
बरेली के अनिल साहनी ने अंगूर की ऑर्गेनिक खेती में पेश की मिसाल (Image-Social media)लासलगांव और निफाड़ क्षेत्र महाराष्ट्र का प्रमुख अंगूर उत्पादन क्षेत्र है. लेकिन उत्तर प्रदेश का बरेली अब अंगूर की खेती का नया केंद्र बनने जा रहा है. इसके पीछे बरेली जिले के तिगरा गांव के किसान अनिल साहनी की कड़ी मेहनत का नतीजा है. दरअसल, अंगूर की खेती के लिए अनिल साहनी ने कई सालों तक जलवायु, मौसम और मिट्टी के अनुकूल ट्रायल और रिसर्च किया. वहीं नए-नए प्रयोग और तकनीक के जरिए बरेली के किसान अनिल ने हाईटेक ऑर्गेनिक नेचुरल फार्मिंग के जरिए अंगूर उत्पादन के क्षेत्र में नई इबारत लिख रहे हैं. जिससे आने वाले कुछ दिनों में लोकल स्तर पर किसानों की आमदनी बढ़ेगी.
इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में अनिल साहनी ने बताया कि 20 साल पहले हमने अंगूर की खेती का ट्रायल शुरू कर दिया था. वहीं 15 साल के करीब लग गए कि कौन सी अंगूर की वैरायटी यूपी के जलवायु में चल पाएंगी. उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के नासिक में जो वैरायटी हैं, वो यूपी के मौसम में नहीं चल पाएगी, इसलिए काफी समय मुझे इसके वैज्ञानिक रिसर्च में लग गया. साहनी ने बताया कि 2023 में दो एकड़ में अंगूर की खेती शुरू की. उस समय 9 टन के करीब उत्पादन हुआ. वहीं नासिक और देश-विदेश से अंगूर की 16- 17 वैरायटी का पौधा (रूट स्टॉक्स) लगाया था.
लेकिन कुछ ही वैरायटी यहां के मौसम में सफल हो पाई. क्योंकि हम इस नए अनोखे प्रयोग को गैंबलिंग की तरह से खेल रहे थे. वहीं कौन सी अंगूर की वैरायटी यूपी के मौसम के लिए फिट साबित हुई उसका खुलासा अनिल सहानी ने बातचीत में नहीं किया. उन्होंने कहा कि कुछ ही अंगूर की (रूट स्टॉक्स) यूपी की मिट्टी और मौसम के लिए सफल साबित हुई.

अनिल बताते हैं कि हमारा खुद का माइक्रो-क्लाइमेट वेदर स्टेशन हैं, जो तापमान, बारिश और अद्राता की सटिक जानकारी देते है. वहीं बरेली की मिट्टी में सबसे बड़ी खासियत हैं कि पौधों में कोई रोग नहीं लगता, जिससे फसल खराब होने का डर नहीं होता है.
उन्होंने बताया कि नासिक में किसानों को हर दिन अंगूर की फसल को रोगों से बचाने के लिए केमिकल का प्रयोग करते है, लेकिन बरेली में किसानों को इससे बड़ी राहत मिली है, वहीं खर्चा बचेगा. बरेली के किसान अनिल साहनी ने आगे बताया कि ऑर्गेनिक तरीके से 40 डिग्री से अधिक तापमान वाले क्षेत्र यूपी में अंगूर की बंपर फसल ली है.
उन्होंने 4 बीघा में 32 टन तक उत्पादन हुआ है. अंगूर की खेती में आने वाले खर्च के सवाल पर अनिल ने बताया कि अब तक 70-80 लाख रुपये लग चुके है. वहीं अंगूर दो प्रकार के होते है, एक टेबल ग्रेप्स और दूसरा वाइन ग्रेप्स. टेबल और वाइन ग्रेप्स हरा, लाल और पर्पल रंग का होता है.
लेकिन टेबल ग्रेप्स की कीमत अगर एक रुपये है, तो वाइन ग्रेप्स की कीमत 4-5 रुपये होगी. जबकि वाइन ग्रेप्स में दो वैरायटी होती है, एक लॉन्ग वैरायटी तो दूसरा शार्ट वैरायटी. भारत में किसान ज्यादा शार्ट वैरायटी की खेती करना पसंद करते हैं.

साहनी ने बताया कि देश में दो तरह की वाइन बनती हैं. एक जिसकी 3-5 साल मैच्योरिटी के लिए बनती, वहीं कुछ वाइन 200 सालों की मैच्योरिटी के लिए बनती है, लेकिन अब ज्यादा वाइन बनाने वाली कंपनियां कम समय यानी 3-5 साल मैच्योरिटी के लिए शराब बनाते है. जिससे उनका उत्पादन बढ़ता रहे और मार्केट में सेल होती रहे. उन्होंने बताया बरेली के क्लाइमेट में लॉन्ग मैच्योरिटी की अंगूर की ज्यादा पैदावार है.
यूपी सरकार की वाइनरी पॉलिसी बनवाने में अहम रोल अदा करने वाले बरेली के किसान अनिल साहनी ने बताया कि सरकार को छोटे किसानों को मदद करना चाहिए. क्योंकि महाराष्ट्र का किसान कभी नहीं चाहेगा कि यूपी में अंगूर की खेती हो. इससे उनके बिजनेस पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. इसलिए यूपी सरकार को अंगूर की खेती को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने बताया कि 2026 तक बरेली में एक वाइन फैक्ट्री लगाने जा रहा हूं, जिससे किसानों को बहुत बड़ा फायदा होगा.
इससे यूपी के किसान अंगूर की खेती की तरफ रुख करेंगे और आमदनी भी बढ़ेगी. अनिल ने दावा करते हुए बताया कि इस साल हमारा अंगूर का उत्पादन 50-60 टन होने की उम्मीद हैं. उन्होंने अंत में किसानों से अपील करते हुए कहा कि कोई भी खेती को अगर नई सोच और वैज्ञानिक तरीकों से किया जाए, तो बड़ा मुनाफा कमाया जा सकता है.
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