वैसे तो हर किसी का गांव से नाता है. मगर हर किसी के नाम से आप उसके घर तक नहीं पहुंच सकते हैं. हालांकि यह बात किसी सेलिब्रिटी के लिए लागू नहीं होता है. लेकिन पश्चिमी चंपारण जिले के एक ऐसे किसान हैं, जो किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं हैं. इनका नाम ही उनके गांव का पता बताने के लिए काफी है. किसान तक ने भी अपनी चुनावी यात्रा के दौरान इस किसान से मुलाक़ात की. उनका नाम पश्चिमी चंपारण जिला मुख्यालय बेतिया से लेकर उनके गांव तक पहुंचने के लिए काफी रहा. यात्रा के दौरान जब भी गांव का नाम याद नहीं आता तो किसान का नाम पूछते. लोग बिना विचार और मंथन के घर तक रास्ता बता देते. हम बात कर रहे हैं नरकटियागंज ब्लॉक के बड़निहार गांव के विजय कुमार पांडेय उर्फ आलू पांडेय की. वे आलू पांडेय के नाम से ही काफी मशहूर हैं.
दोपहर के करीब बारह बजने वाले होंगे. उस गर्मी में भी आलू पांडेय खेतों में काम करते हुए नजर आए. अस्सी के पार उम्र पहुंचने के बाद भी खेती से लगाव कम नहीं दिखा. जहां वह कृषि के क्षेत्र में कई तरह के फल, सब्जियों के साथ रुद्राक्ष की खेती कर रहे हैं. वहीं गोबर से निकलने वाला मिथेन गैस का उपयोग सीएनजी गैस में बदलकर वाहन और गैस रसोई में कर रहे हैं.
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आलू पांडेय कहते हैं कि 1974 और 1977 के जेपी आंदोलन में लालू यादव और नीतीश कुमार काफी करीबी साथी थे. लेकिन, उस दौरान यह महसूस हुआ कि देश की सेवा केवल राजनीति में रहकर ही नहीं किया जा सकता. बल्कि कृषि देश के विकास में सबसे बड़ी सेवा है. 1977 में एक कृषि से जुड़ी पत्रिका पढ़ी और खेती में कदम रखा. जबकि 1984 से आधुनिक विधि से आलू की खेती शुरू की. पिछले 40 साल से आलू के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. इसकी बदौलत कृषि के क्षेत्र में कई पुरस्कार मिल चुके हैं जिसमें मुख्य रूप से 2019 में आलू गौरव सम्मान, बिहार आलू अनुसंधान केंद्र से सर्वश्रेष्ठ किसान का सम्मान, किसान भूषण सम्मान सहित अन्य पुरस्कार शामिल हैं. भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी खेती को लेकर मुलाक़ात कर चुका हैं.
विजय कुमार पांडेय कहते हैं, बचपन से मेरा नाम आलू पांडेय नहीं था. बल्कि जब गांव आया और सबसे पहले गेहूं की खेती की तो यह महसूस हुआ कि एक एकड़ गेहूं की खेती में 10 क्विंटल तक उत्पादन होता है. वहीं उतनी ही जमीन में आलू 200 क्विंटल तक हो जाता है. खर्च दोनों का करीब उतना ही आता है और बाजार में कीमत भी उतनी ही है. तो क्यों नहीं आलू की खेती की जाए? उसके बाद पिछले चालीस साल से आलू की खेती कर रहा हैं. आलू के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किया है जिसके बाद लोग विजय पांडेय की जगह आलू पांडेय के नाम से बुलाने लगे.
वे आगे कहते हैं कि सरकारी योजनाओं की मदद से पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, ड्रिप सिंचाई, सौर ऊर्जा चालित उपकरण प्राप्त हुआ. खेती से मुनाफा कमा रहा हैं. इसी खेती की बदौलत बच्चे बेहतर शिक्षा हासिल कर पाए. वहीं 35 एकड़ जमीन खरीदकर खेती का विस्तार किया. आलू पर शोध कर के पी-1, पी-2 की क़िस्मों का ईजाद किया, जिसे बाद में पटना और शिमला सहित देश के अन्य विश्वविद्यालय ने शोध करके उसे कोफरी केसर का नाम देकर बाजार में उतारा. ये किस्में किसानों के बीच काफी चर्चित हैं. इसके अलावा गन्ना की किस्मों पर काम कर रहा हैं.
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आलू पर शोध करने के बाद अपने बेटे विवेक पांडेय के साथ मिलकर बायोगैस पर काम कर रहे हैं. वहीं मिथेन गैस का उपयोग करके सीएनजी गैस तैयार कर रहे हैं. साथ ही सीएनजी गैस से युक्त गाड़ी भी तैयार कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. वे कहते हैं कि गांव के लोगों से दो से तीन रुपये किलो गोबर की खरीदारी की जाती है जिसका उपयोग सीएनजी गैस बनाने के साथ उर्वरक में उपयोग किया जाता है. वहीं करीब 18 एकड़ में नर्सरी लगाएं हुए हैं. इसके अलावा चालीस एकड़ से अधिक एरिया में अन्य फसलों की खेती कर रहे हैं. आगे कहते हैं कि खेती कभी घाटे का सौदा नहीं है. बस इसे करने का सही तरीका आना चाहिए. किसान अपनी मेहनत की बदौलत एक सेलिब्रिटी बन सकता है.
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