
देश में बहुत से किसान अपने ज्ञान और अनुभव के सहारे सूखी धरती पर तरक्की की फसल उगा रहे हैं. ऐसे किसान न केवल खुद खेती से कमाई कर रहे हैं, बल्कि अपनी मेहनत और नई तकनीकों का उपयोग कर दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन रहे हैं. यह प्रगतिशील किसान खेती को केवल आजीविका का साधन नहीं बल्कि एक उद्योग के रूप में अपना रहे हैं. इसका परिणाम उन्हें लाखों-करोड़ों रुपये की आमदनी के रूप में मिल रहा है. ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं जयपुर के धानोता गांव के गजानंद अग्रवाल जिन्होंने पिछले एक दशक से अजोला उत्पादन को रोजगार का जरिया बनाया है. उसके माध्यम से उसमें नए व्यवसाय जोड़ते जा रहे हैं और हर महीने लाखों की कमाई कर रहे हैं.
गजानंद अग्रवाल ने अजोला उत्पादन को एक व्यवसाय के रूप में अपनाया है. आमतौर पर अजोला का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, लेकिन गजानंद ने इसे एक व्यवसाय के अवसर के रूप में देखा है. उन्होंने 1 एकड़ भूमि में एचडीपीई तकनीक का उपयोग करके अजोला उत्पादन के लिए 50 बेड बनाए. इन बेड्स की लंबाई 12 फीट, चौड़ाई 6 फीट और ऊंचाई 1 फीट होती है. एचडीपीई बेड्स का उपयोग करने से उत्पादन क्षमता बढ़ती है और ये पॉलिथीन शीट से बने तालाबों की तुलना में अधिक टिकाऊ होते हैं. एक 12x6 फीट के एचडीपीई बेड से प्रतिदिन लगभग 2 किग्रा ताजा अजोला का उत्पादन होता है. इस प्रकार गजानंद के 50 बेड्स से महीने में लगभग 3000 किलो अजोला का उत्पादन होता है, जिससे उन्हें हर महीने 2.5 लाख रुपये की आमदनी होती है. लागत और अन्य खर्चों को घटाने के बाद भी उनका शुद्ध मुनाफा लगभग 1.5 लाख रुपये प्रति माह होता है.
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अजोला उगाने के लिए गजानंद ने उपजाऊ मिट्टी, गोबर और पानी का उपयोग किया. एचडीपीई बेड में पानी की गहराई 4-6 इंच होनी चाहिए और बेड की सतह समतल होनी चाहिए ताकि पानी की गहराई समान रहे. अजोला का उपयोग केवल पशुओं के चारे के रूप में ही नहीं बल्कि खेतों में पोषक तत्व के रूप में भी किया जा सकता है. यह नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने में मदद करता है और उर्वरकों की जरूरत को कम करता है. खासकर धान के खेतों में, जहां अजोला का उपयोग करने से उर्वरक की आवश्यकता आधी रह जाती है. गजानंद बताते हैं कि अजोला इकाई लगाने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है. बस कुछ मौसमी देखभाल की आवश्यकता होती है, जैसे सर्दियों में इसे ढकने की और गर्मियों में पानी के वाष्पीकरण को नियंत्रित करने की. एचडीपीई बेड बाजार में लगभग 6000 रुपये में उपलब्ध है और तीन महीने के उत्पादन के बाद इसकी लागत निकल जाती है.
अजोला पशुओं के लिए बेहद पौष्टिक आहार है और इसमें 25 से 30 प्रतिशत प्रोटीन होता है. यह मुर्गियों, गाय, भैंस, बकरी, खरगोश आदि सभी पशुओं के लिए उपयोगी है. अजोला दूध देने वाले पशुओं का दूध बढ़ाने में सहायक है और अन्य पशुओं की वृद्धि में भी मदद करता है. इसके उत्पादन में पानी की भी कम जरूरत होती है और एचडीपीई बेड के जरिये यह बंजर जमीन या खाली जगह में आसानी से उगाया जा सकता है. शहरी क्षेत्रों में लोग इसे मकानों की छत पर भी उगा सकते हैं. वही दूसरी तरफ अजोला की सतह पर नील हरित शैवाल सहजैविक के तौर पर काम करता है जो वातावरण से नाइट्रोजन लेकर उसका स्थिरीकरण करता है. इसके कारण अजोला का उत्पादन कर, अगर आप उसे खेतों में डालते हैं, तो फर्टिलाइज़र की ज़रूरी मात्रा आधी रह जाएगी. ख़ास कर धान के खेतों के लिए तो ये बेहद आसान है, क्योंकि इसके लिए अलग से अजोला पैदा कर खेत में डालने की ज़रूरत नहीं. धान के खेतों में पानी होता ही है. बस आपको अजोला कल्चर डालने की देर है. यह फर्टिलाइज़र का 50 फीसदी ख़र्च बचाता है.
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प्रगतिशील किसान ने बताया कि अधिकतर दुधारू पशुओं को वर्ष भर हरा चारा नहीं मिल पाता है. पौष्टिक चारा बाजार में 25 रुपये किलो मिलता है. अगर किसान अजोला का उत्पादन करता है तो प्रति किलो उत्पादन लागत खर्च 2 रुपये किलो आता है. वही दूसरी तरफ अजोला का उत्पादन करने में पानी की कम जरूरत पड़ती है. किसान अपनी बंजर जमीन या खाली जगह में आसानी से इस तरह के बेड में अजोला का उत्पादन कर पशुपालन के आहार पर खर्च होने वाली लागत को कम कर सकते हैं. शहरी क्षेत्रो में जहा लोग छोटे-छोटे डेयरी पालन का काम कर रहे हैं, वहां जमीन की कमी रहती है. वहां मकानों की छत पर एचडीपीई बेड लगा सकते हैं. अजोला का उत्पादन कर अपने पशुओं के सस्ता और पौष्टिक आहार खिला कर अधिक उत्पादन ले सकते हैं. गजानंद अग्रवाल की यह सफलता की कहानी अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा है कि वे भी खेती के साथ-साथ नवाचारों को अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.
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