कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, चना फसल की बुवाई मध्य दिसंबर तक कर लेनी चाहिए. बुवाई में देरी होने से पैदावार कम हो सकती है और इसमें फली भेदक कीट का हमला होने की संभावना ज्यादा रहती है.
चने की फसल की बुवाई के लिए अक्टूबर का पहल हफ्ता चने की बुआई के लिए सबसे आदर्श माना जाता है. असिंचित क्षेत्र में अक्टूबर के दूसरे हफ्ते तक चने की बुवाई कर लेना चाहिए.
किसी कारण से चना फसल समय पर नहीं बो पाने या बिना उपचार के बीज की बुवाई करने से फसल में कई प्रकार के रोगों और कीटों के प्रकोप का खतरा मंडराने लगता है. आज हम आपको चना फसल के एक ऐसे ही खतरनाक रोग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी समय पर रोकथाम न की जाए तो यह पूरी फसल को चौपट कर सकता है. इसका नाम उकठा रोग है.
उकठा रोग प्रमुख रूप से चने की फसल को नुकसान पहुंचाता है. इस रोग का प्रकोप इतना भयावह है कि पूरा खेत इसकी चपेट में आ जाता है. इस रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूंद है.
यह मिट्टी और बीजजनित रोग है. यह रोग पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकता है. उकठा रोग के लक्षण शुरुआत में खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस रोग में पौधे की पत्तियां सूख जाती हैं, उसके बाद पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है. ग्रसित पौधे की जड़ के पास चीरा लगाने पर उसमें काली-काली संरचना दिखाई पड़ती है.
फसल में उकठा रोग की शुरुआत होने पर कवकनाशी का इस्तेमाल करते समय सही मिश्रण और सुरक्षा उपाय करने चाहिए. फसल में उकठा की रोकथाम के लिए रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लयू.पी.0.2 प्रतिशत घोल का पौधों की जड़ में छिड़काव करना चाहिए.
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