त्रिपुरा के कई हिस्सों, खासतौर पर गोलाघाटी गांव में बसे किसान एक ऐसी सक्सेस स्टोरी लिख रहे हैं जिसके बारे में कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. यहां के सिपाहीजला जिले के तहत आने वाले बिशालगढ़ सब-डिविजन में स्थित गोलाघाटी गांव के किसान, ऑफ-सीजन में पीले तरबूज की खेती करके मालामाल हो रहे हैं. इस खेती के जरिये उन्हें काफी फायदा मिल रहा है. पीले तरबूज का बाहरी हिस्सा किसी सामान्य तरबूज सा दिखता है और इसमें धारीदार हरा छिलका होता है.
पीले तरबूज को काटने पर, अंदर पीला सुनहरे रंग का गूदा मिलेगा. लाल तरबूज की तरह ही पीला तरबूज मीठा, रसदार और अविश्वसनीय रूप से स्वादिष्ट होता है. कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि पीले तरबूज का स्वाद शहद जैसा मीठा होता है. पीला तरबूज बाजार में उतना आम नहीं है, लेकिन किसान कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के कुछ हिस्सों में इसकी खेती करते हैं. वहीं अब अब इसकी खेती त्रिपुरा में भी की जाने लगी है. त्रिपुरा लाल तरबूज की खेती के लिए जाना जाता है, अधिक मुनाफे की उम्मीद में किसानों ने धीरे-धीरे पीले तरबूज की खेती शुरू कर दी है.
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खेती का यह नया दृष्टिकोण न केवल स्थानीय किसानों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहा है बल्कि में पोषण संबंधी जरूरतों को भी पूरा कर रहा है. अनिमेष सरकार, तन्मय सरकार, शुभंकर देब और रामू रॉय जैसे किसानों ने गोलाघाटी गांव में पीले तरबूज की खेती का बीड़ा उठाया. इस साल संयुक्त रूप से 2.78 हेक्टेयर जमीन पर इन्होंने जो राजस्व अर्जित किया है वह महत्वपूर्ण है. एक रिपोर्ट की मानें तो खर्चों में कटौती के बाद भी यह लाखों रुपये तक पहुंच गया है. इस सफलता से प्रेरित होकर, गोलाघाटी के कई किसान अब पीले तरबूज की खेती को अपनाने के लिए उत्सुक हैं, जिससे जिले के कई क्षेत्रों में इसका विस्तार हो रहा है.
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इंडिया टुडे के साथ बातचीत में अनिमेष सरकार ने इस खेती को लेकर अपनी संतुष्टि जताई. साथ ही उन्होंने बताया कि कैसे कृषि विभाग से उन्हें महत्वपूर्ण मदद इस दिशा में दी गई. उनका कहना था कि कृषि अधिकारियों के मार्गदर्शन ने ऐसी सफल खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि ऐसे तरबूजों की खेती के पीछे बहुत समय लगता है, लेकिन हमें मुनाफा हो रहा है. बाजार में एक किलो पीला तरबूज थोक में 40 रुपये से 70 रुपये में मिलता है, जबकि खुदरा कीमतें 70 रुपये से 80 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होती हैं.
एक और किसान सुभान देब ने कहा है कि एक हेक्टेयर भूमि पर खेती करने की लागत 40000 रुपये के बीच है. जबकि संभावित कमाई खर्चों को छोड़कर 1 लाख 40 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक पहुंचती है. यही मुनाफा ज्यादा से ज्यादा किसानों को पीले तरबूज की खेती में आगे बढ़ने के लिए आकर्षित कर रहा है. इस पहल से कृषि श्रमिकों को भी लाभ हो रहा है, क्योंकि ऑफ-सीजन के दौरान श्रम की मांग बढ़ जाती है. दिहाड़ी मजदूरों को तरबूज की खेती में रोजगार के अवसर मिलते हैं, जो उनकी आजीविका में योगदान करते हैं.
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किसान न केवल आर्थिक सफलता हासिल कर रहे हैं बल्कि यह खेती लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई है. लोग अनोखे पीले तरबूजों को देखने और खरीदने के लिए गोलाघाटी गांव में आ रहे हैं. पीले तरबूज के बीज बेचने वाले बादल साहा ने कहा कि इस तरबूज की खेती मूल रूप से ऑफ-सीजन के दौरान की जाती है. पूर्वोत्तर में त्रिपुरा पहला राज्य था जहां पीला तरबूज पेश किया गया था. उन्होंने आगे कहा कि हालांकि पीले तरबूज की खेती बड़ी मात्रा में नहीं की जा रही है, लेकिन बाजार में इसकी मांग लाल तरबूज की तुलना में अधिक है.
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त्रिपुरा के बागवानी विभाग के सहायक निदेशक डॉ. दीपक बैद्य ने कहा कि त्रिपुरा के कुछ हिस्सों में पीले तरबूज की खेती शुरू हो गई है. इसके आकर्षक रंग और स्वादिष्ट स्वाद के कारण इसकी मांग अधिक है. हालांकि बड़े पैमाने पर उत्पादन अभी तक शुरू नहीं हुआ है. इसमें सामान्य तरबूज से ज्यादा मुनाफा होता है. खेती अभी टेस्टिंग फेज में है. कृषि विभाग के बिशालगढ़ सेक्टर अधिकारी प्रबीर दत्ता ने गर्मी के मौसम में तरबूज की खेती की सफलता पर जोर दिया. इसमें औसतन पांच हेक्टेयर भूमि तक खेती का विस्तार हुआ है.
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