
सेना से रिटायर बेचन सिंह अपने खेत में एप्पल बेर का फल देखकर काफी खुश हैं. बेचन सिंह एप्पल बेर की खेती को मुनाफे का सौदा मान रहे हैं. इनके अनुसार कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देने वाला यह फल है. बिहार में इन दिनों विदेशी फलों और सब्जियों की खेती का क्रेज देखने को मिल रहा है, जिसमें ड्रैगन फ्रूट, स्ट्रॉबेरी, एप्पल बेर सहित अन्य फलों एवं सब्जियों की खेती की जा रही है. कैमूर जिले के बड़ौरा गांव के रहने वाले बेचन सिंह अपने प्रखंड में पहले ऐसे किसान होंगे, जिन्होंने एप्पल बेर की खेती शुरू की है. वहीं एप्पल बेर बेचने वाले दुकानदार प्यारे लाल कहते हैं कि पहले लोग इसके बारे में नहीं जानते थे, लेकिन अब इसके प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है.
एप्पल बेर अन्य बेर की तुलना में बड़े होते हैं. वहीं जहां बेर के पेड़ में कांटे होते है, जबकि इसमें कांटे नही होते हैं. एप्पल बेर का पेड़ एक सीमित लंबाई तक बढ़ता है. किसान के अनुसार एक पेड़ से करीब 2 से 3 क्विंटल तक फल निकल जाता है.
किसान तक से बात करते हुए बेचन सिंह कहते हैं कि उन्होंने एक एकड़ में एप्पल बेर की खेती की हुई है. जहां एक एकड़ में धान, गेहूं से 14 से 15 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती थी. वहीं करीब 4 बीघा में 45 से अधिक पेड़ लगा हुआ है. इसे 60 हजार रुपए के किराया पर दिया हूं. एक पेड़ से करीब 2 से 3 क्विंटल तक फल आ जाते हैं. आगे वह कहते हैं कि पांच साल पहले मैं वाराणसी से करीब 50 पेड़ लेकर आया था. उस दौरान एप्पल बेर की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी नहीं होने से दिक्कतें हुईं. लेकिन पिछले दो साल से फल आ रहा है.और आम अमरूद से अधिक कमाई हो रही है. एप्पल बेर की खासियत ये है कि इसमें हर साल फल आता है.
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बेचन सिंह की एप्पल बागान को करीब 60 हजार रुपए में खरीदने वाले प्यारेलाल माली कहते हैं कि जब हमने पहली बार इस फल के बगान को खरीदा तो विश्वास नहीं था कि बाजार में इस फल की इतनी मांग है. स्थानीय बाजार में करीब 40 रुपए प्रति किलो भाव से बिक रहा है. अमरूद का भाव भी 40 रुपए के आसपास रहा है. आगे वह कहते हैं कि पहली बार जब वो 2 क्विंटल एप्पल बेर बाजार में लेकर गए, तो दोपहर होते ही पूरा फल बिक गया.
किसान बेचन सिंह अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि अगर कोई किसान इसकी खेती करना चाहता है. तो वह मार्च से जुलाई के बीच में पौधे की रोपाई कर सकता है. इसके लिए सबसे पहले खेत की जुताई करना चाहिए. प्रति पौधे के हिसाब से करीब 15 फीट से अधिक की दूरी पर 3 फुट वर्गाकार गड्ढों की खुदाई करनी चाहिए. इस दौरान तीन साल पुरानी सड़ी हुई या कंपोस्ट खाद, नीम की पत्तियां, नीम की खली और कुछ पोषक तत्व मिलाकर गड्ढों में भर देना चाहिए. अगर किसान मिट्टी की जांच करवा के पौधों की रोपाई करते हैं. तो वह ज्यादा बेहतर होगा. पौधे की रोपाई करने से पहले तीन दिन तक मिट्टी में मिश्रित कंपोस्ट खाद, कीड़े की दवा के साथ अन्य दवाओं को छोड़ देना चाहिए, जिससे की मिट्टी मुलायम हो जाए. उसके बाद हाथ से पौधे की रोपाई करनी चाहिए. और हल्का पानी देना चाहिए. वहीं जब पौधे में नया पत्ते आने लगे तो उस दौरान कीटों से बचाव करनी चाहिए.
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आगे बेचन सिंह कहते हैं कि जब पौधे में फल लगने लगे या उससे पहले भी आंधी -तूफान से बचाने के लिए पौधे के जड़ से करीब 2 फीट या जरूरत के अनुसार मिट्टी चढ़ाना चाहिए. इसका पेड़ काफी कमजोर होता है. इसको ध्यान में रखकर पेड़ के चारों तरफ मचान लगाना चाहिए. ताकि फल लगने के दौरान टहनी टूटने का डर नहीं रहेगा.
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