झारखंड में जैविक खेती की बेहतर संभवानाए हैं क्योंकि यहां पर जमीन का दोहन अधिक नहीं हुआ है और किसानों ने अधिक रसायनिक खाद का प्रयोग भी खेतों में नहीं किया है. जैविक खेती की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए यहां पर जैविक खेती प्राधिकार झारखंड (ऑर्गेनिक फार्मिंग ऑथोरिटी ऑफ झारखंड यानी कि ओफाज) का गठन किया गया था. झारखंड के किसानों को जैविक खेती की जानकारी देना, झारखंड में जैविक खेती को बढ़ावा देना ओफाज का प्रुमख उद्देश्य था. पर यह दुर्भाग्य की बात है कि आज झारखंड में ओफाज के जरिए कहीं पर भी जैविक खेती नहीं हो रही है. जबकि ओफाज का दावा है कि संस्था के जरिए आज पूरे झारखंड में ढाई लाख हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है.
झारखंड में जैविक खेती की स्थिति को लेकर जब पड़ताल की गई थो पाया गया कि कई ऐसे किसान हैं जो जैविक खेती के नाम पर ठगे गए हैं. इस बारे में जानकारी देते हुए झारखंड किसान महासभा के केंद्रीय अध्यक्ष राजू महतो ने बताया कि झारखंड की भौगोलिक स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि जैविक खेती झारखंड के लिए वरदान साबित हो सकती थी. पर ओफाज की लापरवाही, घपले और ढुलमुल रवैये के कारण स्थिति जस की तस बनी रही और किसानों के मन में जैविक खेती को लेकर एक अविश्वास की भावना भी धीरे-धीरे घर कर रही है. उन्होंने कहा कि किसानों से आवेदन देने के नाम पर 50-50 रुपए का फॉर्म भराया गया. पर अभी तक उन्हें लाभ नहीं मिला है.
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राजू महतो ने बताया कि ओफाज का दावा है कि एक उसके साथ एक लाख किसान जैविक खेती करने के लिए रजिस्टर्ड हैं, पर लाभुक किसान कहां हैं और उत्पादों की बिक्री कहां हो रही है, इस बारे में किसी प्रकार की जानकारी ओफाज की तरफ से नहीं दी जाती है. इतना नहीं किसान महासभा का यह भी आरोप है कि जैविक खेती के तहत किसानों को इनपुट प्रदान किया जाना चाहिए. इसलिए कृषि इनपुट की खरीद और इसके सर्टिफिकेशन के नाम पर भी घोटाला हुआ है. इस मामले में ओफाज के पूर्व सीईओ अभी भी जांच के घेरे में हैं. राजू महतो ने कहा कि जब इस बारे में ओफाज के कर्मियों से जानकारी मांगी जाती है तो कर्मी कभी सीधा जवाब नहीं देते हैं. इसके विरोध में झारखंड किसान महासभा ने पिछले दिनों कृषि निदेशालय का घेराव भी किया था.
राजू महतो बताते हैं कि अभी तक ओफाज से जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार सिर्फ धनबाद, बोकारो से ही लगभग 12000 किसान हैं जो आज भी आवेदन देने के बाद जैविक खेती के लिए इनपुट और प्रशिक्षण मिलने का इंतजार कर रहे हैं. पर ओफाज की तरफ से कुछ नहीं किया जा रहा है. यहां तक कि प्रमाणित जैविक उत्पादों की बिक्री के लिए कांके रोड स्थित कृषि निदेशालय के पास में ही एक जैविक आउटलेट खोला गया था. पर उस आउटलेट में थोड़ी बहुत सब्जियां ही होती हैं और वह भी प्रमाणित नहीं रहती हैं.
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वहीं रामगढ़ जिले के हेसापोड़ा पंचायत के किसान नंदकिशोर मुर्मू ने बताया कि उनके पंचायत का भी चयन ओफाज की तरफ से जैविक खेती कलस्टर के तौर पर किया गया था. ओफाज की तरफ से अधिकारी आए थे और किसानों को आवेदन देने के लिए कहा था. इस काम के लिए नंदकिशोर मुर्मू का भी चयन किया और उनसे वादा किया था वो उन्हें काम देंगे और अपने क्षेत्र के किसानों का वो नेतृत्व करेंगे. उन्होंने इसके लिए कलस्टर का निर्माण करने के लिए अपने क्षेत्र के 1000 किसानों का आवेदन भी भरा था. प्रति आवेदन के लिए 30 रुपये लिए गए थे. पर आज दो साल से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन किसानों को कुछ नहीं मिला है. इतना ही नहीं अब किसान जैविक खेती के नाम से ही भड़क जाते हैं. नंदकिशोर ने कहा कि जब वो ओफाज के कर्मियों से इस बारे में पूछते हैं तो उनके खिलाफ एफआईआर करने की धमकी दी जाती है.
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