बारिश के मौसम में गन्ने की ग्रोथ बढ़िया होती है, लेकिन ज्यादा बारिश के कारण फसल को नुकसान होने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में फसल को जलभराव से बचाने के लिए पानी के निकास की सही व्यवस्था करें नहीं तो इससे फसल में कीट लगने, रोग लगने, जड़ सड़ने और उपज की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ सकता है.
आज हम आपको गन्ने के ऐसे रोग और उसके उपचार की जानकारी देने जा रहे हैं, जो फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है और उसका समाधान गोबर में छिपा है.
बारिश के मौसम में गन्ने की फसल में कई बीमारियां हो सकती हैं और इनमें लाल सड़न रोग और तना सड़न रोग शामिल हैं. ऐसे में पहले जानते हैं लाल सड़न रोग के बारे में. गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग होने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़कर नीचे से सूखने लगती हैं. यह एक फफूंदजनक रोग है और गन्ने के विकास में बाधा डालता है. (सांकेतिक तस्वीर)
कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, यह रोग लगने पर संक्रमित पौधे को खेत से हटा देना चाहिए, ताकि यह अन्य पौधों में न फैले. इसके उपचार के लिए किसानों को कार्बेंडाजिम 0.1% का छिड़काव करने की सलाह दी जाती है.
रोग दिखने पर फसल में इस दवा का 1 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल में 2 बार फसलों पर छिड़काव करना चाहिए. इस दवा के छिड़काव कर आसानी से लाल सड़न रोग से बचाव किया जा सकता है.
आप सोच रहे होंगे कि गोबर के इस्तेमाल से कैसे गन्ने की कोई बीमारी ठीक हो सकती है, लेकिन यह प्रयोग फायदेमंद और असरदार है. बारिश के मौसम में गन्ने की फसल में एक और फफूंदजनित रोग- तना सड़न रोग होने का खतरा बढ़ जाता है. यह रोग होने पर गन्ने की गांठ में गाढ़ा काला रंग दिखने लगता और इसमें सड़न फैलने लगती है.
गन्ने की फसल को इस रोग से बचाने के लिए किसानों को प्रति एकड़ में 5 किलो सड़े हुए गोबर के साथ 250 से 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है. दरअसल, गोबर में ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाने पर यह मिश्रण जैविक रोगनाशक की तरह काम करता है, जिससे प्रभावी रूप से फफूंदजनित रोग से बचाव होता है.
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