मुजफ्फरपुर के लीची किसान लीची सीजन में दोगुनी कमाई करते हैं. लीची का मौसम आते ही लीची के बगीचों में मधुमक्खी बक्से दिखने लगे हैं. मुजफ्फरपुर में लीची शहद का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. लीची के बगीचों में मधुमक्खी पालन के कारण लीची के फल बड़े आकार में उगते हैं और लीची से बनने वाले शहद की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है. मुजफ्फरपुर की शाही लीची से बने शहद की अपनी खास पहचान और मांग है.
शाही शहद की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. किसान दशरथ बताते हैं कि मार्च माह में लीची के बगीचे में मधुमक्खी बक्से रखे जाते हैं. फिर वे लीची के पेड़ के रस से रस इकट्ठा करते हैं और मधुमक्खी के बक्से में बने छत्ते में जमा करते हैं. इसके बाद शहद निकालकर पैक कर देते हैं.
इसके स्वाद के आगे दूसरे सारे शहद फेल हैं. गुणवत्ता और स्वाद के मामले में मुजफ्फरपुर की लीची शहद का कोई जवाब नहीं है. यह काम मुजफ्फरपुर समेत अगल बगल के जिलों में कई सालों से किया जा रहा है. लीची के शहद का रंग भी बाकियों से अलग होता है.
लैब टेस्ट में भी यह साबित हुआ है कि यह शहद सिर्फ लिची के रस से ही बना हुआ है. इसमें किसी भी प्रकार का कोई प्रोसेसिंग नहीं किया गया है.
वही लीची के बड़े किसान बनवारी सिंह ने बताया कि लीची हमलोग की प्रमुख नगदी फसल है. इसके साथ ही लीची में बेहतर मंजर आने पर इसके बाग में लगे मधुमक्खी बॉक्स में शहद का उत्पादन भी अच्छा होता है. और लीची के पराग वाली शहद की डिमांड भी काफी अच्छी है.
जिससे हम लीची किसानों को बोनस जैसा होता है. इस साल उम्मीद है लीची के अलावा शहद से भी अच्छी आमदनी होगी. कृषि वैज्ञानिक डॉ. श्वेता ने बताया कि लीची के बगीचे से अच्छी पैदावार लेने के लिए बगीचे में मधुमक्खी कॉलोनी बक्से रखना अच्छा होता है. इससे परागण बेहतर होता है और अधिक फल लगते हैं.
लीची के बगीचे में अच्छे फलन के लिए प्रति हेक्टेयर 15-20 मधुमक्खी बक्से रखना आवश्यक है. फूल खिलने और फल लगने के बीच सिंचाई नहीं करनी चाहिए. किसी भी प्रकार के कृषि रसायनों के छिड़काव से बचना चाहिए, अन्यथा मधुमक्खियों को नुकसान होने की प्रबल संभावना है.
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