Crop Protection: दिसंबर-जनवरी में पाले से रहें सावधान, जरा सी चूक फसलों को पहुंचा सकती है भारी नुकसान

Crop Protection: दिसंबर-जनवरी में पाले से रहें सावधान, जरा सी चूक फसलों को पहुंचा सकती है भारी नुकसान

दिसंबर से जनवरी के महीने में पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फसलों को काफी नुकसान हो सकता है. जब ठंड अधिक होती है, शाम को हवा रुक जाती है, रात्रि में आकाश साफ होता है और आर्द्रता अधिक होती है, उन रातों में पाला पड़ने की संभावना सबसे अधिक होती है.

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Crop Protection: दिसंबर-जनवरी में पाले से रहें सावधान, जरा सी चूक फसलों को पहुंचा सकती है भारी नुकसानपाले से फसलों को बचाना जरूरी

आजकल जलवायु और वातावरण में काफी परिवर्तन देखा जा रहा है. इस समय, ओस, कोहरा, ठंड, पाले और धुंध का असर धीरे-धीरे दिखाई दे रहा है. इस बदलते मौसम के लिए किसानों को तैयार रहना होगा. स्वच्छ और शांत रातों में, जब धरती तेज गति से ठंडा होती है, तब ओस उत्पन्न होती है. रात्रि में जब बादल होते हैं तो ओस नहीं पड़ती है. दिसंबर से जनवरी के महीने में पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फसलों को काफी नुकसान हो सकता है. जिन दिनों में ठंड अधिक होती है, शाम को हवा का चलना रुक जाता है. रात्रि में आकाश साफ होता है और आर्द्रता अधिक होती है, उन रातों में पाला पड़ने की संभावना सबसे अधिक होती है. पाले से गेहूं और जौ में 10 से 20 फीसदी और सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम, मटर, चना, गन्ने आदि में लगभग 30 से 40 फीसदी तक और सब्जियों में जैसे आलू, टमाटर, मिर्ची, बैंगन आदि में 40 से 60 फीसदी तक नुकसान होता है. 

पाला कब और क्यों पड़ता है

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज, पश्चिम चंपारण के वरिष्ठ वैज्ञानिक हेड डॉ आर.पी. सिंह ने किसान तक से चर्चा के दौरान बताया कि दिसंबर और जनवरी में तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होते हुए शून्य डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है. ऐसी स्थिति में पाला पड़ता है. पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं के रिक्त स्थानों में उपलब्ध जलीय घोल ठोस बर्फ में बदल जाता है, जिसका घनत्व अधिक होने के कारण पौधों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. इसके कारण कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, वाष्प उत्सर्जन और अन्य दैहिक क्रियाओं में बाधा पड़ती है जिससे पौधा नष्ट हो जाता है.

फसल सड़ने और गलने लगती है

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार पाला के प्रभाव से पत्तियां झुलसने लगती हैं. फूलो में सिकुड़न आने लगती है और वे झड़ने लगते हैं. फल कमजोर और कभी-कभी मर भी जाता है. पाले से फसल का रंग समाप्त होने लगता जिससे पौधे कमजोर और पीले पड़ने लगाते हैं और पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखने लगता है. फसल सघन होने से पाले का असर अधिक दिखता है क्योंकि पौधों के पत्तों तक धूप, हवा नहीं पहुंच पाती है. इससे पत्ते सड़ने लगते हैं और जीवाणुओं, फफूंदों का प्रकोप तेजी से होता है. इससे पौधों में कई बीमारियों का प्रकोप बढ़ने लगता है. फल के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं, जिसके कारण गुणवत्ता और स्वाद भी खराब हो जाता है. पाले के प्रभाव से फल और सब्जियों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ने लग जाता है, जिससे सब्जियों की गुणवत्ता और उपज खराब और घट जाती है. इससे कभी-कभी शत प्रतिशत सब्जियों की फसल नष्ट हो जाती है.

पाले से फसलों का भारी नुकसान

डॉ आर. पी सिंह ने बताया कि पाला पड़ने से पाले के कारण अधिकतर पौधों के पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लग जाती हैं. फूलों के गिरने से पैदावार में कमी आ जाती है. पत्तियां और फूल मुरझा जाते हैं और झुलस कर बदरंग हो जाते हैं. दाने छोटे बनते हैं. फूल झड़ जाते हैं. उत्पादन अधिक प्रभावित होता है. पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैंगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता, आम और अन्य नवरोपित फसलें अधिक प्रभावित होती हैं.

पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इसकी चपेट में आ जाती हैं. पाला गेहूं और जौ में 10 से 20 परसेंट और सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम, मटर, चना, गन्ने आदि में लगभग 30 से 40 परसेंट तक और सब्जियों जैसे टमाटर, मिर्ची, बैंगन आदि में 40 से 60 परसेंट तक नुकसान होता है.

फसलों को बचाने के उपाय 

खेतों की मेड़ों पर घास फूस जलाकर धुआं करें. ऐसा करने से फसलों के आसपास का वातावरण गर्म हो जाता है. पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं. पाले से बचाव के लिए किसान फसलों में सिंचाई करें. सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है. पाले के समय दो व्यक्ति सुबह के समय एक रस्सी को उसके दोनों सिरों को पकड़कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.

अगर नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो उसको घास फूस की टाटियां बनाकर अथवा प्लास्टिक से ढकें और ध्यान रहे कि दक्षिण पूर्व भाग खुला रखें ताकि सुबह और दोपहर धूप मिलती रहे. पाले से दीर्घकालिक बचाव के लिए उत्तर पश्चिम मेंड़ पर और बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम और जामुन आदि को लगाएं तो सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है.

फसलों पर इनका करें छिड़काव

पाले से बचाव के लिए पाला पड़ने के दिनों में यूरिया की 20 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए. अथवा थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें. अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें.

इसके आलावा घुलनशील सल्फर 80% डब्लू डी जी की 40 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है. ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है. वह जमने नहीं पाता है, फसलें पाले से बच जाती हैं. फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम और 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है.

 

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