झींगा पालन में काफी घातक होता है एएचपीएनडी रोग, इन 8 तरीकों से करें बचाव

झींगा पालन में काफी घातक होता है एएचपीएनडी रोग, इन 8 तरीकों से करें बचाव

झींगा में एक्यूट हेपेटो पैनक्रिएटिक नेक्रोसिस रोग (एएचपीएनडी) एक बड़ी समस्या होती है. वर्तमान समय में यह सबसे हानिकारक गैर वायरल रोग है. इस रोग का खतरा आमतौर पर झींगा पालन करने के पहले 35 दिनों के अंदर होता है.

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झींगा पालन में काफी घातक होता है एएचपीएनडी रोग, इन 8 तरीकों से करें बचावजानिए झींगा में होने वाले रोगों के बारे में

झींगा पालन फायदे वाला व्यवसाय होता है. इसके जरिए किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या रोग की होती है. पूरे विश्व में झींगा पालन करने वाले लोग झींगा में होने वाले रोग की समस्या से जूझते हैं क्योंकि इन रोगों के कारण झींगा में मृत्यु दर काफी अधिक होती है. इससे उद्योग को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है. झींगा में रोग होने के कई कारण हो सकते हैं. इसमें झींगा पालन के तरीकों से लेकर तालाब में मौजूद पानी, झींगा की स्टॉकिंग का तरीका, पानी में  झींगा का घनत्व जैसे कई कारण हो सकते हैं. इसलिए झींगा की खेती में अच्छा उत्पादन हासिल करने के लिए रोगों का उचित प्रबंधन जरूरी है. 

झींगा में एक्यूट हेपेटो पैनक्रिएटिक नेक्रोसिस रोग (AHPND) एक बड़ी समस्या होती है. वर्तमान समय में यह सबसे हानिकारक गैर वायरल रोग है. इस रोग का खतरा आमतौर पर झींगा पालन करने के पहले 35 दिनों के अंदर होता है. इस बीमारी का प्रकोप होने पर बड़े पैमाने पर मछलियों की मौत हो जाती है. यह रोग समुद्री और खारे पानी के बैक्टिरिया के कारण होता है. इस बीमारी से मृत झींगा पानी के ऊपर नहीं आता है बल्कि पानी के नीचे चला जाता है. इसका कवच भी नरम हो जाता है. इसकी आंत आंशिक या पूर्ण रूप से खाली रहती है. इस बीमारी से प्रभावित झींगा का हेपेटो पैनक्रियाज काफी सिकुड़ा हुआ छोटा और बदरंग दिखाई देता है. 

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इस रोग से बचाव के उपाय

  • एक्यूट हेपेटो पैनक्रिएटिक नेक्रोसिस रोग से झींगा मछली को बचाने के लिए तालाबों की नियमित रूप से निगरानी करनी चाहिए, खास कर शुरुआती दौर में जब झींगा की स्टॉकिंग की गई है, उस वक्त तालाब में खास ध्यान देने की जरूरत होती है. 
  • इस बीमारी से बचाव के लिए सुरक्षा के जो उपाय विशेषज्ञ बताते हैं, उनका सख्ती से पालन करना चाहिए. इसके साथ ही मछलियों को अधिक खाना खिलाने से बचना चाहिए. उनकी संख्या के हिसाब से जो मानक मात्रा तय की गई है, उतना ही भोजन उन्हें खाने के लिए देना चाहिए. 
  • झींगा पालन के लिए पानी की गुणवत्ता का विशेष खयाल रखना बेहद जरूरी है. जलाशय, तालाब और पक्षियों के बनाए गए बाड़े के पानी का उपयोग करना चाहिए. सामान्य जल निकाय के पानी का उपयोग करने से बचना चाहिए.
  • तालाबों में झींगा की स्टॉकिंग करने से पहले पी सी आर द्वारा एएचपीएनडी या इएमएस के लार्वा की जांच कर लेनी चाहिए. इससे पहले से सुरक्षा के कदम उठाए जा सकते हैं. 

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  • जिस तालाब में झींगा के लार्वा को बड़ा किया गया है, जिसमें नर्सरी बनाई गई थी उस कल्चर तालाब में बड़े आकार के झींगे की स्टॉकिंग करें. 
  • अगर मत्स्यपालक झींगा पालन करने के लिए मछली पालन की आधुनिक तकनीक बॉयोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें एएचपीएनडी के प्रकोप से छुटकारा मिल सकता है, क्योंकि इस तकनीक में बीमारी रोकने में मदद मिलती है. 
  • जिस तालाब में झींगा पालन किया जा रहा है, उस तालाब में तिलापिया मछली का पालन करने से इस बीमारी के जीवाणु को कम करने में मदद मिलती है. 
  • पानी को खराब और प्रदूषित होने के बचाने के लिए पानी को हमेशा साफ करते रहें और मीठे पानी का इस्तेमाल करें. समय-समय पर तालाब में साफ मीठा पानी डालते रहें. इससे पानी की गुणवत्ता अच्छी बनी रहेगी और रोग नहीं होगा. 
     

 

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