कई किसान संगठनों से जुड़े किसान फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी समेत कई मांगों को लेकर 13 फरवरी को दिल्ली में आंदोलन के लिए जुट रहे हैं. करीब 20 हजार किसान ट्रैक्टर-कार समेत अन्य वाहनों के जरिए पूरी तैयारी के साथ दिल्ली के लिए मार्च कर रहे हैं. इसको देखते हुए पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सीमाओं पर भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई है. जबकि, कई जिलों में धारा 144 लागू करने के साथ ही कुछ जगहों पर इंटरेनट भी बंद कर दिया गया है. आइये समझते हैं कि किसान आखिर क्यों लंबे समय से एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं और इसके लिए समय-समय पर लामबंद होते रहे हैं.
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP एक तरह से फसल बिक्री के लिए गारंटी कीमत है. एमएसपी के जरिए फसल बुवाई के वक्त यह तय किया जाता है कि कटाई के बाद फसल किस कीमत पर बाजार में बिकेगी. एमएसपी यह पक्का करती है कि किसान को उसकी फसल का दाम तय कीमत से कम नहीं मिलेगा, चाहे बाजार में फसल का भाव गिर गया हो. एमएसपी का उद्देश्य किसान को बाजार में फसल की कीमत के उतार-चढ़ाव से नुकसान से बचाया जा सके.
कृषि मंत्रालय खरीफ, रबी सीजन समेत अन्य सीजन की फसलों के साथ ही कमर्शियल फसलों पर एमएसपी लागू करता है. वर्तमान में देश के किसानों से खरीदी जाने वाली 23 फसलों पर एमएसपी लागू की गई है. गेहूं, धान, चना, मूंगफली, बाजरा, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मूंग, मसूर, तिल और कपास जैसी फसलों पर एमएसपी लागू है. बता दें कि रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए गेहूं का एमएसपी दाम 2275 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है और सरसों का दाम 5650 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है.
केंद्र सरकार फसलों पर एमएसपी दर लागू करती है, जबकि राज्य सरकारों के पास भी एमएसपी लागू करने का अधिकार है. केंद्र सरकार ने किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के उद्देश्य से साल 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी सीएसीपी (Commission for Agricultural Costs and Prices) का गठन किया था. इसके बाद पहली बार 1966-67 में एमएसपी दर लागू की गई थी. सीएसीपी की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार फसलों पर एमएसपी दर तय करती है.
कृषि लागत और मूल्य आयोग फसलों की बुवाई के वक्त उनके उत्पादन में लागत का अनुमान लगाकर कीमत तय करने की सिफारिश केंद्र सरकार से करता है. आयोग (CACP) फसल लागत से कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर फसलों की एमएसपी तय करता है. यानी किसानों को जो लागत आती है उस पर कम से कम 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय होती है. एमएसपी कीमत तय करने के लिए आयोग कई मानकों पर फसल को आंकता है. इनमें प्रमुख हैं-
जब केंद्र सरकार ने करीब 24 फसलों पर एमएसपी लागू कर रखी है तो फिर किसान एमएसपी गांरटी कानून बनाने की मांग पर क्यों अड़े हैं. दरअसल, कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी सीएसीपी फसल के लिए एमएसपी दर की सिफारिश सरकार से करता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार उसे लागू ही करेगी. यानी सरकार पर सीएपीसी की सिफारिशों को मानने की बाध्यता नहीं है. किसानों को डर है कि सरकार कभी भी फसल की एमएसपी दर घटा या बढ़ा सकती है या हटा भी सकती है. ऐसे में एमएसपी गारंटी कानून आने पर सरकार फसल की कीमत तय करने के लिए बाध्य होगी. कानून बनने से एमएसपी को वैध बनाया जा सकेगा और किसानों को तय एमएसपी रेट पर फसल का दाम मिल सकेगा. चाहे बाजार में दाम का कितना भी उतार चढ़ाव हो. इससे किसानों का नुकसान नहीं होगा और उनकी कर्ज पर निर्भरता भी कम होगी.
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