Mushroom Farming: खेती ने बदली ओडिशा के इस गांव की तकदीर, मिला 'मशरूम गांव' का खिताब

Mushroom Farming: खेती ने बदली ओडिशा के इस गांव की तकदीर, मिला 'मशरूम गांव' का खिताब

गांव के एक रिटार्यड कर्मचारी ने ग्रामीणों को इस समस्या से मुक्ति दिलाने की सोची. उन्होंने साल 2005 में ग्रामीणों को एकजुट किया और गांव में मशरूम की खेती कि शुरुआत की. जिसके बाद से गांव में बदलाव का दौर हुआ. रिटायर्ड कर्मी पीके पटनायक द्वारा मशरूम की खेती की शुरुआत ने ग्रामीणों के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत की.

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Mushroom Farming: खेती ने बदली ओडिशा के इस गांव की तकदीर, मिला 'मशरूम गांव' का खिताबमशरूम की खेती से बदली गांव की तस्वीर (सांकेतिक तस्वीर)

मशरुम की खेती के जरिए एक गांव की किस्मत बदली जा सकती है. ओडिशा के गंजम जिले के एक गांव राधामोहपुर ने इसे कर दिखाया है. आज यह गांव मशरूम की खेती के लिए जाना जाता है. मशरूम की खेती के कारण अब इस गांव से पलायन रुक गया है. गांव में ही सभी लोगों को रोजगार मिल रहा है. इसके साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई है. हालांकि एक वक्त ऐसा था जब एक भयंकर चक्रवाती तूफान के कारण यहां के लोगों की पान की खेती पूरी तरह से तबाह हो गई थी. क्योंकि चक्रवात की मार के बाद गांव की पूरी अर्थव्यवस्था खराब हो गई थी.रोजगार की तलाश में बड़े पैमाने पर यहां से लोगों का पलायन हुआ था. 

पर गांव के एक रिटार्यड कर्मचारी ने ग्रामीणों को इस समस्या से मुक्ति दिलाने की सोची. उन्होंने साल 2005 में ग्रामीणों को एकजुट किया और गांव में मशरूम की खेती की शुरुआत की. जिसके बाद से गांव में बदलाव का दौर हुआ. मशरूम की खेती की शुरुआत ने ग्रामीणों के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत की. मशरूम की खेती में शुरुआती दौर में सफलता मिलने के बाद गांव के युवाओं ने ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ओयूएटी), भुवनेश्वर से मशरूम की खेती के लिए वैज्ञानिक प्रशिक्षण लिया और सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हुए छह स्पॉन उत्पादन इकाइयां स्थापित कीं. इस तरह से राधामोहनपुर गांव में मशरूम उत्पादन के लिए एक बेहतरीन आधारभूत संरचना भी तैयार हो गई. 

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रोज होता है तीन टन मशरूम का उत्पादन

ओडिशा की एक स्थानीय वेबसाइट की खबर के अनुसार इसके बाद ग्रामीणों को कृषि विज्ञान केंद्र बहरामपुर के विशेषज्ञों का साथ मिला. ग्रामीणों को सामूहिक प्रयास से गांव में 17 स्पॉन उत्पादन यूनिट की स्थापना हुई. अब इस गांव में तीन टन ओएस्टर मशरूम का रोजाना उत्पादन किया जाता है. जिससे ग्रामीणों को साला लगभग दो करोड़ रुपए की कमाई होती है. इस उल्लेखनीय बदलाव ने गांव को आत्मनिर्भर बना दिया है. इतना ही नहीं भारतीय मशरूम अनुसंधान संस्थान, सोलन के निदेशक वीपी शर्मा ने ग्रामीण आर्थिक विकास के इसके बेहतरीन मॉडल को स्वीकार करते हुए इसे 'भारत का मशरूम गांव' का खिताब भी दिया है.

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आगे बढ़ सकते हैं गांव

राधामोहनपुर गांव की सफलता की कहानी यह दिखाती है कि अगर ग्रामीण एकजुट होकर कार्य करते हैं तो सामुदायिक प्रयास से विपरित परिस्थितियों में भी जीत हासिल की जा सकती है. क्योंकि एक वक्त था जब चक्रवात ने इस गांव को तबाह कर दिया था, पर आज यह गांव आत्मनिर्भर हो गया है. इस गांव ने नई चीजों को अपनाया आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति दिखाई और आगे बढ़ गया. गांव की  मां कलुआ स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) अब ऑयस्टर मशरूम अचार के उत्पादन में उतर रहा है, जिसका लक्ष्य बाजार तक अपनी पहुंच में विविधता लाना है. यहां की सफलता अन्य गांवों के लिए सफलता का एक मॉडल पेश करता है.

 

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