वैसे तो बरसात के शुरू होते ही छोटी-बड़ी बीमारियां पशुओं पर अटैक शुरू कर देती हैं. लेकिन खासतौर पर बकरे-बकरियों की बात करें तो खुरपका-मुंहपका, गलघोंटू और बकरी चेचक न सिर्फ बकरियों के लिए जानलेवा है, बल्किी पशुपालकों को की जान भी हलकान रहती है.
बारिश के दौरान कुछ पता नहीं चलता कि कब तीनों में से कोई एक बीमारी बकरी को चपेट में ले ले. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट के मुताबिक टीकाकरण करवाकर बकरे-बकरियों को इन तीनों ही बीमारियों से बचाया जा सकता है.
एक्सपर्ट की मानें तो बरसाती बीमारियों की रोकथाम के लिए सबसे बढि़या उपाय है टीकाकरण. बकरियों के मामले में भी इसे अपनाया जा सकता है. क्योंकि अगर वक्त से बकरियों की जांच हो जाए, तय वक्त पर टीका लग जाए और बीमार होने पर सही इलाज करा दिया जाए.
गोट एक्सपर्ट और साइंटिस्ट डॉ. अशोक कुमार की मानें तो उम्र, मौसम और बीमारी के हिसाब से बकरियों को तमाम तरह की बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण सीआईआरजी की ओर से जारी किए गए चार्ट को देखकर ही कराना चाहिए.
चार्ट के मुताबिक, खुरपका-मुंहपका होने पर 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्टर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. 6 महीने बाद दोबारा करना चाहिए. वहीं, बकरी चेचक होने पर 3 से 5 महीने की उम्र पर. बूस्टर डोज पहले टीके के एक महीने बाद. हर साल लगवाएं. इसके अलावा गलघोंटू होने पर 3 महीने की उम्र पर पहला टीका. बूस्टर डोज पहले टीके के 23 दिन या 30 दिन बाद लगाएं.
गोट एक्सपर्ट की मानें तो अमरुद,नीम और मोरिंगा में टेनिन कांटेंट और प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है. अगर वक्त पर हम तीनों पेड़-पौधे की पत्तियां बकरियों को खिलाते हैं तो उनके पेट में कीड़े नहीं होंगे. पेट में कीड़े होना बकरे और बकरियों में बहुत ही परेशान करने वाली बीमारी है.
पेट में अगर कीड़े होंगे तो उसके चलते बकरे और बकरियों की ग्रोथ नहीं हो पाएगी. पशुपालक जितना भी बकरे और बकरियों को खिलाएगा वो उनके शरीर को नहीं लगेगा. खासतौर पर जो लोग बकरियों को फार्म में पालते हैं और स्टाल फीड कराते हैं उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना होगा.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today