मक्के को विश्व में खाद्यान्नों की रानी कहा जाता है क्योंकि इसकी उत्पादन क्षमता खाद्य फसलों में सबसे अधिक है. पहले मक्के को खासकर गरीबों का मुख्य भोजन माना जाता था, जबकि अब ऐसा नहीं है. अब इसका उपयोग मानव भोजन (25%) के साथ-साथ मुर्गीपालन (49%), पशु आहार (12%), स्टार्च (12%), शराब (1%) और बीज (1%) के रूप में भी किया जाता है.
मक्के का उपयोग तेल, साबुन आदि बनाने में भी किया जाता है. भारत में मक्के से 1000 से अधिक उत्पाद बनाए जाते हैं. मकई केक अमीर लोगों का मुख्य नाश्ता है. मक्के का पाउडर छोटे बच्चों के लिए एक पौष्टिक आहार है और इसके दानों को भूनकर भी खाया जाता है. जिस वजह से इसकी मांग समय के साथ बढ़ती जा रही है.
लेकिन बढ़ती मांग के साथ-साथ किसानों को कई तरह की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है. मक्के की फसल में लगने वाला कर्वुलारिया लीफ स्पॉट फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर देता है.
यह रोग उन क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है, जहां जलवायु गर्म और आर्द्र है. घाव अक्सर मध्य से ऊपरी मक्के की पत्तियों पर देखे जाते हैं. इसके अलावा पौधे के किसी भी विकास स्तर पर दिखाई दे सकते हैं. यह इसके पत्तों को बरबाद कर देता है. इस प्रकार फोटोसिंथेसिस में शामिल क्लोरोफिल का क्षेत्र कम हो जाता है. इससे उपज 60 प्रतिशत तक कम हो जाती है.
इस रोग को पहचानने का तरीका है कि यह रोग चकत्तों के रूप में प्रकट होता है, जो बाद में बड़े घावों में विकसित हो जाता है. इसके प्रारंभिक लक्षण बहुत ही छोटे, क्लोरोटिक, पिनहेड आकार के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं. परिपक्व धब्बे छोटे, भूसे के रंग के ज्यादातर गोलाकार और कभी-कभी अंडाकार दिखाई देते हैं. इसके धब्बे 0.5-2.0 मि.मी. लंबे गहरे भूरे रंग के परिधीय छल्ले हल्के पीले रंग से घिरे होते हैं.
फसल को इस रोग से बचाने के लिए खेत के अंदर और आसपास से खरपतवाररहित होना चाहिए. रोग प्रतिरोधी किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए.
रोकथाम के लिए थीरम और कैप्टॉन का 2 ग्राम/कि.ग्रा. के साथ बीज उपचार करने से बीज संक्रमण को कम कर सकते हैं. कवकनाशी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड + जिनेब अधिक प्रभावी है.
बुआई के 35 और 55 दिनों के बाद कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत मैंकोजेब 62 प्रतिशत या जिनेब 75 प्रतिशत, 2 ग्राम/लीटर घोल का पत्तियों के ऊपर छिड़काव करने से रोग में कमी आती है.
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