scorecardresearch
बैंक मैनेजर की नौकरी छोड़ कर क‍िसान बने राधे कृष्ण, 50 लाख रुपये से अध‍िक की कर रहे कमाई

बैंक मैनेजर की नौकरी छोड़ कर क‍िसान बने राधे कृष्ण, 50 लाख रुपये से अध‍िक की कर रहे कमाई

बिहार के किशनगंज जिले के ठाकुरगंज निवासी राधेकृष्ण बैंक मैनेजर की नौकरी छोड़ चाय व तेजपत्ता की खेती कर रहे हैं और सालाना 50 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं. 

advertisement
फोटो 'किसान तक ' : राधेकृष्ण बैंक की नौकरी छोड़ कर रहे चाय की खेती फोटो 'किसान तक ' : राधेकृष्ण बैंक की नौकरी छोड़ कर रहे चाय की खेती

आज के समय में सरकारी नौकरी मिलना किसी ईश्वर के वरदान से कम नहीं है, लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं, जो सरकारी नौकरी से बढ़िया खेती को मान रहे हैं और बीच में ही नौकरी छोड़ कृषि से जुड़कर मोटी कमाई कर रहे हैं. ऐसे ही एक शख्स‍ 59 वर्षीय किसान राधेकृष्ण हैं, जो बैंक में मैनेजर की नौकरी बीच में छोड़कर चाय की खेती से जुड़ गए और वह आज चाय व तेजपत्ता की खेती से सालाना 50 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहे हैं. वह कहते हैं कि समय की मांग के अनुसार खेती की जाए. तो खेती किसी भी सरकारी नौकरी या अन्य प्राइवेट नौकरी से लाख गुना बढ़िया हैं. बस इसके लिए एक दृढ़ इच्छा संकल्प के साथ खेती करनी होगी.

राधेकृष्ण किशनगंज जिले के ठाकुरगंज के रहने वाले हैं और इनका परिवार चाय की खेती के साथ करीब 26 सालों  से जुड़ा हुआ है. सूबे का इकलौता जिला किशनगंज हैं, जो चाय की खेती के लिए जाना जाता है. ठाकुरगंज, पोठिया और किशनगंज ब्लॉक के करीब 21000 हेक्टेयर से अधिक भू-भाग में चाय की पैदावार होती है. किशनगंज को बिहार का दार्जिलिंग भी कहा जाता है. पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिला व सिलीगुड़ी से सटा होने की वजह से उसकी आबोहवा चाय उत्पादन के लिए मुफीद हैं. यहां के निवासियों के अनुसार  1994 के  बाद से चाय की खेती हो रही है.

ये भी पढ़ें- बिहार की चाय अब बनेगी ग्लोबल ब्रांड ! टी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस शुरू करने जा रही सरकार

1996 के बाद बड़े पैमाने में चाय की खेती से जुड़े जिले के किसान

राधेकृष्ण किसान तक से बातचीत करते हुए बताते हैं कि 1994-95 से पहले जिले में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती थी, लेकिन 11 मई 1996 को हुई तेज बारिश के कारण उनकी 67 एकड़ जमीन में लगे केले के पेड़ गिर गए. उसके बाद उन्होंने 30 एकड़ में चाय की खेती शुरू की गई. आगे वह कहते हैं कि वैसे जिले में चाय की खेती 1994-95 से शुरू हो गया था. राज्य का सबसे गरीब जिलों में अपनी पहचान रखने वाला किशनगंज में चाय की खेती ने किसानों के जीवन में काफी बदलाव लाया है. आज चाय, अनानास, ड्रैगन फ्रूट्स, तेजपत्ता सहित अन्य फसलों की खेती ने कृषकों की आर्थिक समृद्धि का रास्ता खोला है. वहीं यहां के बहुत कम ही लोग बड़े शहर में नौकरी करने के लिए जाते हैं.

फोटो 'किसान तक' : 30 एकड़ जमीन में  चाय की खेती से सालाना 25 से तीस लाख रुपए की कमाई
30 एकड़ जमीन में फैला उनका चाय बगान - फोटो 'किसान तक'

बैंक मैनेजर की नौकरी से बेहतर चाय की खेती

राधेकृष्ण बताते हैं क‍ि उन्होंने नौकरी में रहते हुए चाय के बगान लगाए थे. अब वह नौकरी छोड़ कर पूरी तरह चाय की खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया क‍ि साल 2020 में 61 महीने शेष बची बैंक की नौकरी छोड़ दी. वह कहते हैं कि नौकरी में काफी तनाव था. उसकी तुलना में चाय की खेती में सुकून के साथ अच्छी कमाई है. आज चाय की खेती से होने वाली सालाना कमाई  बैंक की नौकरी से संभव नहीं है. राधेकृष्ण कहते हैं कि 30 एकड़ जमीन में चाय की खेती से सालाना 25 से तीस लाख रुपए की कमाई है. साथ ही 2500 के आसपास तेजपत्ता का पेड़ है ,जो 1500 रुपए प्रति पेड़ बिक जाता है. यानी दोनों को मिलाकर सालाना 50 लाख रुपए  से अधिक की कमाई हो जाती है. 

ये भी पढ़ें- नालंदा के राकेश कुमार का कमाल, समूह में कई गांवों के क‍िसानों से करवाते हैं सब्ज‍ियों की खेती

फोटो 'किसान तक' : राधेकृष्ण 1997 से कर रहे हैं  चाय की खेती
फोटो 'किसान तक' : राधेकृष्ण 1997 से कर रहे हैं चाय की खेती

जलवायु में हो रहे बदलाव से चाय की खेती पर संकट

राधेकृष्ण कहते हैं कि पिछले तीन सालों से मौसम के मिजाज में हो रहे बदलाव से चाय की खेती पर असर पड़ रहा है. पहले किशनगंज जिले में मार्च से लेकर दुर्गा पूजा तक बारिश होती थी,लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं है. बारिश कम होने की वजह से चाय की खेती प्रभावित हुई है. पिछले तीन साल से जिले में गर्मी बढ़ी है और बरसात कम हुई है. इससे करीब 30 प्रतिशत तक उत्पादन पर असर पड़ा है. इसके साथ ही चाय के पत्तियों के दाम पर सरकारी नियंत्रण नहीं होने से दाम बेहतर नहीं मिल रहे है. दस साल पहले वाले ही दाम मिल रहे है. एक दशक पहले एक किलो पत्ती तोड़ने में डेढ़ रुपए खर्च आता था. वहीं आज चार रुपए खर्च आ रहा है. जबकि दाम 15 से 20 रुपए प्रति किलो के बीच ही चल रहा है.