जालंधर के धान किसान भारी परेशानी में हैं. परेशानी इसलिए है क्योंकि एक तरफ सरकार पराली में आग नहीं लगाने दे रही. दूसरी ओर, बेलर मशीनें पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं जो पराली को ठिकाने लगा सकें. ऐसे में जालंधर के किसान घोर पसोपेश में हैं कि आखिर वे क्या करें. जालंधर में इस बार 4.25 लाख एकड़ में पराली फैली है जबकि उसे ठिकाने लगाने के लिए मात्र 125 बेलर मशीनें ही उपलब्ध हैं. यह संख्या बहुत कम है जिससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है. किसानों को बेलर मशीनें नहीं मिल रही हैं, इसलिए वे पराली में आग लगा रहे हैं.
जालंधर के अधिकारी किसानों को भरोसा दिला रहे हैं कि बेलर मशीनें मिल जाएंगी, पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है. पराली का अंबार लगा है और किसान मशीनों के इंतजार में टकटकी लगाए हुए हैं. यहां के किसानों की शिकायत है कि सरकार से उन्हें पराली के बदले सब्सिडी भी नहीं मिल पा रही है. कहां किसानों को उनकी पराली के बदले पैसे मिलने थे. इसके उलट अगर कोई बेलर मशीन खेत में आ रही है, तो पराली निपटाने के लिए किसानों को पैसा देना पड़ रहा है.
'दि ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट बताती है कि जालंधर के तकरीबन 46,600 किसानों ने 4.25 लाख एकड़ में धान की रोपनी की थी. धान की इस पराली को निपटाने के लिए जिले में महज 125 मशीनें मिली हैं. रकबे के लिहाज से देखें तो कुल धान के क्षेत्रफल के एक तिहाई मशीनों की संख्या है. अमूमन एक बेलर मशीन 700 से 800 एकड़ की पराली को निपटा पाती है. इस तरह 125 मशीनों से कुल एक लाख एकड़ की पराली को ही ठिकाने लगाया जा सकेगा. इस तरह तीन लाख से अधिक एकड़ की पराली यूं ही छूट जाएगी. यही वजह है कि किसान पराली को आग के हवाले कर रहे हैं.
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अलीवाल गांव के किसान रणजीत सिंह कहते हैं, “मेरे पास धान की खेती की लगभग 28 एकड़ जमीन है. तीन हफ्ते पहले हमारे सरपंच को एक सीनियर अधिकारी ने कहा था कि किसानों को बेलर मशीनों के लिए 15-20 दिनों तक इंतजार करने के लिए कहें. हालांकि, हमें अभी तक कोई मशीन नहीं मिली है. खेत में आलू की फसल बोने का इंतजार कर रहे किसान पराली जलाने को मजबूर हैं. मैंने किसी तरह 15 से 20 एकड़ में धान की पराली को निपटाया है. छोटे किसान बड़ी मशीनें नहीं खरीद सकते. जब तक उन्हें मशीनें उपलब्ध नहीं कराई जाएंगी, पराली को जलाने के अलावा उसे निपटाने का कोई रास्ता नहीं है.
बेलर्स एसोसिएशन, जालंधर के अध्यक्ष मक्खन सिंह 'दि ट्रिब्यून' से कहते हैं, “मैंने खुद पांच बेलरों की व्यवस्था की. एक केवल एक गांव (1,000 एकड़) को कवर कर सकती है. बेलर की कमी होने के कारण कई किसान पराली जलाने को मजबूर हैं. हम अपनी मशीनों से 10 गांवों को कवर कर सकते हैं. पराली प्रबंधन के लिए हमें बड़ी मशीनों की जरूरत है. बड़ी बेलर मशीन पांच छोटे बेलरों का काम कर सकती हैं.”
इसके अलावा सब्सिडी के अभाव में किसानों को अपने खेतों में पराली के बंडल बांधने वाले बेलरों को भुगतान करना पड़ता है. मक्खन सिंह ने कहा, “हम अपने आसपास के 10 से 12 किमी के गांवों में अपनी मशीनों के लिए पैसे नहीं लेते हैं. लेकिन जिन बेलर्स को 12 किमी तक सर्विस देनी होती हैं, उन्हें आने-जाने के लिए चार्ज लेना पड़ता है. वे दूरी के आधार पर 500 से 1000 रुपये के बीच चार्ज लेते हैं.'
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मुख्य कृषि अधिकारी जसवंत सिंह ने कहा, “जालंधर में हमारे पास 125 बेलर हैं. चूंकि बेलर बाहर से मंगाए जाते हैं, इसलिए इन मशीनों का अभाव है. इस साल किसानों से बेलर के लिए 100 से अधिक आवेदन मिले हुए थे, लेकिन कमी के कारण केवल 49 ही दिए जा सके.
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