ओडिशा में स्ट्रॉबेरी की खेती के जरिए सफलता की नई कहानी लिख रहे आदिवासी किसान

ओडिशा में स्ट्रॉबेरी की खेती के जरिए सफलता की नई कहानी लिख रहे आदिवासी किसान

नुआपाड़ा के सुनाबेड़ा पठार में सबसे पहले यह देखा गया की यह जगह स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है. क्योंकि यह समुद्र से 3000 फीटी की ऊचाई पर है और यहां का मौसम स्ट्रॉबेरी की खेती के अनुरुप है.

Advertisement
ओडिशा में स्ट्रॉबेरी की खेती के जरिए सफलता की नई कहानी लिख रहे आदिवासी किसानStrawberry Farming

ओडिशा में नुआपाड़ा में स्ट्रॉबेरी की खेती के जरिए आदिवासी किसानों के जीवन में बदलाव हो रहा है. वो किसान सफलता की कहानी लिख रहे हैं. हालांकि इसकी शुरुआत पहले दो किसानों ने की थी पर उन की सफलता को देखते हुए बाद में इस मुहीम से और किसान जुड़ते चले गए. अब स्ट्रॉबेरी की खेती करने के बाद किसान तीन से चार गुणा अधिक कमाई कर रहे हैं. उन्हें देखकर अन्य किसान भी स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. सभी किसान कमजोर आदिवासी समूह पीवीटीजी माने जाते हैं और चुक्तिया भुंजिया समुदाय से आते हैं. इन किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य चुक्तिया भुंजिया विकास एजेंसी ने किया है. सबसे पहले एजेंसी ने ही किसानों को इसकी खेती करने का प्रस्ताव दिया था. 

चुक्तिया भुंजिया जनजातियों के कल्याण के लिए 1994-95 में ओडिशा सरकार ने इस संस्था की स्थापना की थी.  नुआपाड़ा के सुनाबेड़ा पठार में सबसे पहले यह देखा गया की यह जगह स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है. क्योंकि यह समुद्र से 3000 फीटी की ऊचाई पर है और यहां का मौसम स्ट्रॉबेरी की खेती के अनुरुप है. द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसान बलिराम ने बताया कि चुक्तिया भुंजिया विकास प्राधिकरण ने उन्हें सबसे पहले स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया. 

ये भी पढ़ेंः मध्य प्रदेश की बगदरा घाटी में काउ सफारी बनेगी, गोवंश के साथ घाटी का सदियों पुराना रिश्ता

किसानों को दी गई खेती की पूरी जानकारी

बलिराम ने आगे कहा कि सीबीडीए और बागवानी विभाग उन्हें और उनके पंचायत के दो किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती की पूरी जानकारी हासिल करने के लिए महाराष्ट्र के महाबलेश्वर ले गए. उन्होंने देखा की महाबलेश्वर में वर्षों से स्ट्रॉबेरी की सफलतापूर्वक खेती की जा रही है, और सीबीडीए अधिकारियों के अनुसार, सुनाबेडा की जलवायु भी ऐसी ही है. इलाके के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करने से पहले धान, बाजरा और सब्जियों की खेती करते थे. कलीराम ने बताया कि पारंपरिक फसलों से वह प्रति वर्ष लगभग 70,000-80,000 रुपये से अधिक नहीं कमा पाते थे.

ये भी पढ़ेंः Jharkhand Paddy Procurement: दुमका और लातेहार में नहीं शुरू हुई धान की खरीद, एक भी किसान ने नहीं बेचा धान

दिए गए पौधे और सिंचाई सुविधा

कलिराम ने बताया कि उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए दो एकड़ जमीन लीज में ली. इसके बाद इसकी खेती करने के लिए एक लाख  रुपए का निवेश किया. उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती के जरिए एक साल में उन्होंने चार लाख रुपए कमाए. उन्होंने बताया की सीडीबीए की तरफ से इस समुदाय के लोगों को स्ट्रॉबेरी के पौधे दिए जाते हैं साथ ही ड्रिप इरिगेशन के तहत सिंचाई के लिए उपकरण दिए गए. इस के बाद अब कई गांवों में चुक्तिया भुंजिया जनजाति के लोगों के बीच इसका विस्तार हुआ है. साथ ही अन्य गांवों में भी इसकी खेती की जा रही है. 
 

 

POST A COMMENT