पंजाब-हरियाणा के अलावा अन्य क्षेत्रों के किसान अपनी मांगों को लेकर लामबंद हैं. किसानों की मुख्य मांग एमएसपी गांरटी कानून बनाने की है, किसानों का कहना है कि इससे उनकी फसल का सही दाम मिल सकेगा. इसको लेकर वे दिल्ली कूच कर रहे हैं. जबकि, आंदोलन की वजह से आम जनजीवन प्रभावित न हो इसके लिए सरकार ने किसानों को रोकने के लिए हरियाणा और दिल्ली की सीमाओं को बंद कर दिया है. किसी तरह की अप्रिय घटना से बचने के लिए कुछ इलाकों में इंटरनेट सेवाएं भी बंद की गई हैं और धारा 144 भी लागू की गई है.
पंजाब के शंभू बॉर्डर समेत अन्य सीमाओं पर किसानों और पुलिस प्रशासन के बीच तनातनी देखी जा रही है.
बीते दिन मंगलवार को राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान घोषणा करते हुए कहा कि इंडिया अलायंस की सरकार बनने पर एमएसपी गांरटी कानून लागू करेंगे. इससे देश के 15 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचेगा. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी यही बात दोहराई.
अगले कुछ महीनों में ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में राहुल गांधी का एमएसपी कानून लागू करने का बयान पूरी तरह से राजनीति लगता है और यह खोखला नजर आता है. क्योंकि साल 2010 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और उस वक्त मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और सोनिया गांधी सरकार में शामिल दलों के गठबंधन की प्रमुख थीं. उस समय कांग्रेस ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को सिरे से खारिज कर दिया था. इसलिए राहुल गांधी और खड़गे की यह घोषणा सिर्फ राजनीतिक पैंतरा भर नजर आती है.
सत्ताधारी नेता कहते हैं कि राहुल गांधी और कांग्रेस को अगर इतनी ही किसानों की चिंता रही है तो इससे पहले राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अशोक गहलौत और भूपेश बघेल के नेतत्व में कांग्रेस की सरकार थी तब कांग्रेस ने क्यों नही एमएसपी गारंटी कानून लागू कर दिया. इसके अलावा वर्तमान में कांग्रेस के नेतृत्व में हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना में सरकार है तो कांग्रेस इन राज्यों के किसानों को लाभ देने के लिए एमएसपी गारंटी कानून क्यों लागू नहीं कर देती है.
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वहीं, कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार कहती है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को कांग्रेस ने लागू नहीं किया है. लेकिन सच्चाई यह है कि स्वामीनाथन कमीशन में 201 सिफारिशें थी, जिसमें से यूपीए सरकार ने 175 सिफारिशें लागू कर चुकी थी. उसमें से 26 सिफारिशें बची थीं, जिसमें एमएसपी गारंटी कानून भी शामिल थी. इस महत्वपूर्ण एएसपी गारंटी कानून को लागू करने की घोषणा कल कांग्रेस अध्यक्ष ने कर दी है.
अब सवाल यह है कि एमएसपी कानून की मांग प्रमुखता से पंजाब और हरियाणा से जुड़े किसान ही क्यों कर रहे हैं, तो इन राज्यों में सर्वाधिक मंडियां हैं, लगभग हर 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर मंडी हैं. इनमें से 150 से ज्यादा बड़ी आनाज मंडियां हैं. जबकि, अन्य राज्यों में तुलनात्मक रूप से मंडियों का ढांचा इतना बेहतर नहीं है. ऐसे में मंडी ढांचे को दुरुस्त करने की सबसे बड़ी जरुरत है, ताकि एमएसपी का फायदा कुछ क्षेत्र के किसानों को मिलने की बजाय देशभर के किसानों को मिल सके. क्योंकि नीति आयोग की 2016 में आई रिपोर्ट बताती है कि केवल 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है.
एमएसपी कानून लागू करने के लिए सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं. एमएसपी लागू करने से सरकार पर अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपये का बोझ बढ़ सकता है. 2020 में कृषि उपज का कुल मूल्य 40 लाख करोड़ रुपये था. इसमें से एमएसपी में शामिल 23 फसलों का कुल उपज मूल्य करीब 10 लाख करोड़ रुपये था. जबकि, सब्जियों और फलों की उपज एमएसपी में शामिल नहीं हैं.
मौजूदा एमएसपी व्यवस्था के तहत सरकार अपने पास 41 लाख टन का बफर स्टॉक रखने के अलावा करीब 110 लाख टन गेहूं और धान की खरीद करती है. अगर हम इसमें कुछ और फसलें जोड़ दें तो उन्हें कैसे खरीदा और एकत्र किया जाएगा? ये भी बड़ी चुनौती होगी.
मतलब कृषि उपज मूल्य 10 लाख करोड़ से बढ़कर कहां तक पहुंचेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. दूसरी कैश फसलों में रिस्क अधिक होता है तो जाहिर है कि फल और सब्जियों के किसानों को सरकार कैसे एमएसपी की गारंटी से अलग रख सकती है.
इन्हीं मुश्किलों और चुनौतियों के चलते पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार खुद एमएसपी गारंटी देने के लिए कभी आगे नहीं आई और सिफारिशों को खारिज करती रही. अब आंदोलन के बीच बयानबाजी करके किसानों का हितैषी बनने की कोशिश की जा रही है.
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