
इन दिनों रबी सीजन की बुवाई चल रही है और सरसों इस सीजन की एक प्रमुख फसल है. भारत में कई राज्यों में बड़ी संख्या में किसान इसकी खेती करते हैं. वर्तमान में ज्यादातर किसान इसकी बुवाई कर चुके हैं तो वहीं, अब इसकी बुवाई का आखिरी समय बेहद नजदीक है. ज्यादातर किसानाें के खेतों में तो अब सरसों के पौधे लहलहाने लगे हैं.

ऐसे में जब सरसों के खेत में पीले-पीले फूल खिलते हैं तो लगता है जैसे धरती ने पीली रजाई ओढ़ ली हो. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इन फूलों में सिर्फ रंग ही नहीं, एक हल्की-सी खुशबू भी होती है. इंसान पास जाकर (लगभग कुछ ही मीटर तक ही) इसकी खुशबू महसूस कर पाता है. हां अगर, हवा चल जाए तो यह महक जल्दी फैल तो जाती है, लेकिन बहुत दूर तक साफ महसूस नहीं होती.

अब जरा सोचिए, जब इंसान को इतने पास जाकर ही खुशबू आती है तो फिर मधुमक्खियां इन फूलों तक कैसे पहुंचती हैं. और यही है असली कमाल. दरअसल, मधुमक्खियां हमारी नाक से कई गुना तेज सूंघ सकती हैं. वे सरसों के फूल की खुशबू को बहुत दूर से पकड़ लेती हैं. कई बार तो वे सैकड़ों मीटर से लेकर एक-दो किलोमीटर दूर तक उड़कर सिर्फ खुशबू की दिशा पकड़ते हुए फूलों तक आ जाती हैं.

कुछ मधुमक्खियां तो 5 किलोमीटर या उससे भी ज्यादा का चक्कर लगा आती हैं और गुनगुनाते हुए उड़ने वाले गोल-मटोल भंवरे भी सरसों को बहुत पसंद करते हैं. वे मधुमक्खियों जितना दूर तो नहीं जा पाते, लेकिन करीब 1 किलोमीटर तक फूल खोजने पहुंच सकते हैं. वे भी खुशबू और फूल के रंग दोनों का इस्तेमाल करके रास्ता ढूंढते हैं.

सरसों के फूल सिर्फ दिखने और महकने के लिए नहीं होते. ये मधुमक्खियों और भंवरों को एक खास काम के लिए बुलाते हैं. वह काम है परागण का. ये दोनों कीड़े फूल से फूल पर जाकर पराग (pollen) ले जाते हैं. इससे सरसों के पौधे में ज्यादा फली (पॉड) बनती है और उनमें ज्यादा बीज भरते हैं. इन बीजों से ही बाद में तेल बनता है. यानी अगर मधुमक्खियां और भंवरे न हों तो सरसों की उपज आधी भी रह सकती है.

सरसों की खुशबू मधुमक्खियों के लिए एक तरह का रास्ता बताने वाला बोर्ड होती है. जैसे हमें रास्ता दिखाने के लिए साइन बोर्ड मिल जाते हैं, वैसे ही उन्हें खुशबू का रास्ता मिलता है, लेकिन यहां एक समस्या भी हो सकती है. अगर हवा में प्रदूषण ज्यादा हो तो यह खुशबू टूट जाती है और मधुमक्खियां रास्ता ठीक से नहीं ढूंढ पातीं. इसलिए साफ हवा का सीधा असर सरसों की खेती और उसकी पैदावार पर भी पड़ता है.

तो अगर आप अगली बार कभी सरसों का पीला खेत देखें तो यह याद रखिए कि वह सिर्फ दिखने में ही सुंदर नहीं है. वह मधुमक्खियों और भंवरों को बुलाने के लिए हल्की-सी खुशबू से आवाज लगा रहा है और यही छोटी-सी टीम मिलकर हमारी रसोई के लिए तेल तैयार करने में मदद करती है.
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