पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के बहाने किसान संगठनों के बीच वर्चस्व और क्रेडिट लेने की जंग खुलकर सामने आ गई है. इस समय 13 फरवरी से चल रहे आंदोलन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के लोग कर रहे हैं और सरकार इन्हीं के नेताओं से वार्ता कर रही है. तो किसानों के दूसरे गुटों में इसे लेकर बड़ी बेचैनी है कि आखिर सरकार एक ही ग्रुप से क्यों बात कर रही है. मांग तो उनकी भी वही है. दरअसल, इस आंदोलन से वो चेहरे गायब हैं जो पिछले किसान आंदोलन में चमक रहे थे. अब सरकार जिन लोगों से बातचीत कर रही है वो भी एसकेएम से ही जुड़े रहे हैं लेकिन अराजनैतिक के नाम पर उनका अलग धड़ा बन चुका है.
एसकेएम (अराजनैतिक) के नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने आंदोलनकारी किसानों से कहा है कि तमाम किसान भाईयों से प्रार्थना है कि संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) और किसान मजदूर मोर्चा, ये दोनों फोरम जो रणनीति साझा करें उसी के साथ हमें आगे बढ़ना है. किसानों को उनका संकेत साफ है कि आंदोलन का अगुवाई जो संगठन कर रहे हैं उन्हीं की बात माननी है. दूसरी ओर राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी चाहते हैं कि सरकार उनसे भी बातचीत करे.आम लोगों में भी इस बात की चर्चा है कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर 378 दिन तक डटे रहने वाले किसान नेता इस बार कहां हैं?
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दरअसल, ऐसा लगता है कि राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी जैसे बड़े किसान नेताओं को सरकार खुद अलग रखकर सिर्फ उन लोगों से बातचीत जारी रखना चाहती है जो असल में इस बार आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं. लेकिन श्रेय लेने और अपनी साख बचाने की जंग ऐसी है कि सरकार ने जिस एसकेएम (अराजनैतिक) ग्रुप को सरकार ने पांच फसलों की गारंटिड खरीद का प्रपोजल दिया वह उस पर मंथन कर ही रहा था कि उससे पहले एसकेएम के दूसरे ग्रुप ने उसे रिजेक्ट करने का प्रेस नोट जारी कर दिया. जबकि उसे सरकार ने कोई प्रपोजल ही नहीं दिया था.
असल में जब 13 फरवरी को एसकेएम (अराजनैतिक) ने इस आंदोलन की शुरुआत की तब सीन में न तो राकेश टिकैत थे और न गुरनाम सिंह चढूनी. जबकि किसान आंदोलन पार्ट-1 में दोनों नेता किसानों के बीच बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे. ये दोनों नेता इस बार 12 फरवरी तक मौन रहे. किसान आंदोलन की लीड किसी और संगठन ने ले ली. राकेश टिकैत एसकेएम के उस ग्रुप में हैं जिसके कई नेता चुनाव लड़ चुके हैं. उस ग्रुप ने 16 तारीख को अपनी मांगों को लेकर ग्रामीण भारत बंद का आह्वान किया था. इससे पहले 26 जनवरी को 400 से अधिक जिलों में ट्रैक्टर मार्च निकाला था. लेकिन 13 तारीख के आंदोलन में उसकी कोई भूमिका नहीं थी.
दरअसल, ऐसा माना जा रहा है कि एसकेएम (अराजनैतिक) की ओर से 13 फरवरी को शुरू किए गए आंदोलन को लेकर राकेश टिकैत और चढूनी अंदाजा नहीं लगा पाए कि यह इतना बड़ा हो जाएगा कि केंद्र सरकार के तीन-तीन वरिष्ठ मंत्री उससे बातचीत करने दिल्ली से चंडीगढ़ आना शुरू कर देंगे. जैसे ही बातचीत शुरू हुई अब इन दोनों नेताओं की बेचैनी भी बढ़ गई. अब वार्ता से अलग रहने की वजह से इन्हें लेकर चर्चा का बाजार गर्म है कि अब सरकार इनको भाव ही नहीं दे रही है. जबकि सभी संगठनों की मांगें कॉमन हैं. ऐसा ही परसेप्शन इन नेताओं को बेचैन कर रहा है.
ऐसे में अब इन दोनों नेताओं ने भी अपने-अपने मजबूत पकड़े वाले क्षेत्रों में आंदोलन शुरू कर दिया है. दोनों की इच्छा यह है कि सरकार उनसे भी बातचीत करे. एसकेएम के नेता आविक साहा ने 'किसान तक' से बातचीत में कहा कि सरकार अगर हमसे बातचीत नहीं करना चाहती तो हम क्या कर सकते हैं. लेकिन पिछले आंदोलन में लिखित आश्चासन हमको ही दिया था. राकेश टिकैत हमारे ग्रुप में हैं लेकिन गुरनाम सिंह चढूनी अभी एसकेएम का हिस्सा नहीं हैं. उम्मीद है कि वो हमारे साथ आ जाएंगे.
उधर, राकेश टिकैट ने कहा है कि पंजाब में तीन मोर्चे हैं, जिनमें से एक मोर्चा आंदोलन कर रहा है. यह संयुक्त किसान मोर्चा का आह्वान नहीं था और न ही किसी से बात हुई थी. लेकिन हम किसानों के साथ हैं. किसानों पर अत्याचार होगा तो हम चुप नहीं रहेंगे. भाकियू कार्यकर्ता अभी दिल्ली नहीं जाएंगे, लेकिन 21 फरवरी को सभी जिला मुख्यालयों पर ट्रैक्टरों के साथ प्रदर्शन होगा और 26 व 27 फरवरी को हरिद्वार से गाजीपुर बार्डर दिल्ली तक हाईवे पर ट्रैक्टर मार्च होगा. हमारे ट्रैक्टर हाईवे पर एक साइड में होंगे.
दूसरी ओर, भाकियू (चढ़ूनी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम चढूनी ने कुरुक्षेत्र में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दिए गए पांच फसलों की गारंटिड खरीद के प्रस्ताव में कपास, मक्का व दालों के साथ साथ आयल सीड (सरसों, सूरजमुखी,तोरिया इत्यादि) व बाजरा को भी शामिल किया जाना चाहिए. इससे फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा.
उन्होंने कहा कि भाकियू (चढ़ूनी) व हरियाणा के किसान चल रहे आंदोलन व सरकार के रवैया पर नज़र बनाए हुए हैं, अगर सरकार उक्त मांगों को नहीं मानती है तो तो 21 फरवरी को आंदोलनकारी संगठनों व केंद्र सरकार के बीच होने वाली मीटिंग के बाद उनका संगठन हरियाणा के किसानों को साथ लेकर आगामी रणनीति बनाएगा. चढूनी इस बीच ट्रैक्टर मार्च निकालकर और टोल फ्री करवाकर हरियाणा में अपनी ताकत दिखा चुके हैं.
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