बिहार के गया जिले के रहने वाले आशीष कुमार सिंह खेती में नए प्रयोग करने को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं. काला धान, नीली गेहूं और काला गेहूं सहित अन्य फसलों की खेती के लिए जाने जाते हैं. लेकिन इस बार करीब एक कट्ठा जमीन में काला सीरीज में विदेशी काला आलू को उपजाया है. ट्रॉयल पर शुरू की गई खेती ने गया सहित राज्य के अन्य जिलों में इसकी खेती की सांभवनाओं को बढ़ा दिया है. वहीं काला आलू का जादू किसान आशीष के चेहरे पर दिख रहा है. किसान तक से बातचीत में उन्होंने बताया कि करीब दो साल के मेहनत के बाद काला आलू का बीज अमेरिका के कैलिफोर्निया से नवंबर में 14 किलो, 1500 रुपए प्रति किलो के भाव से मंगवाया था. इसमें कोरियर का भी खर्च भी आया है. तकरीबन एक कट्ठा खेत में करीब 120 किलो के आसपास आलू का उत्पादन हुआ है.
बता दें कि किसान आशीष करीब 40 बीघा में खेती करते हैं. मुख्यरूप से काला धान, काला गेहूं, नीली गेहूं, आलू, एप्पल बेर सहित अन्य फसलों की खेती करते हैं. साथ ही बीज के रूप में अन्न को बेचते हैं. इन्होंने काला आलू की खेती गया जिले के टिकारी प्रखंड के गुलरिया चक गांव में की थी. वहीं 10 नवंबर को आलू का बीज लगाया था और 120 दिन के बाद 13 मार्च को इसकी हार्वेस्टिंग की गई.
ये भी पढ़ें-भारत पर इस साल भी मंडरा रहा अल-नीनो का खतरा, क्या इस बार भी घटेगी मॉनसून की बारिश?
किसान तक से बातचीत के दौरान आशीष बताते हैं कि काला आलू की खेती का विचार दो साल पहले सोशल मीडिया के जरिए आया. लेकिन इसका बीज कैसे मंगवाया जाए. यह एक बड़ा चैलेंज रहा. कई वेबसाइट की खोजबीन के बाद आखिरकार अमेरिका के कैलिफोर्निया से कोरियर की मदद से 14 किलो बीज मंगवाया. जिनमें से करीब 10 किलो आलू का बीज ही खेती के लायक था. आगे कहते हैं कि विदेश से आलू मंगवाने में प्रति किलो 1500 रुपए खर्च आया, जिसमें आलू का दाम 600 रुपए प्रति किलो रहा. वहीं कोरियर का खर्च 900 रुपए के आसपास आया है.
औषधीय गुण से भरपूर काला आलू की खेती करने वाले आशीष कुमार सिंह कहते हैं कि आलू की रोपाई से लेकर हार्वेस्टिंग तक करीब 25 हजार रुपए का खर्च आया है. विदेश में भारतीय रुपए के हिसाब से 200 से 300 रुपए प्रति किलो भाव है. वहीं अपने यहां 600 रुपए तक भाव मिल रहा है. आगे कहते हैं कि 10 नवंबर 2022 को उन्होंने बीज लगाया था और 120 दिन के बाद 13 मार्च को इसकी हार्वेस्टिंग की गई. काला आलू सामान्य आलू से कुछ दिन देर से होता है. यह कहते हैं कि 10 किलो आलू में आमतौर पर 2 कट्ठा में खेती हो जाएगी. लेकिन खेती लायक बीज नहीं होने से ज्यादा लगाना पड़ा. वहीं आलू को दो टुकड़े में करके भी रोपाई किया गया. उसका भी रिजल्ट बढ़िया रहा है. करीब 120 किलो के आसपास आलू हुआ है. अगर मौसम बेहतर होता तो उत्पादन करीब 2 क्विंटल तक हो जाता. काले आलू की खेती अमेरिका के पर्वतीय क्षेत्र एंडीज शहर में होती है. मगर ट्रायल के रूप में पहली बार गया में लगाई गई है. इसकी खेती में समय-समय पर गया जिला के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का तकनीकी मार्गदर्शन मिलता रहा.
ये भी पढ़ें- इंडिया टुडे ग्रुप का 'किसान तक' चैनल लॉन्च, केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने किया उद्घाटन
आशीष कुमार कहते हैं कि आलू की माप ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) के जरिए की जाती है, जो जीरो से सौ तक होता है. वहीं इसमें जहां जीआई 77 होता है. लाल आलू का 81 और सफेद आलू का जीआई 93 होता है. जिस आलू का जीआई कम होगा. वह उतना ही बढ़िया होता है. इसके साथ ही काला बैंगनी आलू विशेष रूप से एंथोसायनिन नामक पॉलीफेनोल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं. उच्च एंथोसाइन का सेवन स्वस्थ कोलेस्ट्रोल के स्तर, हड्डी और हृदय रोग के अलावा कुछ कैंसर और मधुमेह के जोखिम को कम करता है.
आशीष कुमार 2016 से पहले छत्तीसगढ़ राज्य में एक इंजीनियरिंग कॉलज में वाइस प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत रहे थे. उसके बाद अपने गृह जिला गया आ गए. खेती में कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने शुरुआत के समय में काला गेहूं, नीला गेहूं, काले धान की खेती से शुरू किया था. ये 40 बीघा में खेती करते हैं. यह सभी फसलों के बीज को बाजार में बेचते हैं और मोटी कमाई करते हैं. आगे यह कहते हैं कि खेती किसी भी फसल की हो सकती है, लेकिन बेहतर बाजार नहीं होने से काफी दिक्कत होती है. आशीष कुमार अपनी खेती के बदौलत अभीतक कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं.
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today