चावल की महंगाई के बीच सरकार एक बड़ा कदम उठा सकती है. यह कदम इथेनॉल उत्पादन से जुड़ा है. सरकार फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी कि FCI के जरिये सरप्लस चावल डिस्टिलरी कंपनियों को सप्लाई करती है ताकि इथेनॉल का उत्पादन हो सके. लेकिन अब इस सप्लाई पर रोक लग सकती है क्योंकि दिनों दिन चावल की महंगाई बढ़ती जा रही है. अभी हाल में सरकार ने एक बड़ा ऐलान किया था गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. कुछ इसी तरह का निर्णय इथेनॉल बनाने के लिए एफसीआई के चावल सप्लाई पर रोक को लेकर हो सकता है. एक अंग्रेजी अखबार ने इसकी रिपोर्ट जारी की है.
सूत्रों ने 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' से कहा कि सरकार इस पर विचार कर रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो हफ्ते में देश के अलग-अलग इलाकों में अच्छी बारिश हुई है जिससे फसलों की बुआई तेज हो गई है. धान की रोपनी भी गति पकड़ रही है. यहां तक कि खरीफ फसलों की बुआई पिछले साल के रिकॉर्ड को पार कर गई है. इसके बावजूद सरकार अनाजों की महंगाई को लेकर सावधान है और महंगाई काबू में रखने के लिए कदम उठा रही है.
इथेनॉल बनाने के लिए कंपनियों को एफसीआई से 2000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से चावल दिया जाता है. दूसरी ओर, सरकार ने खुले बाजार में अनाज बेचने वाली योजना ओपन मार्केट सेल स्कीम में चावल का रेट 3100 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. मौजूदा इथेनॉल सप्लाई वर्ष (दिसंबर-नवंबर) में एफसीआई ने इथेनॉल के लिए 30 लाख टन चावल सप्लाई का टारगेट फिक्स किया है जिसमें से केवल 13 लाख टन ही जारी किया गया है.
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2021-22 में एफसीआई ने इथेनॉल के उत्पादन के लिए 1.02 मीट्रिक टन चावल 2,000 रुपये/क्विंटल की कीमत पर बेचा. वहीं 2020-21 में सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए डिस्टिलरीज को 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 81,044 टन चावल आवंटित किया था. इथेनॉल इसलिए बनाया जा रहा है ताकि उसे पेट्रोल में मिलाया जाए. सरकार पेट्रोल का आयात खर्च घटाने के लिए पेट्रोल में इथेनॉल ब्लेंडिंग कर रही है. अभी पेट्रोल में 11 परसेंट तक इथेनॉल मिलाया जा रहा है. सरकार ने 2025 तक पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल मिलाने का टारगेट तय किया है. इसके लिए चावल के अलावा मक्का और टूटे अनाजों से इथेनॉल बनाया जा रहा है.
अधिकारियों के मुताबिक डिस्टिलरी कंपनियां खांड़ या शीरा से इथेनॉल बनाती हैं जो चीनी का एक बाई प्रोडक्ट है. हालांकि गन्ना या चीनी से ही इथेनॉल बनाने का काम पूरा नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल ब्लेंडिंग के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता. इसलिए दूसरे विकल्प जैसे कि मक्का और चावल का इस्तेमाल किया जाता है.
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