खेती-किसानी को आगे बढ़ाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय और अंतरिक्ष विभाग के बीच मंगलवार को नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में एक समझौता हुआ. अब इसरो दो सैटेलाइट के जरिए कृषि क्षेत्र की तरक्की में अपना योगदान देगा. उपग्रहों के जरिए किसानों को समय पर मौसम का सटीक पूर्वानुमान, फसल उत्पादन का अनुमान, मिट्टी के आंकड़े और सूखे से संबंधित जानकारी मिल जाएगी. जिससे फसलों के नुकसान को कम किया जा सकेगा. समझौता के इस मौके पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि अब अंतरिक्ष विज्ञान के जरिए कृषि क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात होगा. इस समझौतेके जरिए आज कृषि के क्षेत्र में एक नया आयाम जुड़ रहा है.
इस मौके पर अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और इसरो के चेयरमैन एस. सोमनाथ भी मौजूद रहे. तोमर ने कहा कि कृषि विभाग तकनीक के जरिए किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है. ऐसी कोशिश हो रही है कि मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाकर फसलों को नुकसान से बचाया जा सके. टेक्नोलॉजी से जुड़ने के बाद फसल का अनुमान, राज्यों को आवंटन देने, किसी क्षेत्र को सूखा घोषित करने के लिए सर्वेक्षण और आपदा का आकलन...जैसे काम आसान हो जाएंगे. यह तकनीक कृषि क्षेत्र के साथ-साथ देश के लिए काफी फायदेमंद है.
कृषि और अंतरिक्ष विभाग के बीच हुआ समझौता कृषि क्षेत्र की ताकत को और बढ़ाएगा. किसानों तक सूचना पहुंचेगी तो फसलों का उत्पादन और उत्पादकता दोनों बढ़ेगी. उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ेगी और एक्सपोर्ट के अवसर बढ़ेगे. देश और दुनिया के लिए कृषि क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. यह क्षेत्र आजीविका के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को गति देने व बड़ी आबादी को रोजगार उपलब्ध कराने का काम कर रहा है. पहले ज्ञान और निजी निवेश के अभाव की वजह से इस क्षेत्र का नुकसान हुआ. इस क्षेत्र में जितने बदलाव, ज्ञान और निवेश की जरूरत थी, वह नहीं हुआ. यही कारण है कि कृषि का क्षेत्र उतना आगे नहीं बढ़ा, जितना बढ़ना चाहिए.
अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज एमओयू साइन हो रहा है, अगली बार एमओयू की आवश्यकता नहीं होगी. आप अपना सैटेलाइट बनाएंगे और हम उसे छोड़ेंगे. यह काम शुरू हो गया है. जहां तक कृषि क्षेत्र का संबंध है तो चार-पांच स्तर पर प्रमख रूप से वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.
इसमें ड्रोन प्रमुख है. बहुत-सी ऐसी फसलें हैं, जहां सिंचाई नहीं हो सकती, वहां भी ड्रोन से सिंचाई संभव है. दूसरा उपज को बढ़ाना, तीसरा है सेल्फ लाइफ को बढ़ाना यानि उपज को देश के अलग-अलग हिस्सों में बिना नुकसान के पहुंचाना और चौथा आपदा नियंत्रण.
इस तकनीक के माध्यम से जलशक्ति मंत्रालय और गृह मंत्रालय जुड़ चुके है. अब कृषि मंत्रालय भी जुड़ रहा है. आरआईसैट-1ए (रडार इमेजिंग सैटेलाइट) का अगला जनरेशन आ जाएगा तो उसमें फ्रीक्वेंसी भी ज्यादा होगी और एक्यूरेसी भी. यह सहयोग और बढ़ना चाहिए. इस मौके पर कृषि सचिव मनोज अहूजा, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक, अतिरिक्त सचिव प्रमोद मेहरदा, इसरो के वैज्ञानिक सचिव शांतनु, निदेशक नीलेश देसाई और प्रकाश चौहान आदि मौजूद रहे.
कृषि क्षेत्र अनिश्चितताओं से भरा हुआ है. जहां कब आपदा आ जाए कुछ पता नहीं. किसानों को मौसम की मार के साथ ही कीटों के अटैक और रोगों जैसी तमाम चुनौतियों से जूझना पड़ता है. लेकिन अब इसरो के 'भारतीय कृषि सेटेलाइट प्रोग्राम' के तहत अब किसानों को समय पर मौसम का सटीक पूर्वानुमान मिलेगा. क्लाइमेट चेंज से भी कृषि सेक्टर ही सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है. हुई ऐसे में सैटेलाइट से मिले डाटा का विश्लेषण करके किसानों को नुकसान से बचाया जा सकेगा. कृषि क्षेत्र को सैटेलाइट से जोड़ने के लिए इसरो ने पहल की थी.
कृषि मंत्रालय ने कहा कि आरआईसैट देश का पहला रडार इमेजिंग सैटेलाइट है. यह लाइट की स्थिति की परवाह किए बिना हाई रिज़ॉल्यूशन वाली फोटो ले सकता है. इसका डेटा कृषि, पर्यावरण, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन के लिए प्रणाली विकसित करने में उपयोगी होगा. यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होंगे, क्योंकि उन्हें अपनी फसलों को प्रभावित करने वाली समस्याओं की तुरंत पहचान करने और समय पर ऐसी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलेगी. जिससे फसल की पैदावार और आय में वृद्धि होगी.
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