उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में किसान अब पारंपरिक फसलों के बजाए बागवानी फसलों में दिलचस्पी ले रहे हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो रही है. खास बात यह है कि जिले के पहाड़ी गांव, कभी बंजर जमीन और घटती आबादी के लिए जाने जाते थे. इन गांवों के किसान रोजगार की तलाश में घर से शहरों की तरफ पलायन कर रहे थे. लेकिन अब वापस गांव की तरफ आ रहे हैं औऱ कीवी की खेती से मोटी कमाई कर रहे हैं. कई किसान तो कीवी बेच कर लखपति बन गए हैं.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बागवानी फसलों की खेती ने बागेश्वर के गावों के लोगों किस्मत बदल दी है. यही वजह है कि अब लोग शहर से वापस गांव आ रहे हैं और आत्मनिर्भरता व विकास को बढ़ावा देने के लिए कृषि को अपना रहे हैं. यहां के किसान बंजर जमीनों पर सेब, कीवी और स्ट्रॉबेरी के बाग लगा रहे हैं. खास बात यह है कि किसानों को गांव में लौटने के लिए भवान सिंह कोरंगा ने प्रेरित किया है. इन्हें स्थानीय लोग 'बागेश्वर के कीवीमैन' के नाम से जानते हैं.
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कोरंगा ने आज से पांच साल पहले कीवी की खेती शुरू की, जो एक सफल उद्यम बन गया है. अब ये सालाना 15 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहे हैं. कीवी के पौधे, जिन्हें परिपक्व होने में 4-5 साल लगते हैं, प्रति पौधे 40 से 100 किलोग्राम फल पैदा कर सकते हैं. कीवी की बाजार कीमत किस्म के आधार पर 150 रुपये से 300 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है. भारत में एलिसन किस्म को पसंद किया जाता है, जबकि हेवर्ड किस्म विदेशों में लोकप्रिय है.
कीवी की खेती बागेश्वर की एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) पहल का एक प्रमुख घटक बन गई है. जिला बागवानी अधिकारी आरके सिंह ने बताया कि जिले में सालाना 800 क्विंटल कीवी का उत्पादन होता है, जिससे अगले साल संभावित रूप से 1 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है. खेती 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में केंद्रित है, जो कीवी की वृद्धि के लिए आदर्श ठंडी जलवायु प्रदान करता है.
उन्होंने कहा कि 5,320 कीवी पौधों के साथ 40 एकड़ का एक नया बाग स्थापित किया गया है, जिसमें 150 से 200 किसान हैं जो सामूहिक रूप से सालाना 800 से 1000 क्विंटल कीवी का उत्पादन करते हैं. कोरंगा ने पीएमएफएमई (प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकरण) योजना का उपयोग एक प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने के लिए किया है, जिसमें कीवी जूस, कैंडी, जेली, अचार और मुरब्बा बनाया जाता है. ये उत्पाद चार धाम यात्रा के दौरान लोकप्रिय हो गए हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई है.
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