
केमिकल खेती और पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से खेती का लाभ का दायरा सिकुड़ता जा रहा है. इसके कारण कई किसान खेती छोड़कर अन्य सेक्टरों की तरफ रुख कर रहे हैं. हालांकि, इन परेशानियों के बीच खेत के जमीन के उन टुकड़ों से कुछ किसानों ने खुद ही हल निकाला है. खेती में पुरानी परंपराओं के साथ नई तकनीकों से जोड़कर अपना लाभ का दायरा बढ़ाया है क्योंकि सभी मेहनत करते हैं, पर सही दिशा में और सही तरीके से की गई मेहनत ही ज्यादा फल देती है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण राजस्थान के हनुमानगढ़ के कृष्ण कुमार जाखड़ हैं. इन्होंने प्राकृतिक खेती की राह अपनाते हुए समृद्धि पाई है.
राजस्थान के हनुमानगढ़ निवासी कृष्ण कुमार जाखड़ किसान तक से बताते हैं कि जब खाद और डीजल के बढ़ते दाम के कारण फसलों से नुकसान होने लगा और किसी में भी लाभ नहीं मिला, तो उन्होंने बागवानी का रास्ता अपनाया. जाखड़ ने बताया कि फसलो में पानी के लिए ज्यादा डीजल खर्च और केमिकल उर्वरक की जरूरत पड़ती थी. इससे खेती में ज्यादा लागत लगती थी. इस समस्या के समाधान के लिए फ़सल की जगह किन्नू की प्राकृतिक तरीके से बागवानी करने का निर्णय लिया क्योंकि किन्नू के पौधों को कम पानी की जरूरत होती है.
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किसान जाखड़ ने 30 एकड़ में किन्नू का बागीचा लगा रखा है. एक एकड़ में 120 पौधे लगाए हैं और इस तरह उनके लगभग 3600 पौधों का विशाल बाग है. एक पौधे से औसतन उनको 100 किलो का उत्पादन मिलता है. इस तरह हर साल किन्नू के बाग से 350 टन अधिक उत्पादन मिलता है, जिसे बेचकर उन्हें लाखों की आमदनी होती है. प्राकृतिक तरीके से इस बागवानी में लागत भी बहुत कम आती है.
कृष्ण कुमार जाखड़ ने किसान तक को बताया कि 2007 में किन्नू की बागवानी लगाने के साथ ड्रिप सिस्टम लगवाया था. लेकिन राजस्थान में उनके एरिया में गंदा पानी होने के कारण ड्रिप की पाइप चोक हो जाती है, जिसमें बिजली का खर्चा ज्यादा आता है. इस परेशानी को दूर करने के लिए वे पौधों की कतारों के बीच 15 फीट बची जगह में v आकार का एक नाला बनाकर पौधों को पानी देते हैं. इससे खरपतवार भी कम उगते हैं और पौधो में पानी भी 10 प्रतिशत ही लगता है. पानी को पौधे से थोड़ी दूरी पर दिया जाता है जिससे पौधे की जड़ें फैलाव करती हैं और पौधा मजबूत होता है.
कृष्ण कुमार का कहना है कि इस विधि से उनके किन्नू के बाग में फल भी अधिक लगता है. वहीं इससे नाले के दोनों तरफ कोई भी फसल लगाया जा सकता है जिसको अलग से पानी देने की जरूरत नहीं होती है और अगर फसल का अवशेष बचता है तो उसे बायोमास खाद के रूप में प्रयोग करते हैं.
जाखड़ की बागवानी का दूसरा खास पहलू ये है कि वे किन्नू की बागवानी में पूरी तरह से प्राकृतिक खाद और दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. इसके लिए वे जीवामृत बनाते हैं. इसके लिए वे 10 किलोग्राम गाय का गोबर, 02 लीटर गौमूत्र, गुड़ 01 किलोग्राम, बेसन 200 ग्राम के साथ बरगद और पीपल की छाल को 200 लीटर पानी मे मिलाकर छाया में तीन से चार दिन के लिए रख देते हैं. इस प्रकार जीवामृत बन कर तैयार हो जाता है. इसके बाद एक एकड़ बाग में छिड़काव के लिए 10 लीटर जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करते हैं जिससे बागों में फलत अच्छी होती है. उन्होंने बताया कि एक देसी गाय से 30 एकड़ की खेती की जा सकती है.
देसी गाय के गोबर और मूत्र से तैयार घोल का प्रयोग कर किसान फसल की पैदावार बढ़ाने और फसल की बीमारी की रोकथाम कर सकते हैं. इससे न सिर्फ किसान की अच्छी आमदनी होगी, बल्कि किसान अच्छी गुणवत्ता और जहर मुक्त अन्न पैदा कर सकता है. उन्होंने बताया कि किन्नू के बाग की टहनियां सूख जाती हैं तो पौधे के उपरी तने को काट देना चाहिए, ताकि सूर्य की किरणें पौधे के अंदर तक जा सकें. इससे फूल और फल ज्यादा लगते हैं. पौधों में रोग बीमारी लगने पर अग्निहोत्र की राख काम में लेते हैं. अग्नि अस्त्र और अर्क का भी इस्तेमाल करते हैं. पौधों की सिंचाई के साथ जीवामृत का छिड़काव करते हैं.
जाखड़ बताते हैं कि बागवानी खेती से निकले बायोमास को मल्चिग में प्रयोग करते हैं जिससे बागों में कम सिचाई करनी पड़ती है. वही दूसरे खेतों और बागों से निकले बायोमास से 25 केवी उर्जा उत्पन्न करते हैं. इस उर्जा का उपयोग सिंचाई के लिए ट्यूबेल में उपयोग करते हैं जिससे उन्हें डीजल और पेट्रोल पर लागत खर्च नहीं करना पड़ता है. इस तरह वे अपनी खेती में जैविक तरीके से खेती करते हैं और बायोमास का उपयोग कर अपनी खेती में लाभ का दायरा बढ़ाया है.
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कृष्ण कुमार जाखड़ ने किसान तक को बताया कि किन्नू के फल जैविक होने के कारण बाजार में केमिकल फल की तुलना में 04 से 05 रुपये किलो अधिक बिकता है. इससे उनको अधिक लाभ मिलता है. कृष्ण कुमार का कहना है कि फल बागवानी में भी अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक और रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. इसके कारण मानव समाज ही नहीं बल्कि पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इनके लगातार इस्तेमाल से खेत भी बंजर होते जा रहें हैं. इसके कारण किसानों को खेतों से उत्पादन कम और लागत खर्च ज्यादा होने के कारण बहुत से किसान खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. बागवानी में कुदरती तरीके से खेती कर कम खर्च में ज्यादा आय प्राप्त किया जा सकता है.
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