Natural Farming: गाय के गोबर-गोमूत्र से 'काला नमक धान' की खेती, बंपर उपज ले रहे बहराइच के ये किसान

Natural Farming: गाय के गोबर-गोमूत्र से 'काला नमक धान' की खेती, बंपर उपज ले रहे बहराइच के ये किसान

किसान शिव शंकर सिंह ने बताया कि केमिकल युक्त छिड़काव से मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. आज प्रत्येक घर में कोई न कोई व्यक्ति रोग से ग्रस्त है. आय का एक बड़ा हिस्सा रोगों के इलाज में खर्च हो रहा है.

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Natural Farming: गाय के गोबर-गोमूत्र से 'काला नमक धान' की खेती, बंपर उपज ले रहे बहराइच के ये किसानयूपी के बहराइच जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान शिव शंकर सिंह (Photo-Kisan Tak)

Natural Farming Story: उत्तर प्रदेश के कई किसान अब रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती करके मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. इसी कड़ी में यूपी के बहराइच जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान शिव शंकर सिंह 'काला नमक धान' और गेहूं की अलग-अलग वैरायटी की खेती करके बंपर उत्पादन कर रहे है. वहीं उनके चावल की डिमांड मार्केट में तेजी से बढ़ती जा रही है. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में किसान शिव शंकर सिंह ने बताया कि सन् 1980 में रिटायरमेंट के बाद से प्राकृतिक खेती करने का विचार आया. इसके लिए बहराइच कृषि विज्ञान केंद्र से परीक्षण लेने के बाद मुझे बहुत बड़ा अंतर रासायनिक और प्राकृतिक खेती के बारे में पता चला.

रासायनिक खेती बेहद हानिकारक

उन्होंने बताया कि उसके बाद हमने काल नमक धान की प्राकृतिक खेती शुरू की. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में सभी खादें जैसे जीवामृत, घंजीवामृत आदि घर पर ही बनाई जाती है. घर में देसी गाय के गोबर और गौमूत्र में गुड़ और कुछ दालों को मिलाया जाता है, जिससे खाद तैयार होती है. उसी खाद का प्रयोग करके काल नमक धान की पैदावार अच्छी हुई. प्राकृतिक खेती में फायदे के बारे में किसान शिव शंकर सिंह ने बताया कि रासायनिक खेती से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती जाती है. वहीं केमिकल युक्त खाद बाजार से बहुत महंगे रेट में मिलता है. ऐसे में जहां खेती में लागत ज्यादा आती है, तो नुकसान भी बहुत ज्यादा होता है.

गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार जीवामृत

जबकि प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर और गोमूत्र से बने तरल जीवामृत का छिड़काव करके बिल्कुल शुद्ध और देसी तरीके से कम लागत में अच्छी पैदावर होती हैं. धनजीवा अमृत, तरलजीवा अमृत, बीजामृत के बारे में बताते हुए किसान शिव शंकर सिंह ने कहा कि इसे बनाना बहुत असान है. इसमें गाय-भैंस का गोबर-गोमूत्र, गुड़ और चने, बेसन और सजीव मिट्टी यानी जिसमें केमिकल न पड़ा हो, उसका इस्तेमाल होता है. उन्होंने बताया कि नेचुरल होने के कारण हमको बाजार में अच्छा रेट मिल जाता हैं.

बाजार में काला नमक धान और गेहूं का मिल रहा अच्छा रेट

काला नमक धान और गेंहू की खेती करने वाले बहराइच जिले के प्रगतिशील किसान शिव शंकर सिंह बताते हैं कि 4 क्विंटल में बंसी गेहूं और शरबती गेहूं और 2 क्विंटल काला नमक धान की पैदावार हो रही है. मेरा चावल 100 से लेकर 150 प्रति किलो के रेट से बाजार में आसानी से बिक जाता है. वहीं गेहूं 4 हजार रुपये क्विंटल के रेट से बिक जाता है. उन्होंने बताया कि प्रदेश में ज्यादा किसान मेहनत नहीं करना चाहते वो कम समय में मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में रासायनिक खेती कर रहे हैं. 

प्राकृत‍िक खेती का बढ़ा काफी महत्व 

उन्होंने बताया कि तरलजीवा अमृत बनाना बहुत आसान प्रक्रिया है. एक एकड़ जमीन के लिए 10 किलो देसी गाय का गोबर, दो किलो चने का बेसन और दो किलो गुड़ और 500 ग्राम सजीव मिट्टी (वो मिट्टी जो केमिकल युक्त हो) का प्रयोग होता है. 48 घंटे के बाद इसका घोल बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है. किसान शिव शंकर सिंह ने बताया कि केमिकल युक्त छिड़काव से मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. आज प्रत्येक घर में कोई न कोई व्यक्ति रोग से ग्रस्त है. आय का एक बड़ा हिस्सा रोगों के इलाज में खर्च हो रहा है. ऐसे में अब प्राकृत‍िक खेती का महत्व काफी बढ़ गया है. 

 

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