पराली पर Supreme Court ने दिया कड़क जवाब, बोले- किसानों पर सवाल उठाना गलत

पराली पर Supreme Court ने दिया कड़क जवाब, बोले- किसानों पर सवाल उठाना गलत

चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम पराली जलाने पर टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि किसानों पर दोष डालना ठीक नहीं है, खासकर जब उनका इस अदालत में प्रतिनिधित्व भी बहुत कम है.' साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल और दीर्घकालिक उपायों पर सफाई मांगी. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भी पराली जलाने की प्रक्रिया सामान्य रूप से हुई लेकिन इसके बावजूद लोग साफ नीला आसमान और सितारे देख पा रहे थे.

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पराली पर Supreme Court ने दिया कड़क जवाब, बोले- किसानों पर सवाल उठाना गलतसुप्रीम कोर्ट का पराली पर सख्‍त रुख

पराली को लेकर देश की सर्वोच्‍च अदालत ने एक अहम टिप्‍पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या को सिर्फ सर्दियों के महीनों में लिस्‍ट किए जाने वाले एक 'रूटीन' मामले की तरह नहीं देखा जा सकता. कोर्ट ने कहा कि इस गंभीर समस्या के लिए शॉर्ट-टर्म और लॉन्‍ग टर्म सोल्‍यूशंस तलाशने के लिए इस मामले की सुनवाई महीने में दो बार की जाएगी. इससे पहले 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली–एनसीआर में बिगड़ती वायु गुणवत्ता से संबंधित एक याचिका पर 3 दिसंबर को सुनवाई करने पर सहमति जताई थी और कहा था कि इस मुद्दे की नियमित रूप से निगरानी की जरूरत है. उस समय चीफ जस्टिस ने कहा था, 'न्यायिक मंच के पास कौन सी जादू की छड़ी है? मैं जानता हूं कि यह दिल्ली-एनसीआर के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है.'  

अहंकार का मसला न बने पराली 

चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मामले पर टिप्‍पणी करते हुए कहा, 'पराली जलाने का मुद्दा अनावश्यक रूप से राजनीतिक मुद्दा या अहंकार का विषय नहीं बनना चाहिए.' चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण के तौर पर पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराने की सामान्य धारणा पर सवाल उठाया. आपको बता दें कि वह खुद हरियाणा के हिसार में एक किसान परिवार से आते हैं. उन्‍होंने पूछा, 'कोविड के दौरान भी पराली जल रही थी लेकिन तब लोग साफ नीला आसमान कैसे देख पा रहे थे? इसका मतलब है कि दूसरे कारक भी काम कर रहे हैं.' 

किसानों पर दोष डालना ठीक नहीं 

चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम पराली जलाने पर टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि किसानों पर दोष डालना ठीक नहीं है, खासकर जब उनका इस अदालत में प्रतिनिधित्व भी बहुत कम है.' साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल और दीर्घकालिक उपायों पर सफाई मांगी. चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार से कहा कि वह वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और बाकी एजेंसियों की तरफ से उठाए जा रहे विशेष कदमों की जानकारी दे ताकि अदालत को वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपायों के बारे में बताया जा सके.

चीफ जस्टिस ने कहा कि दिल्ली प्रदूषण मामले की सिर्फ अक्टूबर महीने में रेगुलर लिस्टिंग की नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे कम से कम महीने में दो बार नियमित तौर पर लिया जाना चाहिए. सोमवार के एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्‍यूआई ) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'मेरे भाई (जस्टिस बागची) बता रहे थे कि सिर्फ इसलिए कि यह मामला आज लिस्‍टेड है और इसकी सुनवाई हो रही है...एक्‍यूआई स्तरों में सुधार देखा गया है.' 

कोविड के दौरान भी जली पराली 

केंद्र सरकार की ओर से मौजूदा एडीशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों का जिक्र करते हुए कहा, 'पराली जलाना, वाहन प्रदूषण, निर्माण से उड़ने वाली धूल, सड़क की धूल और बायोमास बर्निंग को प्रमुख कारकों के रूप में चिन्हित किया गया है.' उन्होंने कहा, 'मैं हर श्रेणी के तहत अब तक उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी दे सकती हूं.' बाकी कारणों की ओर इशारा करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भी पराली जलाने की प्रक्रिया सामान्य रूप से हुई, लेकिन इसके बावजूद लोग साफ नीला आसमान और सितारे देख पा रहे थे.

कितने उपाय सुझाए गए, कितने लागू 

बेंच ने कहा, 'क्यों? इस पर सोचने की जरूरत है और बाकी कारणों पर भी. हम एक हफ्ते के अंदर उन वजहों पर नियंत्रण के लिए उठाए गए कदमों की रिपोर्ट चाहते हैं.' उन्होंने यह भी कहा कि अदालत 'दीर्घकालिक और अल्पकालिक योजनाएं' देखना चाहती है. इसके बाद चीफ जस्टिस ने देश में अनियोजित शहरी विकास और बढ़ती जनसंख्या का जिक्र किया और कहा, "देश का कोई भी शहर इतनी बड़ी आबादी को समायोजित करने या इस सोच के साथ विकसित नहीं किया गया था कि हर घर में कई कारें होंगी. अब देखते हैं कि हमें कौन से उपाय सुझाए जाते हैं और वे कितने लागू होते हैं या केवल कागजों पर हैं.' चीफ जस्टिस ने कहा कि शहरों का विकास जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालना चाहिए.

साल में 2 बार होगी सुनवाई 

सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि वह सालभर में महीने में दो बार इस मामले की सुनवाई सुनिश्चित करेगी ताकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बनाए गए उपाय किस तरह से लागू हो रहे हैं, इस पर भी नजर रखी जा सके. बेंच ने यह भी कहा कि इस बात का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक विश्लेषण होना चाहिए कि कौन सा वजह इस समस्या में सबसे अधिक योगदान दे रही है. चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते. समाधान विशेषज्ञों से ही आने चाहिए. अदालत के पास वो समाधान हों या न हों, लेकिन हम सभी हितधारकों को चर्चा के लिए एक मंच दे सकते हैं.' अदालत ने इस याचिका की सुनवाई के लिए तारीख 10 दिसंबर तय की है.

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