लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. हालांकि, रकबे के शुद्ध आंकड़ों की समीक्षा से पता चलता है कि इन मानसून संबंधी चुनौतियों के बावजूद भारत के समग्र कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है.

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Explained: इस मॉनसून बाढ़ और अत्यधिक बारिश से भारत के समग्र कृषि उत्पादन को नहीं होगा नुकसान, जानिए क्यों पिछले कुछ सालों से अगस्त के महीने में ज्यादा बारिश हो रही है (Photo: Pixabay)

न्यूयॉर्क टाइम्स में 4 सितंबर को एक रिपोर्ट छपी जिसके अनुसार, "बाढ़, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं, भारी कर्ज के बोझ तले दबे किसानों के लिए बुरी खबर है, क्योंकि भारत टैरिफ वार्ता में राष्ट्रपति ट्रम्प के दबाव में है." न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, "भारी बारिश, अचानक आई बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं ने हाल के हफ़्तों में उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों को तबाह कर दिया है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं और दस लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. इस मौसम ने ख़ास तौर पर बेवक़्त समय पर फसलों को भी बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है." हालांकि, कुल बुवाई क्षेत्र के ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इन असमानी चुनौतियों के बावजूद भी भारत के समग्र कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है.

इस साल के मानसून में हुई ऐतिहासिक बारिश

ये बात सही है कि अगस्त का महीना कई सालों में सबसे अधिक बारिश वाला रहा, और सितंबर में भी अब तक सामान्य से अधिक बारिश हुई है, कम से कम भारत के कुछ भागों में तो ऐसा ही हुआ है. अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितंबर के पहले सप्ताह के दौरान हुई भारी बारिश के कारण पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ गई, जिसके कारण व्यापक स्तर पर जनजीवन और आजीविका को क्षति हुई. 

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, भारत में इस साल के मानसून में अब तक ऐतिहासिक औसत की तुलना में 7.6 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है. दो प्रमुख खरीफ राज्यों, पंजाब और हरियाणा में भी व्यापक फसल नुकसान की खबरें आई हैं. दूसरी ओर, बिहार और असम जैसे राज्यों में मानसून की कमी 30 प्रतिशत से अधिक रही है, जिसका असर वहां खरीफ की बुवाई पर पड़ने की संभावना है.

Rising Crop Sown Area Spurs Output Growth
रकबे में वृद्धि से उत्पादन में भी वृद्धि

7 प्रमुख खरीफ फसलों में से 4 के रकबे में वृद्धि

हालांकि, पिछले पांच सालों के कुल रकबे और उत्पादन के आंकड़ों के विश्लेषण से गेहूं, मक्का और मोटे अनाज जैसी फसलों के लिए लगभग एक-से-एक सहसंबंध का पता चलता है. जब कुल रकबा बढ़ता है, तो आमतौर पर उत्पादन भी बढ़ता है. उदाहरण के लिए, चावल के मामले में, 2022-23 को छोड़कर, 2020-21 से हर साल इसकी शुद्ध बुवाई क्षेत्र में वृद्धि हुई है. इसी प्रकार, 2022-23 को छोड़कर, चावल का उत्पादन भी सभी सालों में थोड़ा-थोड़ा बढ़ा है.

हाल ही में आए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल खरीफ चावल के शुद्ध बुवाई क्षेत्र में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 7 प्रमुख खरीफ फसलों में से चार फसलों के शुद्ध बुवाई क्षेत्र में वृद्धि हुई है, जबकि तिलहन, जूट और कपास के शुद्ध बुवाई क्षेत्र में मामूली गिरावट देखी गई है. मोटे अनाज के रकबे में सबसे अधिक 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है.

Net Sown Area Expands for Key Crops
प्रमुख फसलों के लिए शुद्ध बुवाई क्षेत्र का विस्तार

दलहन का भी रकबा बढ़ा 

लगातार चार सालों की गिरावट के बाद, इस साल दालों का रकबा भी बढ़ा है. यह जानकरी उत्साहवर्धक है कि हाल के वर्षों में बोए गए क्षेत्रफल में कमी के बावजूद, 2024-25 में दालों का उत्पादन लगभग 7.5 प्रतिशत बढ़ा है. अब शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल में वृद्धि के साथ, दालों के उत्पादन के लिए एक और मजबूत वर्ष की संभावना प्रतीत होती है.

मज़बूत कृषि उत्पादन से मुद्रास्फीति का माहौल सामान्य बनाए रखने में मदद मिलेगी. दरअसल, भारत की खाद्य मुद्रास्फीति अक्टूबर 2024 से नीचे की ओर जा रही है और जून और जुलाई में नकारात्मक हो गई थी. कुल रकबे के आंकड़ों के शुरुआती संकेतों को देखते हुए, इस प्रवृत्ति में बड़े उलटफेर की संभावना कम ही लगती है.

(रिपोर्ट- मयंक मिश्रा)

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